नई दिल्ली। सरकार के सूत्रों ने शनिवार को इन अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की कि अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन ने एजेंसियों के समक्ष समर्पण किया था और दावा किया कि राजेंद्र सदाशिव निकालजे की गिरफ्तारी सीबीआई, भारतीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के छह महीने के अभियान का परिणाम है जो प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सहयोग के साथ लगातार काम कर रही थीं।
सूत्रों ने कहा कि ऐसा कोई सवाल नहीं उठता कि राजन समर्पण करना चाहता था क्योंकि वह इंडोनेशिया के बाली में इंटरपोल की सूचना पर पकड़े जाने से पहले 10 लाख रुपए के बराबर मुद्रा और 15 जोड़ी कपड़े लेकर यात्रा कर रहा था और संभवत अपनी पसंद के किसी देश में जाने की योजना बना रहा था।
अपने दावों को पुष्ट करते हुए सूत्रों ने कहा कि समर्पण करने की राजन की कोई इच्छा नहीं थी क्योंकि उसने बाली में समर्पण दस्तावेज पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था। इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने का मतलब यह होता कि उसे तत्काल भारत वापस भेज दिया जाता।
छह महीने पहले इंटरपोल की सूची में शामिल सर्वाधिक वांछित भगोड़ों को लेकर सरकार के उच्च स्तर पर हुई समीक्षा के दौरान सीबीआई को सूचना मिली कि राजन ऑस्ट्रेलिया में है और फर्जी नाम से मोहन कुमार के रूप में रह रहा है। इस पर उसे वापस लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सहयोग से गुप्त अभियान चलाया गया।
सूत्रों ने दावा किया कि यह सामने आया कि वर्ष 2000 में छोटा शकील के लोगों द्वारा किए गए जानलेवा हमले में बैंकाक से नाटकीय रूप से बच निकलकर भागे राजन को वापस लाने थाईलैंड गई सीबीआई और अन्य भारतीय एजेंसियों को चकमा देते हुए विजय कदम के फर्जी नाम से अफ्रीका चला गया। वर्ष 2003 में वह जिम्बाब्वे के हरारे में मोहन कुमार के नाम से एक और भारतीय पासपोर्ट हासिल करने में सफल हो गया और ऑस्ट्रेलिया चला गया जहां वह तभी से रह रहा था।
साल 2003 के बाद से वह अपने गिरोह के अभियानों को संचालित करने के दौरान अपने दुश्मन अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहीम से जान के खतरे के चलते ऑस्ट्रेलिया में और आसपास के इलाकों में लगातार अपने ठिकाने बदलता रहा। उसके गिरोह को दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में काफी सक्रिय और मजबूत माना जाता है। सूत्रों ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में उसकी मौजूदगी की सूचना मिलने के बाद सीबीआई ने गोपनीय रूप से उसके फिंगर प्रिंट लेकर उसकी पहचान स्थापित करने की कोशिश की।
फिंगरप्रिंट डेटाबेस से मिलान खा गए। इसके बाद उसकी गतिविधियों पर नजर रखी गई। उन्होंने कहा कि उसे ऑस्ट्रेलिया से वापस लाना वहां के कड़े स्थानीय कानूनों की वजह से मुश्किल और लगभग असंभव होता, लेकिन यह सूचना वरदान में बदल गई कि ऑस्ट्रेलिया में रहने का उसका परमिट 31 अक्तूबर 2015 को खत्म हो रहा है। मोहन कुमार के रूप में रह रहा राजन इसकी अवधि बढ़वाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा था।
वहीं, सीबीआई सहित भारतीय एजेंसियों ने ऑस्ट्रेलिया में उसके रहने के परमिट की अवधि बढ़ाए जाने को रोकने के लिए दोनों देशों के बीच विभिन्न चैनलों के जरिए प्रयास शुरू कर दिए। उसकी गतिविधियों पर नजर रख रही एजेंसियों को पता चला कि राजन ऑस्ट्रेलिया में अपना निवास परमिट खत्म होने से छह दिन पहले 25 अक्तूबर को बाली जाने की योजना बना रहा है।
सूत्रों ने दावा किया कि उसने बाली को दो संभावित कारणों से चुना पहला दक्षिण पूर्व एशिया में उसके गिरोह की मजबूत मौजूदगी और दूसरा वहां दाउद गिरोह से खतरा कम रहता। सीबीआई का सहयोग कर रही ऑस्ट्रेलियाई इंटरपोल ने बाली के अधिकारियों को सूचना दी कि एक भगोड़ा मोहन कुमार के फर्जी नाम से पर्यटक शहर की यात्रा कर रहा है जिसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी है।
उसके पहुंचने पर आव्रजन अधिकारियों ने उसे ढूंढ़ लिया और उससे उसकी पहचान के बारे में पूछा। इस पर उसने बताया कि उसका असली नाम राजेंद्र निकालजे है, जबकि वह मोहन कुमार के नाम से यात्रा कर रहा था। इस पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। सूत्रों ने दावा किया कि स्थानीय इंडोनेशियाई कानूनों के अनुसार उसे 15 दिन तक इंडोनेशिया पुलिस की हिरासत में रखा जा सकता था और उसके बाद ही वह अदालत से संपर्क कर पाता।
इस संदेह के चलते कि उसके एक बार स्थानीय अदालत से संपर्क कर लेने का परिणाम लंबी कानूनी लड़ाई के रूप में निकलता जो हो सकता है भारत के हक में जाती और शायद न भी जाती, सीबीआई ने उसका पासपोर्ट हासिल कर लिया जो सात जुलाई 2018 तक वैध था और इसे 31 अक्तूबर को रद्द कर दिया जिससे कि वह इंडोनेशिया में अवांछित व्यक्ति हो जाए और अन्य देशों की उसकी यात्रा की संभावना खत्म हो जाए। उसी दिन सीबीआई, मुंबई और दिल्ली पुलिस के सात अधिकारियों की एक टीम बाली पहुंची जहां से राजन को एक विशेष विमान मेें भारत वापस लाया गया।