सिरोही। राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से हाल ही में दिए गए आदेश के तहत संथारा संल्लेखना को आत्हत्या के समकक्ष मानते हुए इस पर रोक राज्य सरकार की ओर से रोक लगाने के विरोध में सोमवार को जिला मुख्यालय पर जैन धर्मावलंबियों ने मौन जुलूस निकाला।
इस दौरान वे काली पट्टी बांधकर कलक्टरी परिसर में पहुंचे और अतिरिक्त जिला कलक्टर प्रहलाद सहाय नागा को राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। इसके पूर्व सोमवार को जैन धर्मावलंबियों ने अपने प्रतिष्ठान पूरे दिन बंद रखे।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जैन समाज के मुख्य टिलायत किशोर चौधरी के नेतृत्व में जैन वीसी से सवेरे 10 बजे कतारबद्ध मौन जूलुस प्रारम्भ हुआ। यह जुलूस जो पैलेस रोड, सदरबाजार होता हुआ जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचा। जुलूस में पुरूष श्वेत कपडे पहन कर व माहिलाएं काली रिबन बांधकर चल रही थी। इनके हाथों में ‘संथारा आत्महत्या नही आत्मदर्शन है, ‘संथारे पर रोक जैन धर्म पर आधात है, ‘अंहिसाप्रेमी घात नही करते है इत्यादि नारे लिखी हुई तख्तियां थी।
कलक्टरी में मुख्य टिलायत किशोर चैधरी, जैन पेढ़ी के अध्यक्ष भरत मोदी एंव दिगम्बर समाज के अध्यक्ष विमल चंद जैन ने अपने हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन में बताया कि संथारा एक धार्मिक साधना एवं तपस्या है जिसे किसी भी रूप में आत्महत्या नही कहा जा सकता है। उन्होंने मांग की कि राष्ट्रपति को इस मामले में अध्यादेश जारी करके इस निर्णय से आहत जैन समाज को राहत देनी चाहिए। इस पर ठोस कानून बनाया जाना चाहिए।
ज्ञापन में जैन धर्म की मान्यताओं में दखल देने पर कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए मांग की गई है कि संथारा जैसी पवित्र तपस्या पर रोक के निर्णय पर पुन:विचार किया जावे। संथारे पर रोक के विरोध में सिरोही जैन समाज के व्यापारियो ने अपने प्रतिष्ठान बंद रखे। वहीं सरकारी सेवाओं में कार्यरत लोगों व बच्चों ने अवकाश लेकर जुलूस में भाग लिया।
जैन संघ पेढी के प्रवक्ता अश्विन शाह ने बताया कि जुलूस में के. पी. पेढी के अध्यक्ष निरंजन नानावटी, दिगम्बर जैन समाज के नरेन्द्र जैन, आदेश्वर पेढ़ी के अध्यक्ष मोहनलाल बोबावत, अजित नाथ गोठ के करणराज शाह, युवक महासंघ के कमलेश चौधरी, जीतो के निदेशक मुकेश मोदी, विश्व हिन्दु परिषद के अध्यक्ष भरत वैष्णव, पत्रकार महावीर जैन, डॉ संजीव जैन, पावापुरी ट्रस्ट के महाप्रबन्धक रमेश सिघीं, के पी पेढ़ी के अमृत लाल सिंघी, पारस जैन शांतिनगर के प्रतिनिधि आशुतोष पटनी, एडवोकेट अश्विन मरडिया, दिनेश सुराणा, प्रवीण शाह, जैन संघ पेढ़ी के पूर्व अध्यक्ष राजेन्द्र मोदी सदस्य जवेर चन्द जैन, निरंजन शाह, महावीर नवयुवक मंडल के योगेश बोबावत्, नितेश सिघीं, शेलेश भण्डारी, शेलेश कांगटानी एवं महिला मंडल की श्रीमती विमला शाह, सन्तोष कोठारी, कमला शाह, रेखा कांगटानी, सपना शाह एवं दमयंती कांगटानी ने जुलूस में व्यवास्थाओं में भाग लिया। जूलुस में 300 श्रावक-श्राविकाएं शामिल थे।
यह है मामला
राजस्थान हाईकोर्ट में 2006 में अजमेर निवासी निखिल सोनी ने राजस्थान हाईकोर्ट में संथारा-संलेखना को सति प्रथा की तरह ही अत्महत्या के समकक्ष मानने की याचिका लगाई थी। गत सोमवार को इसमें ऐतिहासिक फैसला आया। इसमें राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बैंच ने जैन धर्म की सैकड़ों सालों से प्रचलित संथारा/सल्लेखना प्रथा को आत्महत्या के बराबर अपराध बताया। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को संथारा पर रोक लगाने का आदेश दिया।
न्यायालय ने बताया कि संथारा लेने और संथारा दिलाने वाले, दोनों के खिलाफ आपराधिक केस चलना चाहिए। निर्णय के अनुसार संथारा लेने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 309 यानी आत्महत्या का अपराध का मुकदमा चलना चाहिए। संथारा के लिए उकसाने पर धारा 306 के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए। इस निर्णय से जैन संतों व समाज में गुस्सा देखा गया।
उन्होंने संथारे की न्यायालय में संथारा की सही तरह से व्याख्या नहीं किए जाने की बात कही। उनका कहना है कि संथारा आत्महत्या नहीं बल्कि आत्म स्वतंत्रता है।
नौ साल पहले याचिकाकर्ता निखिल ने न्यायालय में दलील थी कि संथारा इच्छा-मृत्यु की ही तरह है। इसे धार्मिक आस्था कहना गलत है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुनील अंबवानी और जस्टिस वीएस सिराधना की बेंच ने अप्रैल में सुनवाई पूरी करके इसके संबंध में गत सोमवार को फैसला सुनाया।
इस जनहित याचिका में जैन समुदाय के धार्मिक संस्थान संस्थानकवाली जैन श्रावक संघ व श्रीमाल सभा मोती डूंगरी दादाबाड़ी समेत कई पक्षकार बनाए गए थे। जैन अनुयायियों ने धार्मिक आस्था का हवाला देकर अदालत से इस मामले में दखल नहीं देने को कहा था। वहीं, याचिकाकर्ता का कहना था कि यह संविधान के खिलाफ है।
क्या है संथारा?
जैन समाज के अनुसार यह हजारों साल पुरानी प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। मौन व्रत रख लेता है। इसके बाद वह किसी भी दिन देह त्याग देता है।
वैसे इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन जैन संगठनों के मुताबिक हर साल 200 से 300 लोग संथारा के तहत देह त्यागते हैं। राजस्थान में ही यह संख्या 100 के पार पहुंच जाती है।
यह प्रथा भले ही कितनी ही साल पुरानी हो, लेकिन यह व्यापक रूप से चर्चा में 2006 में आई। जयपुर निवासी विमला देवी, जो कि कैंसर से पीडित थी, ने धर्मगुरु से संथारा की अनुमति ली। उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया और 22 दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई। जान देने की इस अनुमति को बाद में हाईकोर्ट में लगाई गई याचिका के साथ जोड़कर चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने माना कि सति प्रथा की तरह है
कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दलील दी कि संथारा सती प्रथा की ही तरह है। जब सती प्रथा आत्महत्या की श्रेणी में आती है तो संथारा को भी आत्महत्या ही माना जाए। अदालत ने इस तर्क को माना है। कोर्ट ने कहा- जैन समाज यह भी साबित नहीं कर पाया कि यह प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
इस संबंध में जैन मुनियों का कहना है कि संथारा आस्था का विषय है, यह तनाव व कुंठा में लिया गया निर्णय नहीं हैं यह सोच-समझकर किया गया व्रत है। वैसे जैन समाज इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने का भी विचार कर रहा है, लेकिन इससे पहले इसके लिए देशभर में प्रदर्शन और विरोध किया गया।