नई दिल्ली। देश के मासूम बच्चों पर चाइल्ड पॉर्न के बढ़ते प्रभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। साथ ही सार्वजनिक जगहों पर पॉर्न देखने और दूसरों को देखने पर मजबूर करने वालों के खिलाफ सख़्त कदम उठाए जाने का निर्देश कोर्ट ने केन्द्र सरकार को दिया है।
सोशल मीडिया द्वारा बढ़ते चाइल्ड पॉर्न पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यहां कहा कि मासूम बच्चों के खिलाफ बढ़ते इस अनैतिक अपराध को किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मासूम बच्चों के खिलाफ बढ़ते इस अनैतिक काम पर प्रतिबंध लगाए जाने का निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक जगहों पर पॉर्न देखने और दूसरों को देखने पर मजबूर करने वालों के खिलाफ सख़्त कदम उठाए जाने जाने की जरुरत है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से सरकार को इस सिलसिले में सुझाव देने की बात भी कही है।
किसी भी अश्लीलता को कानूनी रुप से अपराध मानते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई भी पॉर्नोग्राफी,चाहे चाइल्ड पॉर्नोग्राफी हो या सिर्फ पॉर्नोग्राफी, दोनों भारतीय दंड सहिंता की धारा 292 के दायरे में आते हैं।
इसलिए इन पर प्रतिबंध लगाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की बनती है। सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने हाल के दिनों में चाइल्ड पॉर्न वेबसाइट पर पाबंदी को लेकर उठाए गए केन्द्र सरकार द्वारा उठाए कदमों पर संतोष भी जताया।