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एक नई बहस को जन्म देगी किताब 'द रॉयल ब्लू' - Sabguru News
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एक नई बहस को जन्म देगी किताब ‘द रॉयल ब्लू’

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एक नई बहस को जन्म देगी किताब ‘द रॉयल ब्लू’
latest novel The Royal Blue Release
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जोधपुर। क्या कोई उपन्यास ऐतिहासिक दस्तावेज की श्रेणी में रखा जा सकता है? क्या इतिहास को अप्रिय होने से बचाने के लिए उपन्यास एक सहज माध्यम बन सकता है? क्या हिंदी साहित्य की लेखन विधाओं में जीवनी उपन्यास की विधा को कभी आजमाया ही नहीं गया?

रविवार को जोधपुर के फन वर्ल्ड रिसोर्ट में लोकार्पित जीवनी उपन्यास ‘द रॉयल ब्लू’ के विमोचन समारोह में इस तरह के कई प्रश्न केन्द्र बिन्दु में रहे।

सृजना संस्थान और राजस्थान हेरिटेज एंड नेचर सोसाइटी – राजहंस की ओर से आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए प्रसिद्ध इतिहास विदज़हूर खां मेहर ने कहा कि हर लेखक और साहित्यकार अपनी शैली के अनुसार घटनाओं को प्रस्तुत करता है।

विभाजन के इतिहास को कई इतिहासकारों ने मनगडंत तरीके से पेश किया और मारवाड़ रियासत के पाकिस्तान में विलय की बात बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत की गई। द रॉयल ब्लू, उन पुस्तकों से उलट ऐतिहासिक तथ्यों के सबसे ज़्यादा निकट महसूस होती है। इस दृष्टिकोण से यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज होने की पात्रता रखती है।

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मुख्य वक्ता डॉ हरी दास व्यास ने कहा कि संवेदनशील विषयों को बारीकी से समझ कर उन्हें संजीदगी के साथ इस तरह रखना एक चुनौती होती है कि उनकी रोचकता बनी रहे। द रॉयल ब्लूइस कसौटी पर खरा उतरती है और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में संवेदनशील बिन्दुओं को छूते हुए भी रोचकता को बरक़रार रखती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ नगेन्द्र शर्मा ने कहा कि जीवनी उपन्यास की ये शैली पाठक को नए तरीके से बांधती है। साहित्यकार विनोद विट्ठल ने कहा कि द रॉयल ब्लू को हिंदी साहित्य की परंपरा में पहला जीवनी उपन्यास प्रयोग कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

यह किताब जो मारवाड़ रियासत की पूर्व महारानी कृष्णा कुमारीकी जीवन पर आधारित है के लेखक अयोध्या प्रसाद गौड़ ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत -पाकिस्तान विभाजन और उसके बाद लिखा गया इतिहास शासकीय प्रभाव में कई त्रुटिपूर्ण घटनाओं को हमारे दिमाग में बैठा चुका है।  उपन्यास उन घटनाओं के पीछे छुपे तथ्यों को दस्तावेजी प्रमाणों के साथ लेकिन रोचक तरीके से सामने लाने का प्रयास है।

बीसवीं शताब्दी के मध्य काल में जब हिंदुस्तान में ब्रिटिश शासन से मुक्ति के लिए ‘अंग्रेजों भारत छोडो’ का नारा बुलंद हो रहा था, देश के सामाजिक ताने-बाने में बंटवारे के बीज बोए जा रहे थे और देसी रियासतों के सामने अनिश्चितता पसरी हुई थी।

उन्हीं दिनों, गुजरात की एक रियासत में जन्म ले कर उस समय की सबसे प्रभावशाली रियासतों में से एक-मारवाड़ की महारानी बनने वाली कृष्णा कुमारी की ज़िन्दगी के पन्ने, हमें इतिहास की रोचक यात्रा पर ले जाते हैं।

इस पुस्तक में सबसे चौंकाने वाली जानकारी भारत पाकिस्तान के बंटवारे से जुडी है। तथ्यों के आसपास गूंथे इस उपन्यास में दावा किया है कि किस तरह मुहम्मद अली जिन्ना ने बंटवारे के समय मारवाड़ रियासत को पाकिस्तान में मिलाने के लिए ब्लेंक चैक ऑफर दिया था।

भोपाल के नवाब और मारवाड़ के महाराजा हनवंत सिंह ने पंडित नेहरू के खिलाफ बगावत का सुर बुलंद कर दिया था। ये किताब विस्तार से उस नाटकीय घटनाक्रम को सामने लाती है जब जोधपुर रियासत के महाराजा ने मोलभाव की रणनीति अपनाते हुए सरदार पटेल के लिए भारी परेशानी खड़ी कर दी थी।