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देश के हर नागरिक को मिले पीने का स्वच्छ पानी - Sabguru News
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देश के हर नागरिक को मिले पीने का स्वच्छ पानी

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देश के हर नागरिक को मिले पीने का स्वच्छ पानी
should govt provide clean drinking water to Every citizen
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पीने का पानी कैसा हो इस विषय पर वैज्ञानिकों ने काफी प्रयोग किये हैं और पानी की गुणवत्ता को तय करने के मापदंड बनाये हैं। पीने के पानी का रंग, गंध, स्वाद सब अच्छा होना चाहिए। ज्यादा कैल्शियम या मैगनेशियम वाला पानी कठोर जल होता है और पीने के योग्य नहीं होता है।

पानी में उपस्थित रहने वाले हानिकारक रसायनों की मात्रा पर भी अंकुश आवश्यक है। आर्सेनिक, लेड, सेलेनियम, मरकरी तथा फ्लोराईड, नाईट्रेट आदि स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। पानी में कुल कठोरता 300 मिली ग्राम प्रति लीटर से ज्यादा होने पर पानी शरीर के लिये नुकसानदायक हो जाता है। पानी में विभिन्न बीमारियों के कीटाणुओं का होना, हानिकारक रसायनों का होना, कठोरता होना पानी को पीने के अयोग्य बनाता है।

पीने का जल शुद्ध हो, प्यास बुझाये, मन को प्रफुल्लित रखे, तभी वह शुद्ध पेयजल होता है। धरती की सतह के लगभग 70 हिस्से में होने के बावजूद अधिकांश पानी खारा है। पीने का पानी समुचित रूप से उच्च गुणवत्ता वाला पानी होता है जिसका तत्काल या दीर्घकालिक नुकसान के न्यूनतम खतरे के साथ सेवन या उपयोग किया जा सकता है। स्वच्छ पानी धरती के लगभग सभी आबादी वाले क्षेत्रों में उपलब्ध है।

भारत में पेयजल की समस्या काफी विकट है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के ज्यादातर बड़े हिस्सों में पीने योग्य पानी तक लोगों की पहुंच अपर्याप्त होती है और वे बीमारी के कारकों, रोगाणुओं या विषैले तत्वों के अस्वीकार्य स्तर के पानी का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह का पानी पीने योग्य नहीं होता है। पीने या भोजन तैयार करने में इस तरह के पानी का उपयोग बड़े पैमाने पर दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बनता है, साथ ही कई देशों में यह मौत और विपत्ति का एक प्रमुख कारण है। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्ष्य है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से लोगों तक स्वच्छ जल की पहुंच का आंकड़ा बढ़ा है। वर्ष 1991 में जहां देश के सिर्फ 62 फीसदी परिवारों तक स्वच्छ पेयजल की पहुंच थी, वहीं 2001 में यह आंकड़ा बढक़र 71 फीसदी तक पहुंच गया। 2011 में यही आंकड़े 86 फीसदी पहुंच गए थे। इसमें ग्रामीण इलाके के 83 फीसदी और शहरी इलाकों के 91 फीसदी लोग शामिल थे।

देश में कहने को तो 86 प्रतिशत लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध है, लेकिन पूरे देश में स्वच्छ एवं प्रदूषण रहित पेयजल का उपयोग करने वालों की संख्या 40-45 प्रतिशत के बीच ही है। बाकी लोग तो जैसे भगवान भरोसे हैं। प्रदूषित पेयजल का उपयोग करने से लोगों, खासतौर पर बच्चों को डायरिया होने का खतरा मंडराता रहता है, वहीं पानी में घुले अन्य पदार्थों की वजह से हड्डियों के कमजोर होने, टेढ़े होने, पेट सम्बंधी बीमारियां और कैंसर जैसे जानलेवा रोगों के होने की आशंका बरकरार रहती है।

भारत सरकार दावा भले ही कुछ भी करे, लेकिन हालात यह है कि देश के लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करा पाना आज भी एक बड़ी चुनौती है। देश के ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 15 करोड़ लोगों को पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक,उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार आदि राज्यों में रहने वाले अधिसंख्य आदिवासी नदियों, जोहड़ों, कुएं और तालाबों के पानी पर ही निर्भर हैं।

आदिवासी बहुल इलाके में विकास की कोई भी रोशनी आजादी के इतने साल बाद भी नहीं पहुंच पाई है। देश के कई ग्रामीण इलाकों में कुएं और ट्यूबवेलों के पानी का उपयोग करने वाली आबादी को यह भी पता नहीं होता है कि वे जीवित रहने के लिए जिस पानी का उपयोग कर रहे हैं, वही पानी धीरे-धीरे उन्हें मौते के मुंह में ले जा रहा है।

नदियों के किनारे बसे शहरों की स्थिति तो और भी बदतर है। इन नदियों में कल-कारखानों और स्थानीय निकायों द्वारा फेंका गया रासायनिक कचरा, मल-मूत्र और अन्य अवशिष्ट उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं। इन नदियों के जल का उपयोग करने वाले कई गंभीर रोगों का शिकार हो रहे हैं। इससे बचने का एक ही रास्ता है कि लोगों को नदियों को गंदी होने से बचाने के लिए प्रेरित किया जाए। उन्हें यह समझाया जाए कि उनके द्वारा नदियों और तालाबों में फेंका गया कूड़ा-कचरा उनके ही पेयजल को दूषित करेगा। कल-कारखाने के मालिकों को इसके लिए बाध्य करना होगा कि वे नदियों में प्रदूषित और रासायनिक पदार्थों को नदियों में कतई न जाने दें। यदि कोई ऐसा करता पाया जाए, तो उसे कठोर दंड दिया जाए।

जब तक हम जल की महत्ता को समझते हुए नदियों को साफ रखने की मुहिम का हिस्सा नहीं बनते हैं, तब तक नदियों को कोई भी सरकार साफ नहीं रख सकती है। गंगा सफाई योजना के तहत हजारों करोड़ रुपये खर्च हो गए, लेकिन अब तक नतीजा सिफर ही निकला है। भले ही सरकारी नीतियां दोषपूर्ण रही हों, लेकिन इसके लिए आम आदमी भी कम दोषी नहीं हैं। दरअसल, प्राचीनकाल में पर्यावरण, पेड़-पौधों और नदियों के प्रति सद्भाव रखने का संस्कार मां-बाप अपने बच्चों में पैदा करते थे।

वे अपने बच्चों को नदियों, पेड़-पौधों और संपूर्ण प्रकृति से प्रेम करना सिखाते थे। वे इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि ये नदियां, नाले, कुएं, तालाब हमारे समाज की जीवन रेखा हैं। इनके बिना जीवन असंभव हो जाएगा, इसीलिए लोग पानी के स्रोत को गंदा करने की सोच भी नहीं सकते थे। वो संस्कार आज समाज से विलुप्त हो गया है। अपने फायदे के लिए बस जल का दोहन करना ही सबका एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हमें इस प्रवृत्ति से बचना होगा।

आबादी के तेजी से बढ़ते दबाव और जमीन के नीचे के पानी के अंधाधुंध दोहन के साथ ही जल संरक्षण की कोई कारगर नीति नहीं होने की वजह से पीने के पानी की समस्या साल-दर-साल गंभीर होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में लगभग 9.7 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं होता। लेकिन यह आंकड़ा महज शहरी आबादी का है। ग्रामीण इलाकों की बात करें तो वहां 70 फीसदी लोग अब भी प्रदूषित पानी पीने को ही मजबूर हैं।

पानी की इस लगातार गंभीर होती समस्या की मुख्य रूप से तीन वजहें हैं। पहला है आबादी का लगातार बढ़ता दबाव। इससे प्रति व्यक्ति साफ पानी की उपलब्धता घट रही है। फिलहाल देश में प्रति व्यक्ति 1000 घनमीटर पानी उपलब्ध है जो वर्ष 1951 में 4 हजार घनमीटर था। जबकि प्रति व्यक्ति 1700 घनमीटर से कम पानी की उपलब्धता को संकट माना जाता है। अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति 8 हजार घनमीटर है। इसके अलावा जो पानी उपलब्ध है उसकी गुणवत्ता भी बेहद खराब है।

भारत नदियों का देश होने के बावजूद यहां की ज्यादातर नदियों का पानी पीने लायक और कई जगह नहाने लायक तक नहीं है। खेती पर निर्भर इस देश में किसान सिंचाई के लिए मनमाने तरीके से भूगर्भीय पानी का दोहन करते हैं। इससे जलस्तर तेजी से घट रहा है। कुछ ऐसी ही हालत शहरों में भी हैं जहां तेजी से बढ़ते कंक्रीट के जंगल जमीन के भीतर स्थित पानी के भंडार पर दबाव बढ़ा रहे हैं। अब समय आ गया है हमें पानी के दुरूपयोग को रोकने के लिये संकल्पित होना होगा व देश की सरकार को भी भोजन के अधिकार की तरह ही पीने का साफ पानी भी देश के हर नागरिक तक उपलब्ध करवाना होगा तभी देश की जनता बिमारियों से बच पायेगी।

– रमेश सर्राफ