नई दिल्लीI पूर्व सेना प्रमुख और विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह का कहना है कि राज्य सभा में उपस्थित होना उनके लिए एक विस्मयकारी अनुभव था। लेकिन जिस तरह से उन्होंने देश की ऊपरी प्रतिनिधि सभा के कुछ सदस्यों को राजनीति के चूहे-बिल्ली वाले तुच्छ खेल में लिप्त पाया, उसका वर्णन करना उनके लिए काफी पीड़ादायी है।
सोशल मीडिया में शुक्रवार को विदेश राज्य मंत्री जनरल वी. के. सिंह ने अपनी एक पोस्ट में राज्यसभा में हुए अपने अनुभव को साझा किया I जनरल सिंह ने कहा कि उन्हें हमेशा से विश्वास था कि हमारे देश की ऊपरी प्रतिनिधि सभा में ज्ञान, अनुभव, विवेक का महासमागम होता होगा और देश के प्रतिनिधि भारत के जटिल मुद्दों पर तर्क-वितर्क कर के समाधान तलासते होंगे।
उन्होंने अल्प-मानसिकता से दूषित राजनीति से परे, राज्य सभा में राष्ट्रहित के सर्वोपरि होने की अपेक्षा की थी। परन्तु उनका यह विश्वास भीषण रूप से तब आहत हुआ, जब उन्होंने राज्य सभा के कुछ सदस्यों को राजनीति के चूहे-बिल्ली वाले तुच्छ खेल में लिप्त पाया और इसका वर्णन करना भी उनके लिए पीड़ादायी है।
जनरल सिंह ने लिखा है कि यह उनके विश्वास के परे था कि राज्य सभा में कुछ सदस्य उन्हीं तत्वों के प्रकार प्रतीत हो रहे थे, जिनसे हमें बचपन से सावधान रहना सिखाया जाता है। यह सदस्य ऐसे ही हैं, या राजनैतिक अस्तित्व के दबाव में ऐसे बन गए हैं, इसका अनुमान आप ही लगा सकते हैं। जो भी हो, हमारे देश के महान निर्माता और संस्थापक यह दृश्य देख कर लज्जित अवश्य हुए होंगें।
जनरल सिंह के अनुसार उन्होंने कुछ दिन पहले एक टिप्पणी में कहा था कि कानून-व्यवस्था राज्य सरकार का जिम्मा होती है और एक उपमा दे कर यह समझाने का प्रयास किया था कि हर दुर्घटना का दोषारोपण केंद्र सरकार पर करना अनुचित है।
स्कूल जाने वाले छोटे बच्चे इस उपमा को सही समझ जाते, परन्तु जिन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य इस सरकार को असली मुद्दों से विमुख कर के काल्पनिक मुद्दों से जुझाना बना लिया है, उनके लिए यह एक सुनहरा अवसर था।
सुपाड़ी पत्रकारिता और विभाजक राजनीति के उपासक यकायक जागृत हो उठे। वैसे यह भी प्रतीत हो रहा था कि शहज़ादे वास्तविकता से कट चुके हैं। सरकार ने मेहनत से कम समय में वह सब संभव कर दिखाया जो भारत इतिहास में अभूतपूर्व है।
एक लोकप्रिय सरकार अपने प्रदर्शन से जनता में और ज़्यादा प्रिय हो गयी थी। अगर ऐसे ही चलता रहा तो इनका नम्बर नहीं आने वाला। युक्तियां जब विफल होने लगीं, तो खिसियाई बिल्ली-खम्बा नोचने ही लगी।
जनरल सिंह ने कहा कि फरीदाबाद में जो अपराध हुआ, वह निस्संदेह निंदनीय एवं दुखद था। मगर खुद को दलितों का मसीहा बता कर उस अपराध को जाति का रंग देना और देश की संवेदनशीलता को हवा देकर, वातावरण विषैला करना उससे बड़ा और जघन्य अपराध है।
जनरल सिंह ने राज्यसभा सदस्यों से कहा कि देश का आम आदमी बेशक उन किराये के गुण्डों जितना शोर न मचाता हो, भले ही वह आपके इस नाटक के प्रति सहनशील हो, मगर उसे बुद्धू समझने की भूल मत करिये। वह सब जानता और सब समझता है।
आप मुझे निशाना बना कर कहते हैं कि मैं देश को धर्म और जाति के नाम पर बांट रहा हूँ? लेकिन मेरे सिद्धांत वहां गढ़े गए हैं, जहां देश के लिए जान दी जाती है। भगवान का शुक्र है कि भारतीय सेना इन घटिया बातों में न कभी पड़ी है और न कभी पड़ेगी। हम सिर्फ देशभक्त हैं और बस यही रहना चाहते हैं। बाकी और कुछ हमारे जज़्बे का अपमान है।
मुझे राजनैतिक पद न तो विरासत में मिला है और न ही कोई कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा है। वह अभी भी बस एक सैनिक हैं, जो देश की सेवा में सब कुछ अर्पण करने का दम रखता है। देशवासी मुझे जानते हैं और साथ ही सदस्यों के राजनैतिक नाटक को भी जानते हैं।