Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
श्रीनर्मदा जयंती पर्व पर विशेष : पंद्रहवा रत्न है मां नर्मदा - Sabguru News
Home India City News श्रीनर्मदा जयंती पर्व पर विशेष : पंद्रहवा रत्न है मां नर्मदा

श्रीनर्मदा जयंती पर्व पर विशेष : पंद्रहवा रत्न है मां नर्मदा

0
श्रीनर्मदा जयंती पर्व पर विशेष : पंद्रहवा रत्न है मां नर्मदा
Narmada Jayanti festival 2016
Narmada Jayanti festival 2016
Narmada Jayanti festival 2016

पुण्य सलिला पतित पावनी मेकलसुता शिव की वरद पुत्री है। उनके अमृत जल का रसास्वादन मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी किया जाता है। इस बार उक्त पर्व 14 फरवरी 2016 को आया है।

प्रतिवर्षानुसार माघ शुक्ल सप्तमी पर मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार सिंहस्थ वर्ष के मध्य आना कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। मां नम्रदा का पादुर्भाव अश्वनी नक्षत्र तथा मकर राशिगत सर्यू में 12 बजे रविवार को अभिजित वेला में हुआ था।

नर्मदा जी की पूजा अर्चना तत समय से ही प्रचलित है। नर्मदा जी श्वेत बाल पर से निकलती हुई पूर्व गामिनी बह रही है। पूर्व दिशा भगवान सूर्य की दिशा है। जबकि नदियां उत्तर वाहिनी बहती है। जिसका अधिपति ग्रह बुध है बुध और सूर्य के तदात्म्य से बुधादित्य योग बना है।

जो नदियां उत्तर से आकर मां नर्मदा में समाहित हो जाती है। उस स्थान को ज्योतिषी भाषा में बुधादित्य संगम कहा जाता है। बालू की रमणियता के कारण इसे रेवा भी कहा जाता है। तथा इसके मध्य भाग को रेवाखण्ड कहा जाता है। जो संकल्पों में भी उच्चारित होता है।

मां रेखा सीधी समुद्र में मिल जाती है। अतः इनको कुंवारी कन्या की उपमा दी गई है। शास्त्रों में उल्लेख है कि शिवजी को पुत्रियां थी। एक मनसादेवी दूसरी नर्मदा एक विवाहित थी वह थी मनसादेवी उनका विवाह जरत्कारू ऋषि से हुआ था और वे हरिद्वार की पहाड़ी में वास करती हैं।

मनसा का अपने पति से परित्याग होने पर नर्मदा ने कुंवारी रहना स्वीकार किया और वे अद्यतन कुंवारी रही है। उनका यह कार्य उन्हें पुण्य सलिला जिनके दर्शन मात्र से पाप क्षीण हो जाते हैं।

वैसे ये उद्गम स्थल पर बहुत पतली-दुबली होकर बहती है। प्रथम इनकी बहन मनसा भी दुबली पतली होने से जरत्कारू कहलाई। मनसा बड़ी बहन है अतः शिवजी छोटी पुत्री से अधिक स्नेह करते हैं वे नर्मदा जी के सभी कार्य सम्पन्न कराते। वे जो चाहती हैं वे कार्य शिव पूर्ण कर देते हैं।

शास्त्रों उल्लेखित है कि सागर ने नर्मदा को पुत्री समान अपनी गोद में महत्वपूर्ण स्थान दिया। समुद्र में जान पर वह लक्ष्मी को जो सागर से ही उत्पन्न हुई है को अपनी बहन बना लेती है। अतः नर्मदा उपासको के ऊपर लक्ष्मी की भी बहुत कृपा रहती है। वे किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते।

समुद्र उत्पन्ना रमा का भाई चन्द्रमा है क्योंकि वे भी समुद्र से उत्पन्न हुए हैं। अतः चन्द्रमा भी उनका भाई हुआ जो कि उनके पिता शंकर के शीष पर विराजमान रहता है। तथा भाई गणेश के सिर पर केवल चतुर्थी को शोभा बढ़ाने शिव आज्ञा से पदार्पण करता है।

चन्द्रमा अत्रि ऋषि का वन्शज होने से आत्रेय कहलाए। जो कि नारमदीय ब्राहम्णों की गोत्र में समाहित है। नारमदीय ब्राहम्ण नर्मदा जी के वरद् वन्शज हैं। अतः उनकी जयन्ति मनाना उनका परम कर्तव्य है जिसका कि वे पालन कर रहे हैं।

इस प्रकार मां नर्मदाजी की जयन्ती कर्तिका नक्षत्र में आई है जिसका स्वामी सूर्य है। रविवार तो उनका जन्मवार है ही सूर्य चन्द्र से मां का तादात्म्य सृष्टि के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि मां ने समुद्र से मिलकर 14 रत्नों को रूपायित करते हुए स्वयं भी पन्द्रह 15वां रत्न बन गई है। अपने जल का दान क रवह बहुत बड़ी दानी बन गई है। दानी को 15वां रत्न शास्त्रों में घोषित किया है।

यथा- भारत पंचमों वेद सुपुत्र सप्तमों रस दाता पंचदशरत्न जमाता दसमों ग्रह। तथा पृथ्वीम् त्री रत्नानी जल, अन्नम्, सुभाषितम् मुड़े पाषाण खण्डे रत्न संज्ञा विधियते देते हैं।

डॉ. राधेश्याम शर्मा