नई दिल्ली। शराब कारोबारी विजय माल्या ने भारत से विदेश भागने के लिए उस डिप्लोमैटिक पासपोर्ट का सहारा लिया था जो उन्हें संसद सदस्य की हैसियत से जारी किया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो माल्या 2 मार्च को इसी पासपोर्ट के जरिए देश छोडने में कामयाब हुए।
सीबीआई सूत्रों के हवाले से पहले यह बात भी सामने आ रही है कि माल्या को 900 करोड का बैंक लोन किंगफिशर एयरलाइंस को बदहाली से उतारने के लिए आईडीबीआई बैंक के पूर्व सीएमडी योगेश अग्रवाल ने ही दिया था।
उधर, सीबीआई भी अब यह गलती मान रही है कि माल्या को अरेस्ट करने की कोशिशों में उसने ढिलाई बरती। सीबीआई का कहना है कि पहली बार लुकआउट नोटिस गलती से जारी हो गया था। इस नोटिस में बदलाव कैसे और कब किया गया इसकी जांच की जा रही है।
ज्ञात हो कि सीबीआई ने देश छोड़ते वक्त माल्या को हिरासत में लेने के लिए जारी किया गया लुक-आउट नोटिस महज एक महीने के भीतर बदल दिया था। बदले हुए नोटिस में सिर्फ इतना कहा गया था उनकी यात्रा की योजना की जानकारी देनी होगी।
हालांकि सीबीआई अपनी सफाई में यह भी दावा कर रही है कि लुक-आउट सर्कुलर के तहत किसी को तभी हिरासत में लिया जा सकता है, जब आरोपी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया हो। लेकिन माल्या के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी नहीं किया गया था।
मालूम हो कि विजय माल्या ने किंगफिशर एयरलाइंस के लिए कई बार लोन के लिए करीब 17 बैंक में आवेदन किया। योगेश अग्रवाल ने भी विजय माल्या को 900 करोड का लोन को जारी किया था।
बताया जा रहा है कि लोन आवेदन किंगफिशर के तत्कालीन सीएफओ ए रघुनाथन द्वारा हस्ताक्षर कर जारी किए गए थे।एक अक्टूबर को साल 2009 को 950 करोड़ कॉरपोरेट लोन के लिए आवेदन किया था। इसके फलस्वरूप उन्हें 900 करोड़ का लोन तीन किस्तों में देने की मंजूरी पिछले साल नवंबर को मिली।