नई दिल्ली। महाबीर प्रसाद गुप्ता को आप हॉफ सेंचुरी ऑफ रामलीला भी कह सकते हैं। आठ बरस के ही थे जब उन्होंने रामलीला में अभिनय की शुरुआत की थी। तब वे बानर बना करते थे। लेकिन अब कई सालों से वह लीला में मल्टीपल रोल करने वाले विशेष अभिनेता की पहचान बना चुके हैं।
रामलीला में अभिनय करते हुए अर्ध शती से भी ज्यादा हो चुका है। आज वह 65 साल के एक ऐसे अभिनेता हैं जो राजधानी के साइक्लोपीडिया बन गए हैं। आप उनके पास बैठ जाइए, आपको देश की राजधानी की रामलीलाओं के बारे में ऐसी जानकारी हासिल हो जाएगी जो किसी लिखित इतिहास में नहीं मिलेगी।
गांव ताबडू (गुड़गांव) के इस किशोर को रामलीला के संवाद सुनकर जो धुन अभिनय की सवार हुई की, अब उसके मास्टर कलाकार बन चुके हैं। उम्र के साथ-साथ उनके रोल बदलते गए और वह हर रोल में नई जान डालते चले गए। तिकोना पार्क अखाड़ा मोरी गेट में वह भारती रामलीला कमेटी के प्रधान भी बनाए गए। वह परशूराम, दशरथ, साधु रावण, बाली और रावण यानी ’फोर इन वन‘ आर्टिस्ट बन गए।
तिलक बाजार में केमिकल्स का बिजनेस करने वाले महावीर प्रसाद गुप्ता पुरातन रामलीलाओं के समर्थक हैं। कहते हैं : जो मज़ा इन रामलीलाओं में था, वह आज की हाईटेक लीलाओं में नहीं आ सकता। उनमें यूज होने वाले वाद्य और संगीत का मज़ा ही अलग था। आज तो शोर शराबे और चकाचौंध से भर दिया गया है रामलीलाओं को। जो मज़ा ढोलक और हारमोनियम के म्यूजिक में था, ऑरकेस्ट्रा में आ भी नहीं सकता।
महंगाई के इस जमाने में इस सांस्कृतिक लीला को बाज़ार की चीज़ बनाने से बचाना चाहिए। महावीर बताते हैं हमारे जमाने में लीला सिर्फ 5 हजार रुपए में हो जाया करती थी। आज तो छोटी-मोटी लीलाएं 15-16 लाख से कम में नहीं हो पाती। असल रामलीला तो वही हैं जहां चरित्र को निभा रहा आर्टिस्ट खुद डॉयलॉग बोले। आज की हाईटेक रामलीला में तो संवाद अदायगी सेट के जरिए कराई जाती है।
सब कुछ तकनीक पर आधारित होता जा रहा है। एक वह समय था जब हम चार-चार चरित्रों के डॉयलॉग याद भी करते थे और बोलते भी थे। कहीं दशरथ की करुणा होती तो तो कहीं परशुराम का क्रोध, बाली के अन्याय और रावण के अहंकार से भरे संवादों में एक ही इंसान अलग अलग तरीके से ढलता जाता था। यही नहीं, स्त्रियों के रोल भी पुरुषों को करने पड़ते थे।
आज महावीर जिस रामलीला में काम करते हैं, उसके 25 कलाकार हर साल चित्रकूट से दिल्ली आते हैं। चित्रकूट के देवराज 32 साल के हैं, जो सीता का अभिनय करते हैं। महाबीर मानते हैं कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर पुरानी रामलीलाएं ही हैं। श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से एमकॉम इस कलाका्र का मन उन्हीं लीलाओं में रहता है जहां इंसानी जिंदगी को मशीनी होने से बचाया जा सके।
वह राम मर्यादा पुरुषोत्तम और रावण को अहंकारी दुष्ट मानते हुए कहते हैं कि ये दोनों ही चरित्रा आज के समय में शिक्षा देने में समर्थ हैं। हमारे नौजवानों को इनसे सीख लेनी चाहिए। रावण एक खल चरित्र होने के बावजूद हमें यह सीख देता ही है कि अपने अहंकार में डूबे रहना ठीक नहीं है। हमें पूरे समाज के बारे में सोचना होगा। हम समाज के लिए और समाज हमारे लिए। जो शासक यह नहीं समझेगा उसका अंत रावण की तरह हो जाएगा।