सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही के सत्ताधारी पक्ष के नेता अपने पर पुत रही कथित भ्रष्टाचार, अनियमितता, कुप्रबंधन की कालिख को पोछने की बजाय इस कालिख को दिखाने वाले आईने को तोडऩे पर आमादा हो गए हैं।
इसकी एक नाकाम कोशिश हाल ही में देखने को मिली है। नाकाम इसलिए कि आईना फिर भी इनकी कालिख दिखा रहा है और यह अपने साथ-साथ अपनी पार्टी के सिद्धांतों को भी क्षति पहुंचाते जा रहे हैं।
आज का शगल नहीं
सिरोही में वर्तमान में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं का चेहरे और श्वेत वस्त्र पर पुत रही कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार की कालिख को बेहतर कार्य से पोछने की बजाय आईना तोडऩे को कोशिश पिछले सात सालों से चलती चली आ रही है। इन्हें आईना दिखाने वाले मीडिया के प्रतिनिधियों की शिकायतें करना इनके लिए कोई नई बात नहीं रही है, लेकिन इनकी सुनवाई कभी नहीं हुई। इस बार सत्ता में आने के बाद तो सत्ता के मद में एक हास्यास्पद हरकत भी कर गए। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सिरोही में जल आंदोलन के दौरान कुछ चापलूस नेताओं ने तो हद ही कर दी थी।
इन्होंने जल आंदोलन के दौरान हो रहे धरने को समाप्त करवाने के लिए मीडिया व मीडियाकर्मियों पर अंकुश लगाने की राय दी। इस पर भी एक और हास्यास्पद हरकत कर गए। जब पीआरओ मंत्री के पास पहुंचे तो इन नेताओं ने पीआरओ को मीडियाकर्मियों और मीडिया समूहों पर कार्रवाई करने के आदेश दे दिए। स्वतंत्र मीडिया पर सरकारी अधिकारियों व नेताओं का अंकुश होने की गलतफहमी पालने की बात जब लोगों के बीच में आई तो यह लोग जनता में हंसी के पात्र बन गए और सफाई भी देते फिरे।
सूरत सुधारिये आईना नहीं बदलेगा
नेताजी ने आईने को तोडने का प्रयास किया, अब आइने के इतने टुकडे हो गए कि उसका हर टुकड़ा इनकी शरीर व वस्त्र के साथ नीयत की कालिख भी दिखाने लगा है।
नेताजी को मुगालता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के छिटपुट समूहों पर रो गाकर प्रभावित करने से वह मीडिया के तीसरे और सबसे प्रभावी स्वरूप में अपनी छवि सुधार लेंगे। क्योंकि तीसरे और सबसे सशक्त मीडिया के रूप में उभरे वेब और सोशल मीडिया में उनके साथ-साथ उनके वरदहस्तों की कार्यप्रणाली के जो चर्चे हो रहे हैं वह तभी कम हो सकते हैं जब वह अपनी शक्ति को जनहित में लगाने में लगे।
और हां इस माध्यम से उनके अच्छे और गलत काम सिर्फ सिरोही तक नहीं सिमटते, यह राज्य के अन्य जिलों, देश के अन्य प्रांतों के साथ-साथ दुनिया भर में नजर आते हैं। लम्बे समय तक नेतागिरी को जिंदा रखना है तो अपने प्रतिद्वंद्वियों से कुछ और नहीं तो कम से कम यह तो गुण तो सीख लें कि मीडिया वही दिखाता है जो होता है, इसलिए उस पर अंकुश लगाने की नीयत पालने की बजाय अपनी कार्यप्रणाली सुधारें।
अन्यथा जो लोग आधी-अधूरी जानकारी से अपने करीबियों की इज्जत की बारात निकाल कर जगहसाई का पात्र बना दे रहे हैं, यदि ऐसे लोग सलाहकार बने रहे तो ऐसे दिन नेताजी से भी ज्यादा दूर नहीं रहेंगे। नेताजी को आईने में कालिख नहीं देखनी है तो सूरत सुधारनी होगी क्योंकि आईना तो हमेशा सच ही बोलेगा फिर वो वाशबेसिन पर लगा हो या ड्रेसिंग टेबल पर।
-परीक्षित मिश्रा