नई दिल्ली। राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से भारत में वेश्यावृत्ति को वैध बनाने से संबंधित एक प्रस्ताव आठ नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति के समक्ष पेश किया जाएगा।…
आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने बुधवार को अपने बयान में कहा कि सुप्रीमकोर्ट की समिति वेश्यावृत्ति को वैध बनाने से संबंधित इस प्रस्ताव को आठ नवंबर को प्रस्तावित राष्ट्रीय रायशुमारी में पेश करेगी। सुप्रीमकोर्ट ने इस समिति का गठन वर्ष 2010 में यौनकर्मियों के पुनर्वास को लेकर दाखिल की गई जनहित याचिका के बाद किया है।
न्यायालय ने 24 अगस्त, 2011 को अपने आदेश में एनसीडब्ल्यू को समिति की बैठकों में शामिल होने का निर्देश दिया था। कुमारमंगलम ने क हा कि यौनकर्मियों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान पूर्वक जीवनयापन की परिस्थिति मुहैया कराने के लिए समिति को अनैतिक आवागमन (निवारण) अधिनियम-1956 (आईटीपीए) में संभावित संशोधन के लिए कुछ निश्चित सिफारिशें करनी होंगी।
कुमारमंगलम ने उस मीडिया रपट का खंडन किया है, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने वेश्यावृत्ति को वैध बनाने से संबंधित प्रस्ताव मंत्रिमंडल क ी बैठक में पेश करने की योजना बनाई है। यौनकर्मियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हालांकि एनसीडब्ल्यू के इस प्रस्ताव पर चिंता और नाराजगी जाहिर की है।
सेंटर ऑफ सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा कि वेश्यावृत्ति को वैधता प्रदान करना अंतरराष्ट्रीय श्रम स ंगठन (आईएलओ) की सम्मानजनक कार्य की परिभाषा के खिलाफ है, क्योंकि आइएलओ वेश्यावृत्ति को संकट के कारण देह की बिक्री मानता है।
देह व्यापार को अपराध की श्रेणी में रखे जाने की जगह हम यौनकर्मियों का शोषण करने वाले लोगों के हाथ में और ताकत सौंप रहे हैं। इसके जरिए हम यौनकर्मियों को किसी सामान की तरह बर्ताव कर रहे हैं जिसे बाजार में खरीदा-बेचा जा सकता