नागौर/जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में शुक्रवार को सरकार्यवाह भैय्याजी (सुरेश) जोशी ने संघ का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। प्रतिवेदन में महिलाओं के मंदिर प्रवेश, सुरक्षा संस्थान की सुरक्षा, बढ़ता साम्प्रदायिक उन्माद और कुछ विश्वविद्यालयों में हुई देशद्रोही घटनाओं को लेकर चिंता जताई गई।
प्रतिवेदन में मोदी सरकार का नाम लिए बगैर तारीफ की गई है। राजनीतिक क्षेत्र में आये परिवर्तन से जन सामान्य और भारत के बाहर अन्य देशों में रह रहे भारतवासी संतोष और गर्व का अनुभव कर रहे हैं। देश के बाहर विभिन्न देशों में भारत मूल के लोगों के सम्मेलनों से यही मनोभाव प्रकट हुआ है।
वैश्विक स्तर पर अधिकांश देशों द्वारा योग दिन की स्वीकार्यता भारतीय आध्यात्मिक चिंतन और जीवन शैली की स्वीकार्यता ही प्रकट करती है। इससे स्वाभाविक रूप से देशवासियों की अपेक्षा बढ़ी है। एक विश्वास का वातावरण बना हुआ है। अतः सत्ता संचालक उस विश्वास को बनाए रखने की दिशा में उचित हो रही पहल अधिक प्रभावी एवं गतिमान करें यही अपेक्षा है।
सरकार्यवाह ने कहा कि गुजरात, हरियाणा राज्यों में आरक्षण की मांग को लेकर किया गया हिसंक आंदोलन प्रशासन व्यवस्था के सम्मुख चुनौतियों के रूप में खड़ा होता ही है, परंतु सामाजिक सौहार्द और विश्वास में भी दरार निर्माण करता है।
सामाजिक जीवन ऐसी घटनाओं से प्रभावित होता है। यह सबके लिए गंभीर चिंता का विषय है। योजना पूर्वक समाज विरोधी गतिविधि चलाने वाले व्यक्ति एवं संस्थाओं के प्रति समाज सजग हो और प्रशासन कठोर कार्रवाई करे। इन समस्याओं का समाधान सुसंगठित समाज में ही है।
महिला और मंदिर प्रवेश
प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए संघ के सरकार्यवाह ने कहा कि गत कुछ दिनों से महिलाओं के मंदिर प्रवेश को लेकर कुछ समूहों द्वारा विवाद का मुद्दा बनया जा रहा है। भारत में प्राचीन काल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में पूजापाठ की दृष्टि से महिला- पुरूषों की सहभागिता सहजता से हो रही है, यह श्रेष्ठ परंपरा है।
सामान्यतः सभी मंदिरों में महिला पुरूष में भेद न रखते हुए प्रवेश होता ही है। महिलाओं द्वारा वेदाध्यन, पौराहित्य के कार्य भी सहजता से हो सम्पन्न हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ स्थानों पर परंपरा रूढ़ी के कारण मंदिर प्रवेश को लेकर असहमित दिखाई देती है।
जहां ऐसे विवाद है संबंधित लोगों से चर्चा हो एवं मानसिकता में परिवर्तन लाने के प्रयास होने चाहिए। संवेदनशीलता विषयों का राजनीतिकरण न हो, इनका समाधान संवाद और चर्चा से ही हो, आंदोलन से नहीं।
सुरक्षा संस्थानों पर हमले
संघ ने देश के सुरक्षा संस्थानों पर हुए हमले का सुरक्षा बलों की ओर से दिए गए मुंह तोड़ जवाब देकर हमलों की साजिश को नाकाम करने को सराहा है। पठानकोट में वायुसेना के मुख्य शिविर पर हमले जैसी घटनाओं की पुनावृत्ति न हो इसके सुरक्षा व्यवस्था को और सक्षम बनाने की बात संघ के प्रतिवेदन में कही गई।
सुरक्षा बलों की कार्यक्षमता, साधन और नियुक्त अधिकारियों की समीक्षा करते हुए आवश्यक सुधारों पर अधिक ध्यान देना होगा। सीमाओं से अवैध नागरिकों का प्रवेश, होने वाली तस्करी, और पाक प्रेरित आतंकवादी तत्वों पर अधिक निगरानी के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास, सीमा सुरक्षा एवं सुरक्षा संसाधनों की ढ़ांचागत व्यवस्थाओं की समीक्षा आवश्यक है।
देश में बढ़ता साम्प्रदायिक उन्माद पर
देश में विभिन्न स्थानों पर घटित हिंसक उग्र घटनायें, देशभक्त, शांतिप्रिय जन एवं कानून व्यवस्था के सम्मुख गंभीर संकट का रूप ले रही है। छोटी- मोटी घटनाओं को कारण बनाकर शस्त्र सहित विशाल समूह में सड़कों पर उतरकर भय- तनाव का वातावरण निर्माण किये जाने की मालदा जैसी घटनायें गत कुछ दिनों में हुई।
सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति का नुकासान, कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर पुलिस दल पर हमले की घटनायें और विशेषतः हिन्दुओं के व्यवसायिक केन्द्र, सभी के साथ लूटपाट- आगजनी के भक्ष बनते हैं।
राजनीतिक दलों को तुष्टिकरण की नीति छोड़कर ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए, कानून प्रशासन व्यवस्था को शांति बनाई रखने में सहयोगी बनने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब राजनैतिक दल, सत्ता दल संकुचित ओछी राजनीति से मुक्त होकर सामूहिक प्रयास करेंगे। देश की सुरक्षा से महत्वपूर्ण कोई राजनैतिक दल अथवा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता।
विश्वविद्यालय परिसर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के केन्द्र
पिछले दिनों कुछ विश्वविद्यालयों में अराष्ट्रीय और देश विघातक गतिविधियों पर चिंता जताई गई। देश के प्रतिष्ठित एवं प्रमुख विश्वविद्यालयों से तो यह अपेक्षा थी कि वे देश की एकता, अखंडता की शिक्षा देकर देशभक्त नागरिकों का निर्माण करेंगे, किन्तु जब वहां पर देश को तोड़ने वाले और देश की बर्बादी के नारे लगते है तब देशभक्त लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है।
यह चिंता तब और भी बढ़ जाती है जब कुछ राजनीतिक दल ऐसे देशद्रोही तत्वों के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि देश को तोड़ने वाले और देश को बर्बाद करने वाले नारे लगाए जाए तथा देश की संसद को उड़ाने की साजिश करने वाले अपराधियों को शहीद का दर्जा देकर सम्मानित किया जाए।
ऐसे कृत्य करने वालों का देश के के संविधान न्यायालय तथा देश की संसद आदि में कोई विश्वास नहीं है। इन देश विघातक शक्तियों ने लंबे समय से इन विश्वविद्यालयों को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाकर रखा है। संतोष की बात यह भी है कि जैसे ही इन गतिविधियों के बारे में समाचार सार्वजनिक हुए देश में सर्वदूर इसका व्यापक विरोध हुआ है।
केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों से यह अपेक्षा है कि राष्ट्र, समाज विरोधी तत्वों के साथ कठोरता से कार्रवाई करें। शैक्षणिक संस्थान राजनैतिक गतिविधि के केन्द्र न बनें और पवित्रता, संस्कारक्षम वातावरण बना रहे यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
सरकार्यवाह ने कहा कि राष्ट्रीय विचारधारा को प्राप्त हो रही स्वीकृति से अराष्ट्रीय, असामाजिक तत्वों की अस्वस्थता गत कुछ दिनों में घटित घटनाओं से प्रकट हो रही है। हैदराबाद विश्वविद्यालय और जेएनयू परिसर में नियोजित घटनाओं ने इन षड़यंत्रकारी तत्वों को ही उजागर किया है।