नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत पांच आरोपितों को पटियाला कोर्ट से जमानत मिल गई है। सोनिया गांधी को कहना पड़ा है कि कोर्ट के लिए सभी बराबर है। यह बोध अगर उन्हें पहले ही हो जाता तो शायद अदालत की निष्ठा पर सवाल नहीं उठता और कांग्रेसियों को देशव्यापी प्रदर्शन नहीं करना पड़ता।
इसमें संदेह नहीं कि चंद मिनटों में ही कांग्रेसियों ने नेशनल हेराल्ड केस में जमानत की जंग जीत ली है। जमानत लेने और न लेने की कश्मकश के बीच सोनिया और राहुल के वकीलों ने जिस तरह कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की उसे देखते हुए कांग्रेस आलाकमान के जेल जाने से न डरने वाला जुमला बेमानी हो गया है।
उनकी जमानत लेने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कांग्रेस के लगभग अधिकांश बड़े दिग्गजों का कोर्ट पहुंचना इस बात का द्योतक तो है कि भ्रष्टाचार के समर्थन में कांग्रेस किसी भी सीमा को पार कर सकती है। यह अपने तरह की अलग क्रांति है, जिसमें भ्रष्टाचार के आरोपितों को बलिदानी साबित करने का बड़ा प्रयास कांग्रेसियों ने किया है।
सियासी शहादत की हमदर्दी जुटाने में माहिर कांग्रेस ने तीन तिकड़म से नरेंद्र मोदी पर वार करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। यह जानते हुए भी कि यह याचिका मोदी सरकार के गठन से पूर्व दाखिल की गई थी, इसके बाद भी प्रधानमंत्री को दोषी ठहराना किस लिहाज से न्याय संगत है। कांग्रेस कह रही है कि वह डरती नहीं है, लेकिन लड़ती रहेगी। अब उन्हें यह कौन समझाए कि बिना डर के न प्रीति होती है और न ही संघर्ष। अगर कांग्रेस डरती नहीं है, तो सामान्य कानूनी औपचारिकता पूरी करने के लिए देशभर के कांग्रेसियों को लामबंद करने की जरूरत क्या थी।
भ्रष्टाचार के समर्थन में यह किस तरह की क्रांति है, क्या यह जमानत पर सियासत का मामला नहीं है। इस बावत शायर के चंद शेर याद आते हैं- ‘जमाना जानता है कि किसका दामन चाक कितना है। तिरे बदनाम करने से कोई बदनाम क्या होगा। तुम्हारे चाहने वाले मुबारक हो तुम्हें लेकिन, जो हमने कर दिया वो दूसरों से काम क्या होगा।’
कांग्रेसियों की एकजुटता पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के साथ ही कांग्रेसियों की कुंभकर्णी निद्रा टूटी है और अब वे सरकार के हर कार्य में विरोध की संभावना तलाश रहे हैं। संसद को कांग्रेस ने पहले ही पंगु कर रखा है। उसके विरोध और असहयोगी रवैये को देखते हुए सरकार ने जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण बिल को इस सत्र में पारित कराने का इरादा ही बदल दिया है।
एक ओर तो कांग्रस न्यायपालिका के सम्मान की दुहाई देती है, दूसरी ओर वह उसकी कार्रवाई में भी राजनीतिक दुरभिसंधि का अवलोकन करती है। कांग्रेसियों का दिल्ली, भोपाल, मुंबई समेत विभिन्न शहरों में प्रदर्शन इसका प्रमाण है। एक ओर तो कांग्रेस प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए कच्छ के रण में बने अस्थायी बुलेट प्रूफ टेंट की लागत पर सवाल उठा रही है। उसे 33 लाख का खर्च अनावश्यक लग रहा है लेकिन राहुल और सोनिया गांधी की पेशी को लेकर की गई सुरक्षा व्यवस्था पर देश का कितना धन बर्बाद हुआ है, इस बाबत भी क्या कांग्रेस विचार करेगी।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी के समर्थन में कांग्रेसियों ने देशभर में प्रदर्शन किए हैं। क्या उन्हें लगता है कि नेशनल हेराल्ड की संपत्ति सुरक्षित है। उसे कौडि़यों के भाव बेचा नहीं गया है। शेयरों के हस्तांतरण में कोई धांधली नहीं हुई है। कांग्रेस कह रही है कि सांच को आंच नहीं और अगर ऐसा है तो फिर वह विरोध-प्रदर्शन का नाटक क्यों कर रही है? उसका विरोध प्रदर्शन कहीं सरकार, न्यायपालिका और अधिकारियों की परेशानियों पर बल डालने का उद्योग तो नहीं है।
सच तो यह है कि कांग्रेस भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का उपद्रवी जामा पहना रही है। एक पुरानी कहावत है कि तीन छिपाए ना छिपै चोरी, हत्या, पाप। व्यक्ति को अपने किए कर्मों की सजा तो भुगतनी ही पड़ती है। सोनिया और राहुल इसके अपवाद कैसे हो सकते हैं? गिरोहबंद होकर अपराधी को बचाया तो जा सकता है लेकिन क्या यह राष्टकृहित के अनुकूल है।
कांग्रेस के आचरण पर इन दिनों सर्वत्र अंगुलियां उठ रही हैं। भ्रष्टाचार उन्मूलन इस देश की जरूरत है। बेहतर तो यह होता कि कांग्रेस न्यायपालिका को अपना काम करने देती। अधिकारियों को धर्म संकट में डालना, बेवजह नारेबाजी व प्रदर्शन करना अथवा न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाना यथोचित नहीं है और इस देश का कोई भी संभ्रांत नागरिक इस उद्दंडता के लिए कांग्रेस को माफ नहीं कर सकता।
भ्रष्टाचारी कोई भी हो, दंडनीय है। नेहरू का अखबार, कांग्रेस का कारोबार, पत्रकारों को भुखमरी के बियावान में झोंकने का अत्याचार आखिर कितना न्यायसंगत है। अगर नेशनल हेराल्ड पर कांग्रेस का मालिकाना हक था तो उसने उसे चलाए रखने की बजाय उसकी संपत्ति बेची क्यों? गिरोहबंद होकर न्याय को प्रभावित करने की मंशा इस देश को स्वीकार्य नहीं है। कांग्रेस अगर अपने अध्यक्ष की भावना को समझती तो वह उनकी कोर्ट में पेशी को तमाशा हरगिज न बनाती।
भ्रष्टाचार के पुरजोर समर्थन के बाद देश भी पसोपेश में है कि कांग्रेस इस देश में दरअसल किस तरह की क्रांति कर रही है। नेहरू गांधी परिवार की कोर्ट पेशी का यह पहला मामला तो वैसे भी नहीं है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी भी कोर्ट में पेश हो चुके हैं। राहुल गांधी भी इससे पहले संघ परिवार पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर मानहानि के एक मुकदमे में भिवंडी की कोर्ट में पेश हो चुके हैं।
मनमोहन सिंह भी अदालत में पेश होकर अपना पक्ष रख चुके हैं, जब उस समय इस न्यायिक प्रक्रिया में राजनीतिक दुर्भावना की गंध नहीं आई तो फिर नेशनल हेराल्ड प्रकरण को इतना तूल देने की जरूरत समझ नहीं आती। कांग्रेस इस देश को या तो बुद्घि से पैदल मानती है या उसके दिमाग से कुछ ओर है, यह तो भविष्य ही तय करेगा।
-सियाराम पांडेय ‘शांत’