लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामाजिक समरसता रूपी अस्त्र के सहारे मिशन यूपी को फतह करने की फिराक में है। भाजपा को उप्रः में सत्ता तक पहुंचाने में यही नुस्खा कारगर साबित हो सकता है।
भाजपा जहां अखिलेश सरकार की नाकामियों को उजागर करते हुए कानून व्यवस्था के मुद्दे से जनता को वाकिफ कराएगी वहीं संघ सूबे में समरसता के बहाने भाजपा के लिए वैचारिक धरातल को मजबूत करेगा। इसकी पूरी रूपरेखा समरसता विभाग ने तय कर ली है।
संघ में बहुत पहले से ही समाज में समरसता का भाव पुष्ट करने के लिए सेवा विभाग काम करता है। लेकिन विशेषकर दलित वर्ग में पैठ बढ़ाने के लिए संघ ने एक नया आयाम समरसता विभाग जोड़ा है। प्रदेश में संघ के जितने भी कार्यक्रम होंगे वह समरसता विभाग के अधिकारियों की देखरेख में ही होगा।
दलितों में पैठ बनाने के लिए संघ ने दो नए आयाम जोड़े हैं। इनमें से एक आयाम सामाजिक समरसता दूसरा सामाजिक सदभाव है। इसके तहत संघ सभी प्रान्तों में एक समरसता प्रमुख बना रहा है। उत्तर प्रदेश में कुल छह प्रान्त है। इन प्रान्तों में एक-एक समरसता प्रमुख बनाए गए हैं।
समरसता प्रमुख की जिम्मेदारी भी संघ के वरिष्ठ प्रचारकों को दी जा रही है जिससे वह असल उद्देश्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध हो सके। समरसता प्रमुख अपने प्रान्तों में दलित वर्ग से जुड़े महापुरूषों की जयंती एवं निर्वाण तिथि पर कार्यक्रम एवं अन्य आयोजनों के बहाने उनके बीच पैठ बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
समरसता विभाग द्वारा प्रथम चरण में डा. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर पर विशेषांक निकालकर जगह-जगह विमोचन कराकर गोष्ठी की गई। इसके बाद डा. अम्बेडकर की जयंती मनाई गई। अब आगे सामाजिक समरसता के पुरोधा व संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहेब देवरस के जन्म शताब्दी वर्ष समरसता पर्व के रूप में मना रहा है।
लोकसभा चुनाव विशेषकर उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली अपार सफलता के पीछे दलित वोटरों का भाजपा के पक्ष में वोटिंग करना था। भाजपा इस झुकाव को बरकरार रखना चाहती है। इसमें भाजपा कितने हद तक सफल साबित होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
गौरतलब हो कि संघ के तीसरे सर संघचालक बाला साहेब देवरस ने सेवा व समरसता के सहारे हिन्दुओं को एक सूत्र में पिरोने का काम किया था। यह सही है कि भाजपा के परम्परागत जनाधार के बाहर शहरी उच्च जातियों और शहरी मध्य वर्ग में विस्तार हुआ है, लेकिन अभी भी पार्टी पर्याप्त संख्या में दलित मतदाताओं को लुभाने में सफल नहीं हो पाई है। इसकी असली परीक्षा 2017 के विधानसभा चुनाव में ही होगा।
सामाजिक समरसता मंच के अवध प्रांत प्रमुख राजेन्द्र ने बताया कि डॉक्टर आंबेडकर केवल दलितों के मसीहा और संविधान के निर्माता ही नहीं थे बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। डॉ साहब भारत की धर्म परम्परा में अटूट विश्वास रखने वाले तथा वामपंथी विचारधारा के कट्टर विरोधी थे।
देश का दुर्भाग्य ही था कि स्वार्थी और विदेशी अंगुलियों पर नाचने वाले लोगों ने पहले तो उनकी प्रतिभा को अपमानित किया बाद में कुछ लोगों ने अपने को डॉ साहब का अनुयायी बताकर एक वर्ग विशेष के रहनुमा की सीमा में बांध कर रख दिया।