मिलावट ने हमारे जन जीवन को जहरीला बना दिया है। मिलावट से गरीब से अमीर और बच्चे से बुजुर्ग तक आतंकित है। यह जहरीला नाग कब किसको डस ले यह किसी को पता नहीं है।
आज समाज में हर तरफ मिलावट ही मिलावट देखने को मिल रही है। पानी से सोने तक मिलावट के बाजार ने हमारी बुनियाद को हिला कर रख दिया है। पहले केवल दूध में पानी और शुद्ध देशी घी में वनस्पति घी की मिलावट की बात सुनी जाती थी मगर आज घर-घर में प्रत्येक वस्तु में मिलावट देखने और सुनने को मिल रही है।
मिलावट से हमारा तात्पर्य प्राकृतिक तत्वों और पदार्थों में बाहरी, बनावटी अथवा अन्य प्रकार के मिश्रण से है। मुनाफाखोरी करने वाले लोग रातोंरात धनवान बनने का सपना देखते हैं। अपना यह सपना साकार करने के लिए वे बिना सोचे-समझे मिलावट का सहारा लेते हैं।
सस्ती चीजों का मिश्रण कर सामान को मिलावटी कर महंगे दामों में बेचकर लोगों को न केवल धोखा दिया जाता है अपितु हमारे स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी किया जाता है। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से प्रतिवर्ष हजारों लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार होकर अकाल काल का ग्रास बन जाते हैं। मिलावट का धंधा हर तरफ देखने को मिल रहा है।
साईकिल या मोटर साईकिल से आस-पास के क्षेत्रों से महानगरों एवं नगरों में दूध लाकर बेचने वाले दूधिये सरे आम पानी मिलाते हैं। अब शुद्ध दूध मिलना मुश्किल हो गया है। दूध बेचने एवं मिलावट करने वाले छोटे तबके के लोगों से लेकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तक ने मिलावट के बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है।
सत्य तो यह है कि हम जो भी पदार्थ सेवन कर रहे हैं चाहें वे खाद्य पदार्थ हो या दूसरे, सब में मिलावट ही मिलावट हो रही है। मिलावट ने अपने पैर जबरदस्त तरीके से फैला लिये हैं। दूधिये की कहानी तो केवल एक उदाहरण के रूप में है। मगर आज हर वस्तु में मिलावट से हमारा वातावरण प्रदूषित और जहरीला हो उठा है। दूध, मावा, घी, हल्दी, मिर्च, धनिया, अमचूर, सब्जियाँ, फल आदि सभी वस्तुएँ मिलावट से मालामाल हो रही हैं।
बताया जाता है बाजार में मिलने वाली सब्जियों और फलों को रसायन के माध्यम से रंग-बिरंगा कर उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जाता है। मटर और परवल को हरे रंग से हरा भरा किया जाता है। तरबूज में इंजेक्शन तो आम बात हो गई है।
आम, केले, मौसमी तक को सरे आम रसायन और इंजेक्शन से पकाया और तैयार किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। बताया जाता है कि सीमेन्ट में राख, चाय में रंगा हुआ लकड़ी का बुरादा, जीरे में घोड़े की लीद, खाने के रंगों में लाल-पीली मिट्टी, खाद्य तेलों में दूसरे सस्ते और अखाद्य तेलों की मिलावट सरे आम हो रही है।
हमारे देश में मिलावट करने को एक गम्भीर अपराध माना गया है। मिलावट साबित होने पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 272 के तहत अपराधी को आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से आदमी अनेक प्रकार की बीमारियों का शिकार हो जाता है। पेट की असाध्य बीमारियों से लेकर कैंसर तक का रोग लग जाता है। अंधापन और अपंगता को भी झेलना पड़ता है।
मिलावट साबित होने पर आजीवन कारावास और पांच लाख रूपये तक जुर्माने की सजा का प्रावधान है। मगर बहुत कम मामलों में इतनी सजा और जुर्माना देखने-सुनने को मिलता है। कई बार पकड-धकड़ के समाचार सुनने को मिल जाते हैं मगर मिलावट का थोक व्यापार करने वाले लोग अभी तक कानून की पहुंच से दूर हैं। मिलावट एक संगीन अपराध है।
इसका व्यापक प्रचार-प्रसार कर हम मिलावटियों में खौफ उत्पन्न कर सकते हैं। मिलावट पर काबू नहीं पाया तो यह सम्पूर्ण समाज को निगल जायेगा। जिसका खामियाजा सब को भुगतना होगा। भारत में 52 प्रतिशत बीमारियां मिलावटी तत्वों से होती है। यह आंकड़ा बहुत बड़ा और गंभीर है। मिलावट की यह बीमारी धीरे-धीरे कोढ़ का रूप धारण कर रही है।
इससे पूर्व यह सम्पूर्ण शरीर को निगले, हमें इसकी रोकथाम और नियंत्रण के गंभीरतम प्रयास करने होंगे। सामाजिक स्तर पर मिलावटियों का बहिष्कार होना चाहिए। समाज को अपनी एकता और ताकत का परिचय देना होगा तभी इस कोढ़ को हम जड़मूल से समाप्त कर पायेंगे। सरकार को कानून के प्रावधानों को और सशक्त बनाना चाहिये। कानून का भय ही इस रोग को समाप्त कर सकता है। मिलावट के आतंक को रोकने के लिए सरकार को जन भागीदारी से सख्त कदम उठाने होंगे।
बाल मुकुन्द ओझा