सबगुरु न्यूज-सिरोही। आचार्य विमलसागरसूरी ने धर्म, संस्कृति और संस्कार विषय पर प्रवचन देते हुए कहा कि आज भी विश्व में भारतीयों से ईष्र्या करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन यदि हमारी जडो में भारतीयता है और हम अपने राष्ट्रगौरव के पोषण के लिए संकल्पित हैं तो कोई भी बाधा, कोई भी विपत्ती और कोई भी शक्ति हमें विश्व का गौरव बनने से नहीं रोक सकती।
आचार्य ने विमल वाणी आयोजन समिति सिरोही की ओर से सुशीलादेवी प्रकाशराज मोदी परिवार के माध्मय से आयोजित प्रवचन में उन्होंने माओत्से तुंग के जीवन से जुडे एक वृतांत को सुनाते हुए कहा कि हमें अपनी जडों को मजबूत करना होगा और हमारी जडें हमारी संस्कृति, संस्कार और सभ्यता है।
उन्होंने अपने आजस्वी प्रवचन में युवाओं की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि हम कहीं ना कहीं हार रहे हैं। परास्त हो रहे हैं। लम्बे समय तक संघर्ष करने का माद्दा हममे नहीं है। आठ सौ सालों तक जिन आक्रांताओं ने हम पर राज किया वो हमारी संस्कृति और संस्कारों को नुकसान नहीं पहुंचा पाए, लेकिन मात्र डेढ सौ साल गुलामी करने वाले अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति, संस्कार, परिधार, भाषा और शिक्षा को इतना प्रभावित कर दिया कि हम अपनी जडों को भूल गए हैं। युवा वर्ग अंग्रेजियत की बेडियों में जकडा हुआ है।
उन्होंने कहा कि भारत का युवा वर्ग कमजोर है। वो मजबूत नहीं है। वो व्यर्थ की बातों में अपना समय व्यर्थ कर रहा है। भाषा हो या अन्य विकृतियां हो उसे हम अपनाते चले गए। भगवान राम, महावीर, बुद्ध, गुरुनानकदेव के इस देश में धर्म, संस्कृति, संस्कार, नैतिकता को लोप होना ही हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव को विदेशियों के सामने शर्मिंदा करने का मौका दे रहे है।
उन्होंने कहा कि हवेनसांग ने अपने भारत भ्रमण के वृतांत में लिखा था कि उस समय तक्षशिला में 19 हजार से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षा लेते थे और 60 से ज्यादा विषय थे।
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विदेशों से भारत में शिक्षा गहण करने के लिए विद्यार्थी आया करते थे। अब उसी भारत के युवा अंग्रेज परस्ती में भारत से बाहर शिक्षा ले रहे हैं और अपने ज्ञान का लाभ देश को देने की बजाय विदेशों को पहुंचा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्र गौरव और राष्ट्र स्वाभिमान की घटती भावना के कारण यह हो रहा है। इसलिए हमें अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराओं और अपने संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अल्प लाभ के लिए हमने अपनी नीयत का इस तरह से पतित कर लिया है कि हमें अपने क्षणिक लाभ के आगे कुछ नजर नही आता। हम भौतिक विकास को ही विकास समझ बैठे हुए हैं।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले हम भले ही कितने ही अत्याचार सहते रहे हों, लेकिन यहां की संस्कृति, यहां की परम्परा, यहां के संस्कार और उनकी जडें भी इतनी मजबूत थी कि विदेशी आक्रांता हमें इतने साल तक भारतीयता से डिगा नहीं सके। उन्होंने कहा कि हमारे यहां पर मांसाहार की संख्या बढती जा रही है, वहां पर शाकाहार बढ रहा है।
उन्होंने कहा कि संस्कति, परम्परा और संस्कारों की तरफ लौटेंगे तो फिर राम राज आएगा। उन्होंने विवेकांनद के शिकागो दौरे का वृतांत सुनाते हुए कहा कि सदियों से भारतीय संस्कृति, सभ्यता, संस्कारों को पश्चिम के लोग नीचा दिखाने का प्रयास करते रहे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के एक वृतांत सुनाते हुए कहा कि ऐसे प्रयासों को हमें भारतीय के प्रति अटूट विश्वास से विफल करना होगा, उन्होने कहा कि विवेकानंद जी की तरह पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को अपने चरणों में रखते हुए मस्तिष्क में भारतीय विचार रखने होंगे। तब जाकर हम राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव को फिर पा सकेंगे।
उन्होंने कहा कि ईसाई समुदाय में साइंटोलाॅजी संप्रदाय है। जो अपने बच्चों को अपने धर्म की परंपरा, संस्कृति, संस्कार वाले माहौल में ही रखते हैं वैसी ही शिक्षा देते हैं। इसमें समाज के कुलीन लोग भी शामिल हैं। हमें भी बच्चों को ऐसी शिक्षा, दीक्षा और माहौल देना चाहिए जो पूरी तरह से भारतीय संस्कृति, भाषा, परिधान, नीति, नीयत से रचा बसा हुआ होवे।
उन्होंने देश के वर्तमान माहौल पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि बोलने के अधिकार के नाम पर कोई कुछ भी बोल दे रहा है, लेकिन कोशिश यह रहनी चाहिए कि मन, कर्म और वचन से कोई ऐसा काम नहीं हो जो हमारे राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान के साथ एकता और अखण्डता के लिए खतरनाक हो। उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि यदि हममे भारतीयता है, नैतिकता है, सदाचार है, शिष्टाचार है, राष्ट्रगौरव है तो हमें कोई भी शोषित और तिरस्कृत नहीं कर सकता है।
प्रवचन के दौरान मंच गिरीश जोशी ने मंच संचालन किया। विरेन्द्र मोदी व मुकेश मोदी ने आभार जताया। प्रवचन के बाद लौटते हुए आचार्य के चरण स्पर्श के लिए लोगों का हुजूम उमड पडा।