गुना। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॅारिटी द्वारा हाल ही में ब्रांडेड दवाइयों की कीमतें कम की गई है। मॉलिक्यूल्स की नई रेट लिस्ट जारी होने के बाद दवा निर्माता कंपनियों ने कम कीमतों वाली दवाइयां बाजार में उतार दी हैं।
इसके बावजूद शहर में अभी भी मेडिकल स्टोर्स पर ग्राहकों को पुरानी कीमतों वाली दवाइयां ही बेंची जा रही हैं। दवा विक्रेता खुलेआम ग्राहकों से ज्यादा पैसे वसूल रहे है। इतना ही नहीं कई दवा विक्रेता तो ग्राहकों को बिल तक नहीं देते हैं, और न ही दवा वापस करते हैं।
इस बारे में दुकानदारों का कहना है कि दुकानों में पुरानी कीमतों वाली दवाइयों का स्टॉक भरा हुआ है। अभी तक कंपनी की ओर से स्टॉक की वापसी नहीं हुई है। जबकि नियमों के मुताबिक अथॉरिटी ने सभी दवा कंपनियों को दुकानों से स्टॉक वापस मंगवाकर रेट स्टीकर्स बदलने के आदेश दिए है।
गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व ही ब्रांडेड दवाइयों की कीमतों में भारी गिरावट आई है। यह गिरावट 10 से 70 फीसदी तक है। इस कारण बाजार में सैकड़ों दवाइयां सस्ती हो गई हैं, यह गिरावट पूरे देश में आई है।
बड़ी चुनौती बना दवा बेचना
यूं तो दवा निर्माता कंपनियों ने कम कीमत वाली दवाइयां तैयार कर बाजार में भेजना शुरू कर दिया हैं, लेकिन बाजार में अब भी पुरानी कीमत वाला बड़ा स्टॉक है। ऐसे में इन्हें खपाना और कम कीमतों वाली दवाइयों को बाजार में लाना निर्माता कंपनियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है, इसे ध्यान में रखकर कई कंपनियों ने बाजार से पुरानी कीमतों वाला स्टॉक वापस मंगवाकर उस पर कम कीमत वाले स्टीकर्स लगा दिए, ताकि लोगों को कम कीमत वाली दवाइयां उपलब्ध हो सकें।
गुना शहर में मेडीकल दुकानों की संख्या करीब दो दर्जन के करीब है। लेकिन ऐसे मेडीकल संचालक को तलाशना मुश्किल है, जिसने गिरावट के बाद भी दाम कम किए हो। इसमे दवा कंपनी की मनमानी भी सामने आ रही है। निर्माता कंपनियों को यह गाइड लाइन जारी की गई थी, कि वे प्रिंटरेट को गिरावट के आधार पर दवाओं के स्टीकर पर मर्ज करे। लेकिन कंपनियां ने प्रिंटरेट में कोई बदलाव नहीं किया है। इसमे सबसे अधिक चूना दवा खरीदने वालों को लग रहा है।
दाम से ज्यादा करते वसूल
शहर में दवा विक्रेताओं द्वारा खुलेआम ग्राहकों से ज्यादा पैसे वसूले जाते हैं। जबकि दवाईयों के ऊपर रेट के अनुसार ग्राहकों से रुपए नहीं लिए जाते हैं। अगर ग्राहक इनसे दवा पर लिखे हुए रेट की बात करता है, तो कंपनी की नीतिगत और उन बातों में उलझा दिया जाता है। जिसका दवा खरीददार को कोई वास्ता तक नहीं।
कई बार मरीज की बिगड़ी हुई हालत को देखकर लोग दवाओं की कीमतों पर ध्यान नहीं देते। मेडीकल संचालक सबसे अधिक इसी बात का फायदा उठाते हैं। शहर सभी मेडीकल स्टोर्स पर यही हालत देखने को मिलती है। ग्राहकों द्वारा इन दवाईयां खरीदने पर बिल मांगा जाता है, तो उन्हें बिल भी नहीं दिया जाता है। जबकि ग्राहक को ज्यादा जरुरत होती है, तो उसे सादा पर्ची पर लिखकर दे दिया जाता है। जिससे ग्राहक को उस पर्ची से ही संतुष्ट होना पड़ता है।
10 से 70 फीसदी गिरावट
नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी द्वारा ब्रांडेड दवाइयों की कीमतों में 10 से 70 फीसदी की गिरावट की गई। जबकि दुकानदारों पर इसका कोई असर नहीं है। जिन दवाओं की रेट लिस्ट उनकी पैकिंग पर कम है। उन पर दुकानदार अपनी रेट लिस्ट की पर्ची डाल रहे है। ताकि इस गिरावट के बाद भी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बटोर सके।
कमाल की बात तो यह है, कि इन दिनों कुछ ऐसी ब्रांडेड कंपनियां है, जिन्होंने ने दवाओं की पैकिंग में दवा की निर्माण अवधि में वर्ष 2016 की अवधि अंकित कर रखी है। जबकि 2015 की अभी तक समाप्ति तक नहीं हुई है। इन चौंकाने वाले तथ्यों के सामने आने के बाद भी औषधि विभाग मेडीकल दुकानदार और दवा निर्माता कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा।
रजिस्टर में नहीं दर्ज हो रही एंट्री
औषधि विभाग की सख्त हिदायत है, कि वह मेडीकल संचालक अपने संस्थानों से बिकनी वाली हर दवा के स्टाक को रजिस्टर में दर्ज करने के साथ ही पर्चे पर बेची जाने वाली दवाओं की एंट्री भी करें। लेकिन दुकानदार इस नियम का कोई पालन नहीं कर रहे हैं। बिना पर्चे की दवाओं की बिक्री पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई जा चुकी है। इसके बाद भी मेडीकल संचालक बिना डाक्टर के लिखे पर्चे पर दवाओं बेच रहे हैं।