जयपुर। राजस्थान में शराबबंदी और सशक्त लोकायुक्त कानून की मांग को लेकर 2 अक्टूबर से आमरण अनशन पर चल रहे लोक शक्ति संघर्ष मोर्चा राजस्थान के संयोजक और पूर्व विधायक गुरूशरण छाबड़ा की अनशन के दौरान हुई मौत कई सवाल छोड़ गई है। छाबड़ा 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर सूरतगढ़ से विधायक चुने गए थे।
उन्होंने गोकुलभाई भट्ट के साथ मिलकर प्रदेश में शराब बंदी को लेकर आंदोलन चलाया था। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के आखिरी बजट से पूर्व छाबड़ा ने फरवरी 2013 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज्ञापन देकर शराबबंदी लागू करने की मांग की थी। सरकार ने बजट में शराबबंदी के लिए प्रावधान किए जाने का भरोसा दिलाया था।
ज्ञापन में उन्होंने सरकार को आगाह किया था कि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो मार्च 2013 से वे अनशन शुरू करने वाले थे, लेकिन तत्कालीन सरकार की समझाइश के बाद उन्होंने अपना फैसला कुछ दिन के लिए टाल दिया। नई सरकार का गठन होने के बाद भी छाबड़ा की यह मांग जारी रही। अन्ना आंदोलन के बाद छाबड़ा ने शराबबंदी के साथ-साथ मजबूत लोकपाल की मांग भी जोड़ दी। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सत्ता संभालने के पांच माह बाद ही 1 अप्रेल 2014 को छाबड़ा ने अनशन शुरू कर दिया।
22 दिन बाद पुलिस ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया, लेकिन अनशन जारी रहा। राज्य सरकार के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने 45 दिन बाद अपना अनशन समाप्त किया। संसदीय कार्यमंत्री डॉ.राजेंद्र राठौड़ की मध्यस्थता में हुए इस समझौते के तहत सरकार ने चरणबद्ध रूप से शराबबंदी पर विचार करने और मजबूत लोकपाल बनाए जाने का भरोसा दिलाया था और एक साल में मांगे मानने का लिखित में आश्वासन दिया था।
लिखित समझौते के तहत सरकार की तरफ से गठित समिति को एक साल में सशक्त लोकायुक्त कानून को लेकर सिफारिश देनी थी, लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी सरकार की तरफ गठित कमेटी ने न तो सिफारिश दी और न ही प्रशासनिक स्तर पर कोई कार्रवाई हुई। इस पर 15 मई 2015 को छाबडा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर 30 सितंबर तक समझौता लागू नहीं होने पर 2 अक्टूबर से फिर अनशन शुरू करने की चेतावनी दी। फिर भी कार्रवाई नहीं हुई।
1980 में राज्यपाल ने की थी प्रदेश में शराबबंदी
राजस्थान में शराबबंदी की मांग नई नहीं है। पिछले 50 साल से प्रदेश में शराबबंदी की मांग चल रही है। सबसे पहले 1965 में सर्वोदयी नेता गोकुल भाई भट्ट ने शराबबंदी की मांग उठाई थी। 1967 में उन्होंने शराबबंदी के लिए आंदोलन शुरू किया जिसके बाद तत्कालीन सरकार ने 1969 में प्रदेश के चार आदिवासी जिलों में शराबबंदी लागू की। इनमें उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और चित्तौडग़ढ़ जिले शामिल थे। चार साल बाद सरकार ने छह जिलों में शराबबंदी लागू कर दी लेकिन भट्ट पूरे प्रदेश में शराबबंदी की मांग पर अड़े रहे।
छाबड़ा का निधन अपूरणीय क्षति: राठौड़
संसदीय कार्य और चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने अनशन कर रहे पूर्व विधायक गुरूचरण छाबडा के निधन को दुखद और अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा कि उनके बचाने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन उनकी आज सुबह साढ़े चार बजे ह्रदय गति रुकने से निधन हो गया। उनके इलाज के लिए 7 चिकित्सकों के बनाए गए मेडिकल बोर्ड ने उन्हे कल देर रात गडग़ाव के मेंदात अस्पताल में भर्ती कराने की बात कही थी लेकिन तडक़े सुबह की उन्होंने अंतिम सांस ली। राठौड़ ने उनक सच्चा समाजसेवक और पथप्रदर्शक बताया।
संवेदनहीन सरकार के चलते हुई छाबड़ा की मौत
अनशन कर रहे पूर्व विधायक गुरूचरण छाबडा के निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधायक डॉ.किरोडीलाल मीणा ,पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह सहित कई नेताओं ने शोक जताया है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने छाबड़ा के निधन को एक दुखद घटना करार दिया है। गहलोत ने अपने संवेदना संदेश में कहा कि एक निष्ठुर एवं संवेदनहीन सरकार के रहते छाबड़ा की जीवन लीला समाप्त हो गई।
एक बार भी मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने छाबड़ा से संपर्क कर समझाइश की कोशिश की होती और अनशन समाप्त करने के लिए उनसे अपील की होती तो शायद उनके प्राणों को बचाया जा सकता था। राजस्थान के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब एक व्यक्ति को निजी स्वार्थ नहीं, बल्कि जनहित में इस तरह मांग को लेकर अपने प्राण त्यागने पडे हों।
गहलोत ने कहा कि छाबडा से मैं रविवार को मिला था और इस सरकार के संवेदनहीन रवैए को देखते हुए उन्हें अपना अनशन समाप्त करने की दिशा में पुन: विचार करने का आग्रह किया, लेकिन वे अपनी दृढ इच्छाशक्ति के दम पर अपना सत्याग्रह जारी रखने पर अड़े रहे। गहलोत ने कहा कि मुझे कल देर रात उनकी चिन्ताजनक स्थिति की जानकारी मिली तो मैं फिर उन्हें देखने सवाई मानसिंह अस्पताल गया और चिकित्सकों से उन्हें बचाने की हर संभव प्रयास करने के लिए कहा।
उन्होंने कहा कि छाबडा ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय एक बार 15 दिन और दूसरी बार 25 दिन के लिए इसी प्रकार सत्याग्रह किया था। वर्तमान सरकार के समय 46 दिन का अनशन पहले कर चुके हैं। मैं इनसे अनशन के दौरान अनेकों बार मिला। इनसे विचार-विमर्श और समझाइश के साथ लिखित मैं समझौता किया और सत्याग्रह समाप्त करवाया। इस बार भी वर्तमान सरकार द्वारा यदि ऐसे प्रयास किए जाते तो सत्याग्रही छाबडा की जान बचाई जा सकती थी। गहलोत ने परमपिता परमेश्वर से छाबडा की आत्मा की शांति तथा उनके शोकाकुल परिजनों को यह आघात सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है।