चेन्नई। संघ को खाकी पेंट के उपयोग करने से नहीं रोका जा सकता। यह अदालत के अधिकार में नहीं है यह बात मद्रास हाई कोर्ट ने एक याचिका का निस्तारण करते हुए कही है।
कोर्ट ने कहा कि वह इरोड और कन्याकुमारी में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कार्यकर्ताओं के खाकी पैंट पहनने, म्यूजिक बजाने और मार्च के दौरान डंडे लेने पर रोक नहीं लगा सकता। स्थानीय पुलिस ने आएसएस के कार्यकर्ताओं को खाकी पैंट पहनने और म्यूजिक न बजाने की शर्त रखी थी।
पुलिस का तर्क था कि ऐसे ही कपड़े जूनियर पुलिसकर्मी और फायर सर्विस ऑफिसर्स ड्रिल और ट्रेनिंग के दौरान पहनते हैं, इसलिए संघ पर ऐसे कपड़े पहनने पर रोक लगाई जानी चाहिए। इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एम एम सुद्रेश ने फैसले में कहा कि पुलिस के इन तर्कों पर संघ के ड्रेस कोड पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। चेन्नई सिटी पुलिस एक्ट, 1888 यूनिफॉर्म जैसे मामलों पर लागू नही होता।
इस एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो यह बताए कि जूनियर ऑफिसर्स द्वारा ड्रिल और परेड में जो ड्रेस पहनी जाती है वैसी कोई ओर नहीं पहन सकता। ऐसे में कोई भी फैसला लेने से पहले देखना चाहिए कि इससे आम लोगों की जिंदगी पर कितना असर पड़ता है।
पैदल मार्च के दौरान डंडे के इस्तेमाल और वादध यंत्रों के संबंध में कोर्ट ने कहा कि ऐसा भी कोई नियम नहीं है सिर्फ म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट के लेने से सार्वजनिक शांति भंग होती हो। संघ के कार्यकर्ता डंडों का इस्तेमाल हथियार की तरह नहीं कर रहे हैं। यदि वे ऐसा करते तो चेन्नई सिटी पुलिस एक्ट के सेक्शन 41-ए जरुर भंग होता।
मालूम हो कि संघ कन्याकुमारी में नौ जनवरी को मकर संक्राति और 10 जनवरी को इरोड में रामानुजन, विवेकानंद और डॉ. आंबेडकर का वार्षिकोत्सव मनाना चाहता है।