मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने गर्भवती पत्नी की हत्या के मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि तथा उम्रकैद की सजा रद्द कर दी और कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में विफल रहा है तथा आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाता है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वीके ताहिलरमानी तथा न्यायाधीश ए एस गडकरी की खंडपीठ अजीत बोराडे नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बोराडे ने जनवरी, 2009 में एक सत्र अदालत द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी थी।
सत्र अदालत ने पत्नी ऊषा की हत्या और उत्पीडऩ के मामले में उसे दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार अजीत और उषा की साल 2005 में शादी हुई थी। दोनों के बीच उस वक्त मतभेद शुरू हुए जब ऊषा को पता चला कि उसके पति का किसी और महिला के साथ संबंध है।
अभियोजन पक्ष का कहना था कि उषा ने अपने पति से यह संबंध खत्म करने को कहा, लेकिन अजीत अलग होकर उस महिला से शादी करना चाहता था। आरोप था कि अजीत ने एक जून, 2007 को अपनी पत्नी पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी।
उस वक्त 28 सप्ताह की गर्भवती ऊषा बुरी तरह झुलस गई और बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई। बचाव पक्ष ने दलील दी थी कि घर में आग शॉट सर्किट के कारण लगी और पत्नी को बचाने के प्रयास में अजीत खुद झुलस गया था।