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रेवदर में कांग्रेस के आंदोलन के मायने क्या? - Sabguru News
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रेवदर में कांग्रेस के आंदोलन के मायने क्या?

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रेवदर में कांग्रेस के आंदोलन के मायने क्या?

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सबगुरु न्यूज-सिरोही। प्रदेश भाजपा सरकार के दो साल 13 दिसम्बर को पूरे होने वाले हैं। आमतौर पर विपक्ष का आंदोलन उसी दिन होता है जब सरकार जयपुर में जश्न मनाने में व्यस्त होती है, लेकिन इस बार विपक्ष के रूप में कांग्रेस एक दिन पहले ही सत्ताधारी भाजपा की दो साल की विफलताओं के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने जा रही है, लेकिन इस बार रेवदर को कांग्रेस की ओर से मुख्य आंदोलन का केन्द्र बनाना और खुद प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की ओर से इसकी अनुमति दिया जाना अपने आप में आश्चर्यजनक है।
दरअसल, सिरोही में कांग्रेस के तीन गुट हैं उनमें संयम लोढ़ा के समक्ष सबसे मजबूत गुट नीरज डांगी का माना जाता है, शेष में कांग्रेस में दोनों प्रमुख गुटों के नेताओं के विरोधियों का जमावड़ा है। विपक्ष के रूप में सिरोही विधानसभा में जिस तरह से कांग्रेस मुखर रही है, वैसा कुछ भी कांग्रेस रेवदर विधानसभा में नहीं कर पाई।

रेवदर विधानसभा नीरज डांगी का चुनाव क्षेत्र रहा है, यहां पर संयम लोढ़ा की मौजूदगी में कांग्रेस का जिला स्तरीय प्रमुख आंदोलन होना लोगों को दो कयास लगाने को मजबूर कर रही है।

पिछले दिनों जयपुर में रेवदर के कांग्रेस के पदाधिकारियों के द्वारा सचिन पायलट और केन्द्रीय कांग्रेसी नेताओं के समक्ष जताए गए विरोध के बाद यह दूसरा मौका होगा जब लोढ़ा गुट को डांगी के समक्ष इस तरह की बढ़त हासिल हुई है।

इस आंदोलन को डांगी के क्षेत्र में लोढ़ा की घुसपैठ के रूप में देखा जा रहा है। दूसरा यह क्षेत्र किसानों को प्रमुख क्षेत्र रहा है। इस क्षेत्र में एक बड़ा आंदोलन खड़ा करके कांग्रेस खुदको किसानों की हितैषी के रूप में भी प्रदर्शित करने के प्रयास में मानी जा रही है।

वैस सुराज संकल्प यात्रा के दौरान खुद वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सिरोही जिले में अपने अभियान की शुरूआत रेवदर से की थी। यहां पर अपने भाषण में राजे ने बड़ी लम्बी चौड़ी सूची गिनवाई थी, जिसका दस प्रतिशत काम भी जमीन पर नजर नहीं आया है, खासकर शिक्षा, चिकित्सा, पेयजल व रोजगार को लेकर तो कोई भी वादा राजे यहां पर पूरा नहीं कर पाई हैं। कांग्रेस को भाजपा की विफलता गिनाने के लिए इससे बेहतर स्थान शायद ही मिल पाए।

लोढ़ा पिछले करीब एक महीने से राज्यमंत्री ओटाराम देवासी के लिए नाक का बाल बने हुए हैं, ऐसे में रेवदर में हो रहे आंदोलन से देवासी जरूर राहत महसूस कर रहे होंगे, लेकिन धरना सफल होता है तो भाजपा और डांगी गुट के लिए यह सुसमाचार नहीं होगा।

वैसे यह बात दीगर है कि आज भी लोगों को यही कहना है कि सिरोही विधानसभा में भी लोढ़ा सिर्फ आक्रमकता ही दिखा पाएं हैं, भाजपा के कथित रूप से भ्रष्टाचार में डूबे नेताओं को कानूनी पचड़े में डालने में नाकामयाब ही रहे हैं जबकि वह ऐसा करने में सक्षम हैं। ऐसे में लोग उनके आक्रामक तेवर को सिर्फ हंगामा मचाने वाले मकसद से जोड़ते हुए सूरत बदलने के प्रति गैर संजीदगी मानते आ रहे हैं। उनके यह मानने के पीछे एक वजह यह भी है कि कांग्रेस के तमाम हंगामों के बाद भी सत्ता और प्रशासन में अनियमितता और जनता की अनदेखी रुकने का नाम नहीं ले रही है।
ओझल हैं कई कांग्रेसी
कांग्रेस शासन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सिरोही आगमन पर या उनके जयपुर में किसी कार्यक्रम में सबसे करीबी दिखने वाले सिरोही के कई कांग्रेसी विपक्ष के दौरान अंडरग्राउड हो चुके हैं।

सत्ता पक्ष में अधिकारियों के चैम्बरों में सफेद झब्बा कुर्ता टांगकर मुख्यमंत्री के करीब होने की धोंस जमाते हुए उठने बैठने वाले वो कांग्रेसी नेता दुर्दिन में कांग्रेस के लिए न तो कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर पाए और न ही अब तक जिले में हुए किसी बड़े प्रदर्शन में अपनी भागीदारी निभा पाए।

यही कारण रहा कि सिरोही विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर सिरोही के पिण्डवाडा-आबू व रेवदर विधानसभा में तमाम समस्याओं के बाद भी वहां पर हावी रहे कांग्रेस के धड़े के नेता जनता के हितों के लिए कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर पाए। इससे भाजपा की विफलताओं को गिनाने का बड़ा मौका हाथ से गंवाया है।