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सिंघल ने संगम तट पर लिया था वेद विद्यालय शुरु करने का संकल्प - Sabguru News
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सिंघल ने संगम तट पर लिया था वेद विद्यालय शुरु करने का संकल्प

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सिंघल ने संगम तट पर लिया था वेद विद्यालय शुरु करने का संकल्प
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pay tribute to ashok singhalलखनऊ। हिन्दुत्व के पुरोधा अशोक सिंघल की वेद के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे ‘वेद’ को भारतीय संस्कृति की बीज मानते थे। वे तीर्थराज प्रयाग के संगम तट पर माघ मेला में ‘‘विश्व वेद सम्मेलन’’ करने की इच्छा प्रकट की, और वेद को लेकर पहला सम्मेलन फरवरी, 1992 के प्रथम सप्ताह में हुआ। सम्मेलन में चारों वेदों की 10 शाखाओं के 600 वेदज्ञ पधारे थे। 8 विषयों पर गोष्ठियाँ हुई थीं।

अनेक विश्वविद्यालयों के विद्वानों ने अपने लिखित वक्तव्य प्रस्तुत किए थे। सम्मेलन में यह बात निकल कर आयी कि दक्षिण भारत के चार राज्य और महाराष्ट्र के अतिरिक्त देश के किसी राज्य में वेद मंत्रों को गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत कंठस्थ कराने की पाठशाला नहीं है। काशी में भी जो वेद मंत्र कंठस्थ करते थे, वे सब महाराष्ट्र मूल के युवक थे। तब से अशोक जी के मन में बीज जम गया कि हम भी वेद पाठशाला प्रारम्भ करेंगे।

1 आचार्य 10 बटुक से शुरु हुआ वेद पाठशाला

विहिप के अंतराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि उन दिनों पूज्य संत स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी महाराज महाराष्ट्र में वेद पाठशालाएं चला रहे थे। अशोक की इच्छा को स्वीकारते हुए स्वामी ने महाराष्ट्र की अपनी पाठशाला से एक आचार्य और 10 वेद बटुक (छात्र) दिल्ली भेजे। रामकृष्णपुरम स्थित परिषद कार्यालय के एक भाग में गुरुपूर्णिमा वर्ष 1994 में वेद पाठशाला प्रारम्भ हो गई।

पाठशाला में गांवों से वेद पढ़ने के लिए छात्र आने लगे। कांची कामकोटि पीठ द्वारा दिल्ली के कटवारिया सराय क्षेत्र में स्वयं के आश्रम में चलाए जा रहे वेद विद्यालय से पढ़े चन्द्रभानु शर्मा को आचार्य रूप में रख लिया गया। कुछ दिनों बाद एक अन्य वेदपाठी रामकुमार शर्मा भी वेदाचार्य के रूप में रख लिए गए। लगभग एक वर्ष बाद आचार्य किशोर व्यास द्वारा भेजे गए छात्र और आचार्य सम्मानपूर्वक वापस भेज दिए गए।
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बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसायटी के अध्यक्ष प्रेम कपूर को वेद पढ़ाने का यह कार्य बहुत अच्छा लगा। जब उन्होंने सारा इतिहास सुना तो वे बोल पड़े कि यह तो भारतीय संस्कृति के बीज की रक्षा का कार्य है। दिल्ली-लोनी-गाजियाबाद सीमा पर मण्डोली गांव के पास एक भूखण्ड खरीद कर वेद पाठशाला के लिए एक भवन बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसायटी की ओर से तैयार करवाया गया। अन्ततः विद्यालय संकट मोचन आश्रम, रामकृष्णपुरम, नई दिल्ली से अपने नवनिर्मित भवन में स्थानान्तरित हो गया। यह वेद पाठशाला आज भी कार्यरत है।

द्वितीय विश्व वेद सम्मेलन

दिल्ली में दिसम्बर 1998 में पंच दिवसीय द्वितीय विश्व वेद सम्मेलन का आयोजन किया गया। सत्यनारायण जी मौर्य ने और अधिक परिष्कृत रूप में वेद प्रदर्शनी लगायी। सम्मेलन में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी, मणिरामदास छावनी-अयोध्या के श्रीमहंत नृत्यगोपालदास जी महाराज,, डॉ मुरलीमनोहर जोशी, भानुप्रताप शुक्ल सरीखे प्रमुख महानुभाव सम्मेलन में भिन्न-भिन्न अवसरों पर पधारे थे। इस बार चारों वेदों की 11 शाखाओं के विद्वान सम्मेलन में आए। पिप्पलाद शाखा के इकलौते विद्वान उड़ीसा से आए थे।

सम्मेलन में 33 वेदज्ञ ऐसे थे, जिनके परिवारों में कुल परम्परा से वेद मंत्रों की रक्षा की जा रही थी। इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए महर्षि सान्दीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान-उज्जैन (भारत सरकार का उपक्रम), उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार, तिरुपति तिरुमला देवस्थानम् ने सहयोग प्रदान किया। सम्मेलन का यह लाभ मिला कि वेद पाठशालाओं की संख्या बढ़ने लगी।

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वेद विद्यालय में 40 अध्यायों के 1975 मंत्रों को कराया जाता है कंठस्थ
बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसायटी द्वारा संचालित वेद पाठशाला से वेदमंत्र सीखे छात्रों ने इलाहाबाद, लखनऊ, अयोध्या, कानपुर, काशी, हरिद्वार में आचार्य रूप में वेद पाठशालाएं प्रारम्भ कीं। सभी वेद विद्यालयों में शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनीय शाखा के 40 अध्यायों के 1975 मंत्रों को कंठस्थ कराया जाता है।

उत्तर प्रदेश में वेद विद्यालय का कार्य देख रहे शम्भू जी ने  बताया कि वेद छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिवर्ष माघ मास में इलाहाबाद में संगमतट पर 15 दिवसीय शिविर लगाया जाता है। सभी विद्यालयों के छात्र शिविर में आते हैं।

शारीरिक विकास के लिए खेलकूद, योगासन, सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास कराते हैं, आन्तरिक परीक्षा ली जाती है। छोटी-छोटी टोलियों में छात्र विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं। छात्रों के बीच सन्त-महापुरुषों व अन्य श्रेष्ठ लोगों के प्रवचन होते हैं। छात्रों के बीच भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।

विद्यालयों में बच्चों को अंग्रेजी गणित व सामाजिक विषयों का अभ्यास भी कराते हैं। संस्कृत विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं में छात्र बैठते हैं। अनेकों छात्रों ने शास्त्री (स्नातक) अथवा आचार्य (स्नातकोत्तर) अथवा शिक्षा शास्त्री (बी.एड) परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अनेक छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। झण्डेवाला टेम्पल सोसायटी द्वारा संचालित विद्यालय में वेद मंत्रों के पद-पाठ एवं शतपथ ब्राह्मण का अभ्यास छात्र कर रहे हैं। वेद मंत्रों के संरक्षण का यह कार्य अशोक