पाली। कृते यद ध्यायतो विष्णुं त्रैतायां जयतो मखैः, द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तिनाम। हरि कीर्तन का लाभ मानव के साथ साथ प्रकृति के संपूर्ण चराचर जीव जगत का प्राप्त हो सके इसी उददेश्य से भक्तराज प्रहलाद से लेकर चैतन्य महाप्रभु, संत तुकाराम, ज्ञानदेव आदि भगवद भक्तों ने गली गली भगवान नाम संकीर्तन के द्वारा प्रभातफेरी की महिमा प्रतिपादित की।
कथा के दौरान भगवदभक्ति को समझाते हुए उन्होंने कहा कि देवता कहते हैं कि हे भगवान मुझे केवल जन्म जन्मांतर में भगवान भक्ति चाहिए और कुछ नहीं। जो जिस भाव से भगवान को पूजता है भगवान भी उसी भाव से उसका ध्यान रखते हैं।
हिरण्यकष्यप ने ब्रहमा की पूजा की उन्हे अपनी भक्ति से मना लिया, जब ब्रहमाजी खुश हो गए तो उन्होंने कहा कि जो मांगना चाहते हो मांग लो। हितण्यकष्यप भी बहुत चालाक था उसने वरदान मांगा कि हे भगवन जो मैं मांगना चाहता हूं वही वरदान मुझे देना।
वह मांगता है कि हे भगवन मैं दिन में मरुं न रात में, घर में मरुं न बाहर, उपर न नीचे, आदमी से न जानवर से आकाश में न पाताल में आदि। उसने कुछ छोड़ा ही नहीं, अब ब्रहमाजी सोचने लगे कि इसने तो कुछ छोड़ा ही नहीं। ब्रहमाजी चिन्तित थे पर वरदान तो देना ही था, उन्हें एवमस्तु कहकर हिरण्यकष्यप की सारी बात माननी पड़ी।
कथा के दौरान प्रहलाद हिरण्यकष्यप के प्रसंग को बहुुत ही रोचक ढंग से सुनाया। हिरण्यकष्यप ने आत्याचार किए, ब्राहमणों के बध किए, आश्रम तोड़ दिए, प्रहलाद को भी भक्ति भाव से हटाना चाहा, कुल कलंकी, भगवान विष्णु का दूत बताया, जब वह नहीं माने तो बेटे प्रहलाद को भी मारने से उपाय किए परन्तु प्रहलाद तो भक्ति भाव में लीन थे, सारे उपाय फेल हो गए।
उस समय देवता भी घबराने लगे थे। प्रहलादजी कहते हैं कि मन व्याकुलता से भर जाएगा तो सभी जगह भगवान दिखेंगे। हिरण्यकश्यप ने सभी पर आत्याचार किए, अंत में भगवान नृसिंह को अवतार लेना पड़ा और हिरण्यकष्यप का वध किया। श्रीमन नारायण नारायण नारायण के साथ पांडाल में बैठे सभी श्रद्वालु भगवान का स्मरण कर रहे थे जैसे मानो साक्षात भगवान विराजित हो रहे हों।
माता पिता गुरु का सम्मन करो, गुरु जहां भी मिल जाएं वहीं पर प्रणाम करना चाहियए। गुरु को देखकर कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए। उक बार भगवान इन्द्र के यहां गुरु ब्रहस्पति अचानक पहुुंच जाते हैं तो वहां देखते हैं कि इन्द्र के दरबार में नृत्यगान चल रहा है और स्वयं इन्द्र मस्त हो रहे हैं, इन्द्र ने ध्यान ही नहीं दिया कि कौन आया कौन गया। यह देखकर भगवान ब्रहस्पति को सहन नहीं हुआ और वहां से चले गए।
गुरु की भी मर्यादा होती है उनका भी सम्मान होता है। अतः कभी गुरु व संत को कभी गृहस्थी के घर बिना बताए नहीं जाना चाहिए। यदि वह पहुुंच भी जाए तो जैसा मिले उसी में संतोष कर लेना चाहिए। नाराज नहीे होना चाहिए। जो मिल जाए उसी में खुष रहो। आज कल तो चेले से गुरु भी डरते हैं कि कहीं शिष्य नाराज न हो जाए। कहीं वह दूसरा गुरु न बना ले, चिन्ता भी लगी रहती है। जैसे जोगी जंगल में भला उसी प्रकार गुरु को चाहिए कि जैसे भजन पक जाता है जो सुख दुःख, मान सम्मान सब बराबर होता है। रवणं कीर्तनं विष्णों अर्थात भक्ति की मौज जगत के डर से कभी कम नहीं होती है। जब भी अवसर मिले तो हरि बोलो, भगवान से प्रेम करो।
नंदोत्सव मनाया
नंद घर आनंद भयो जय कन्हैयालाल की स्वर लहरियों और गाजे बाजे के साथ गोपियों के रुप में महिलाएं और ग्वाला बने पुरुष। पूरा पांडाल फलों से सजा हुआ, हर कोई भगवान के जन्मोत्सव की खुशी में फूला नहीं समा रहा था। महिलाएं पीली साड़ी पहने और पुरुष कुर्ता धोती पहने हुए थे। पूरे पांडाल में महिला पुरुष हाथ में पुष्प भरे थाल लेकर पुष्प वर्षा कर रहे थे। अवसर था भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का। महिला पुरुष बालक बालिकाएं सभी नाच रहे थे। इस अवसर पर संत सुरजनदास महाराज, गोपाल गोयल, अंबालाल सोलंकी, आनंदीलाल चतुर्वेदी, विजयराज सेानी सहित हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे
श्रीमदभगवद कथा ज्ञान संग हुआ प्रभातफेरी का सिलसिला
पाली शहर में श्रीमदभगवद कथा ज्ञान यज्ञ समिति के तत्वावधान में प्रतिदिन सुबह प्रभातफेरी निकाले जाने का सिलसिला शुरू किया गया है।
प्रभातफेरी में गोवत्स राधकृष्ण महाराज के साथ हाथ में ध्वज लिए श्रद्धाल गोविन्द बोलो हरि गोपाल बोलो, राधरमण हरि गोपाल बोलो गाते प्रतिदिन प्रभातपफेरी निकाल रहे हैं।
मंगलवार को भी शिव मंदिर हाउसिंग बोर्ड से प्रभातफेरी निवाली गई। प्रभातफेरी समर्थनगर होते हुए न्यू हाउसिंग बोर्ड आकर विसर्जित हुई।
ताड़केश्वर रामेश्वर चैरिटेबल ट्रस्ट के रामेश्वर प्रसाद गोयल, कैलाश चन्द्र, कमल किशोर गोयल, गोपाल, परमेश्वर जोशी, अशोक जोशी, किसन प्रजापत सहित सौ से अधिक महिला पुरुष उपस्थित थे।