मुंबई। बॉलीवुड में अनुपम खेर का नाम उन गिने चुने अभिनेताओं में शुमार किया जाता है जिन्होंने लगभग तीन दशक से अपने दमदार अभिनय से सिने दर्शकों के दिल में एक खास मुकाम बना रखा है।
अनुपम खेर में एक विशेषता है कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिए उपयुक्त है। फिल्म कर्मा में एक क्रूर खलनायक की भूमिका हो या फिर डैडी, सारांश जैसी फिल्म में भावपूर्ण अभिनय या फिर रामलखन, लम्हे जैसी फिल्मों में हास्य अभिनय इन सभी भूमिकाओं में उनका कोई जवाब नहीं।
अनुपम खेर का जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला में हुआ था। बचपन से ही उनकी ख्वाहिश अभिनेता बनने की थी। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुपम खेर ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लिया। वर्ष 1978 में नेशनल स्कूल से अभिनय की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह रंगमंच से जुड़ गए।
80के दशक में अभिनेता बनने का सपना लिए हुए उन्होंने मुंबई में कदम रखा। बतौर अभिनेता उन्हें वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म आगमन में काम करने का मौका मिला लेकिन फिल्म के असफल हो जाने के बाद वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो सके।
वर्ष 1984 में अनुपम खेर को महेश भट्ट की फिल्म सारांश में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उन्होंने एक वृद्ध पिता की भूमिका निभाई जिसके पुत्र की असमय मृत्यु हो जाती है। अपने इस किरदार को अनुपम खेर ने संजीदगी के साथ निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया साथ ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी समानित किए गए।
वर्ष 1986 में अनुपम खेर को सुभाष घई की फिल्म कर्मा में बतौर खलनायक काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उनके सामने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन अनुपम खेर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे। फिल्म की सफलता के बाद बतौर खलनायक वह अपनी पहचान बनाने में सफल रहे।
अपने अभिनय मे आई एकरूपता को बदलने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए अनुपम खेर ने अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन किया। इस क्रम में वर्ष 1989 मे प्रदर्शित सुभाष घई की सुपरहिट फिल्म राम लखन में उन्होनें फिल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के पिता की भूमिका निभाई। फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिये सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी समानित किया गया।
वर्ष 1989 में अनुपम खेर के सिने करियर की एक और अहम फिल्म डैडी प्रदर्शित हुई। फिल्म में अपने भावुक किरदार को अनुपम खेर ने सधे हुए अंदाज में निभाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपने दमदार अभिनय के लिए वह फिल्म फेयर समीक्षक पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार के स्पेशल ज्यूरी पुरस्कार से समानित किए गए।
वर्ष 2003 में प्रदर्शित फिल्म ओम जय जगदीश के जरिये अनुपम खेर ने फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से विफल साबित हुई। वर्ष 2005 में अनुपम खेर ने फिल्म मैने गांधी को नहीं मारा का निर्माण किया।
इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें कराची इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार से समानित किया गया। अनुपम खेर ने कई हॉलीवुड फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया है।
2000 के दशक में अनुपम खेर ने दर्शकों की पसंद को देखते हुए छोटे पर्दे का भी रुख किया और से ना समथिंग टु अनुपम अंकल और सवाल दस करोड़ का बतौर होस्ट काम कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। वर्ष 2007 में अपने मित्र सतीश कौशिक के साथ मिलकर अनुपम खेर ने करोग बाग प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की जिसके बैनर तले तेरे संग का निर्माण किया।
अनुपम खेर अपने सिने कैरियर में आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं। फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद अनुपम खेर नेशनल सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी बने। इसके अलावे उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में बतौर निदेशक 2001 से 2004 तक काम किया।
फिल्म क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये अनुपम खेर को पद्मश्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। अनुपम खेर ने अपने तीन दशक लंबे सिने करियर में लगभग 350 फिल्मों में काम किया। अनुपम खेर आज भी जोशोखरोश के साथ फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय है।