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जेएनयू विवादः राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को कोई भी समर्थन कैसे दे सकता हैं : विमलसागर - Sabguru News
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जेएनयू विवादः राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को कोई भी समर्थन कैसे दे सकता हैं : विमलसागर

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जेएनयू विवादः राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को कोई भी समर्थन कैसे दे सकता हैं : विमलसागर

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सबगुरु न्यूज-सिरोही। जेएनयू में राष्ट्रविरोध के नारे लगने के प्रश्न पर आचार्य विमलसागरसूरिश्वर ने कहा कि वाणी स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी नहीं कहना चाहिए। वाणी संयमित होनी चाहिए और राष्ट्रीयता के पक्ष में हम सबको मजबूती से खडे रहना चाहिए। कोई भी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को कैसै समर्थन दे सकते है। वे सिरोही में आदर्श चेरीटेबल ट्रस्ट के मुकेश मोदी के आदर्श नगर स्थित आवास पर पत्रकार वार्ता में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि समाजसेवकों व साधुसंतों का भारतीयों पर पूरा प्रभाव है। साधुसंतों को राजनीति में कोई सीधा हस्तक्षेप नही हैं, लेकिन समाज को जगाने, देश को सुरक्षित रखने और अच्छाइयों को जगाने के लिए साधु-संत प्रयत्नशील रहते भी है और सबको सामूहिक रूप से रहना भी चाहिए।

धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर वर्तमान में देश में मचे बवाल पर उन्होंने कहा कि ये देश को तोडने और बिखेरने के रास्ते हैं। इसलिए हम सबको सोच समझकर कोई कदम उठाना चाहिए और ऐसे प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्ग विद्रोह में वर्तमान युवा पडना नही चाहता है, लेकिन यह भी तय है कि अच्छे लोगों को एक साथ होना आवश्यक है तभी हम गलत प्रयासों को विफल कर सकते हैं।

सच्चाई यह है कि देश विरोध किसी गतिविधि को समर्थन नहीं देता, कुछ अवसरवादी जरूर देश विरोध प्रयासों को समर्थन देते है और आदमी वहीं परास्त होता है। धर्म गुरुओं के लिए आचार संहिता पर उन्होने कहा कि हर धर्म की साधु की अपनी एक आचार संहिता होती है, मानना नहीं मानना व्यक्तिगत बात है। और लोग भी यह समझने लगे हैं कि कौन आचार की पालना कर रहा है और कौन नहीं।

उन्होंने कहा कि साधु संतों के प्रवचनों से बदलाव और सुधार आता है, इसका प्रभाव होता है और परिवर्तन आता है। एकसाथ तत्काल परिणाम नहीं देख पाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे बदलाव आता हैं। एक ही तरह की बाते यदि बार-बार करते हैं तो मस्तिष्क में झंझोडता। उन्होंने कहा कि मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है, समाज में क्या बदलना है, क्या देना है यह उन पर निर्भर करता है। मीडिया के कार्मिकों को उनकी बैनर की नीतियों से बंधे होते हैं इसलिए संभवतः उनके हाथ बंध जाते हैं। मीडिया से लोगों के विचार बहुत प्रभावित होता है, यदि अच्छे विचार और बातें फैलाई जाए तो सकारात्मक परिणाम आता है।

किस तरह से एसक्यू बदलने लगा है काॅर्पोरेट कल्चर

आचार्य विमलसागर ने कहा कि आजकल विदेशों में आईक्यू, ईक्यू को छोड दिया है। अब वहां पर काॅर्पोरेट वल्र्ड में एसक्यू, स्प्रीच्यूअर क्योशेंट को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके तहत मल्टीनेशनल कंपनियां अपने कार्मिकों में सामाजिक और आध्यात्मिक व्यवहार के बारे में सवालात पूछने लगी है और उसी के आधार पर अपनी कंपनी में नियुक्तियां दे रही है। उन्होंने कहा एसक्यू में भारतीयों का कोई सानी नहीं है क्योंकि यही भारतीयता का मूल है।

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