मेरठ। सपा नेत्री संगीता राहुल के पुत्र नितिन व उसके दोस्त विकास द्वारा सोमवार रात्रि को टीपी नगर थाने में मचाए गए उत्पात को लेकर सपा के क्षेत्रीय नेतृत्व ने उनसे पल्ला झाड़ लिया है।
वहीं एसएसपी डीसी दूबे ने सख्त रवैया अपनाते हुए आरोपियों को किसी प्रकार की राहत न देने बात कही। उधर थाने में दरोगा का पैर तोडऩे वाले नितिन व विकास को मंगलवार दोपहर एडीजी-8 की कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया।
गौरतलब है कि सोमवार की रात भगवतपुरा निवासी सपा महिला प्रकोष्ठ की जिलाध्यक्ष संगीता राहुल का पुत्र नितिन राहुल व उसका दोस्त गुुप्ता कालोनी निवासी विकास एक शादी समारोह से वापिस लौट रहे थे।
इसी दौरान टीपी नगर थाने में तैनात दरोगा सर्वेश यादव से कार चेकिंग के दौरान दोनो युवकों ने सत्ता के नशे में चूर होकर गाली-गलौच कर दी। जिसके बाद दरोगा सर्वेश दोनों को थाने ले गए।
इसके बाद दर्जनों समर्थकों के साथ थाने पहुंची सपा नेत्री संगीता राहुल ने दरोगा सर्वेश को थप्पड़ जड़ दिए और नितिन व विकास ने मारपीट करते हुए उसकी टांग तोड़ डाली।
सपाइयों की अराजकता को रोकने के लिए एसएसपी को खुद कई थानों की फोर्स के साथ मौके पर पहुंचकर लाठी-चार्ज करते हुए मोर्चा संभालना पड़ा। इसके बाद हंगामा कर रहे सपाई वहां से भाग खड़े हुए और पुलिस ने नितिन व विकास को हिरासत में ले लिया।
कप्तान के सख्त तेवर देख बैकफुट पर आए सपा नेता
इस मामले को लेकर सपा जिलाध्यक्ष जयवीर सिंह सहित कई अन्य नेता एसएसपी दिनेश चंद्र दूबे से मिले। उन्होंने इस मामले में दरोगा पर भी नितिन व विकास और संगीता राहुल से मारपीट का आरोप लगाया। कप्तान ने सख्त तेवर दिखाते हुए दरोगा की टांग तोडऩे वालों को किसी सूरत में न बख्शे जाने की बात कही। जिस पर सपा नेताओं ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की।
कोर्ट में पेश करके दोनों युवकों को भेजा जेल
इस मामले में आला अधिकारियों को पहले से ही शासन स्तर से दबाव बनने का अंदेशा नजर आ रहा था। शायद यही कारण रहा कि देर रात ही आरोपियों के खिलाफ पुलिस की ओर से धारा 353, 332, 325,147 व अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा कायम कर दिया गया। आमतौर पर पुलिस द्वारा किसी मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपियों को दोपहर को कोर्ट में पेश किया जाता है।
लेकिन इस प्रकरण में थाना पुलिस ने रात में ही कागजी कार्यवाही पूरी करते हुए दोनों आरोपियों को कचहरी खुलते ही एडीजी आठ की कोर्ट में पेश कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने आरोपियों को जेल भेज दिया।
शायद पुलिस को अनुमान था कि यदि आरोपियों को अधिक देर तक थाने में रखा गया तो शासन स्तर से मामले को निपटाए जाने का दबाव बन सकता है, इसलिए आरोपियों की पैरवी का कोई मौका पुलिस ने नहीं छोड़ा।