नैनीताल। हिन्दु सनातन धर्म व शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रान्ति का पर्व जिसमें कि सूर्य भगवान दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इस दिन भागीरथ की आराधना से प्रसन्न हो कर गंगा जी देवलोक से पृथ्वी में आई उनके पुरखों को तार कर सागर में विलीन हो गई।
ऐसी अनेक धार्मिक मान्यताएं भारत में चली आ रही हैं। लेकिन कुमाऊॅ की पौराणिक इतिहास के मुताबिक कत्युरी शासन का प्रारम्भ 850ई से 1015ई से कई दशकों व तेरह पीढ़ी तक एक छत्र शासन, जोशीमठ गढ़वाल से होकर बागेश्वर, अल्मोड़ा, रानीखेत, नैनीताल, रामनगर व काली कुमाऊॅ होते हुुए रूहेलखण्ड़ तक फैला था।
जिनकी राजधानी कत्यूर घाटी कार्तिकेयपुर जो गरूड़ बैजनाथ में थी। यह लोग बड़े पराक्रमी तथा कला प्रेमी व देवताओं को मानने वाले थे। इनकी राजधानी कार्तिकेयपुर में निर्मित देवालयों, भवन आदि से इनकी उत्कृष्ट कला का प्रमाण मिलता है। इनके वंशज प्रतापी राजा भूदेव के द्वारा बागेश्वर में बागनाथ का मंदिर व शिलालेख का र्निमाण आदि प्रमुख है।
ऐसा कहा जाता है कि कत्यूरी राजा प्रीतमदेव जिनकी पत्नी व घामदेव की माॅं जियारानी की तपस्थली हल्द्वानी शहर के पास स्थित रानीबाग जो गार्गी नदी के तट से लगा हुआ है। इस स्थान पर आज भी कत्यूरी वंश के लोग आ कर अपने पारम्परिक रीति-रिवाज के साथ देवी जियारानी की शौर्य गाथा रात भर जागर व देवनृत्य के रूप में गा कर रात्री जागरण करते हैं।
दूसरे दिन सुबह गौला नदी में स्नान कर गुफा, जो जिया रानी की साधना स्थली थी व नदी में स्थित चित्रशिला, शिव लिंग जिसमें मनोहारी बूटों की छाप है। इन सबके साथ प्राचीन महादेव मंदिर के दर्शन व परिक्रमा करते हैं।
इसी के समकालीन कुमाऊॅ में चंद वंश के राजा कल्याणचंद केे पुत्र को उनके ही मंत्री ने अपहरण कर राज हड़पने का षड़यंत्र किया था पक्षी कौवा द्वारा राजपुत्र के गले की माला को राज महल में गिरा कर जिन्दा होने का संदेश दे कर पकड़ाया था।
इसलिए मकर संक्रान्ति के दिन बने पकवान घुघुते, वड़े, खजूर आदि कौओं को बुला कर खिलाया जाता है। अन्य जगह श्रृ़द्धालु गण मंदिरो में पूजा-पाठ करते हुए लोगों को शुभकामनाए भी देते हैं तथा बच्चे वहां लगे मेले का आनंद उठाते हैं। इस तरह यह मकर संक्रान्ति पर्व मनाते है।