मुंबई। पश्चिम महाराष्ट्र ने विदर्भ के विकास का पैसा अपनी तरफ जबरन खिंच लिया, जिससे विदर्भ का विकास नहीं हो सका। इसे चोरी नहीं तो क्या कहा जाए। इस तरह का सनसनीखेज आरोप राज्य के पूर्व महाधिवक्ता श्रीहरी अणे ने नागपुर में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए लगाया है।
इस अवसर पर अणे ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि अलग विदर्भ की आवाज दिल्ली तक पहुंचाई जाए। उन्होंने कहा कि अलग विदर्भ राज्य के लिए वह तेलंगना जैसे आंदोलन के पक्ष में नहीं है। अणे ने कहा कि अलग तेलंगना राज्य के लिए किए गए आंदोलन में 1200 से ज्यादा छात्रों की जान गई है और वह इस तरह का हिंसक आंदोलन स्वतंत्र विदर्भ के लिए नहीं करना चाहते हैं।
मिली जानकारी के अनुसार श्रीहरी अणे ने शीतसत्र से पहले नागपुर में अलग विदर्भ की आवाज बुलंद किया था। उस समय उनकी भूमिका को लेकर जोरदार आवाज शिवसेना सहित अन्य दलों ने व्यक्त किया था। इसी तरह अणे ने हालही में मराठवाड़ा को भी अलग राज्य बनाने संबंधी बयान दिया था। इसे लेकर बजट सत्र का माहौल गरमा गया था। जिससे विपक्ष सहित शिवसेना विधायक आक्रामक हो गए थे और सदन का कामकाज बाधित हो रहा था।
इसे देखते हुए अणे ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा दिया था। इस्तीफा देने के बाद नागपुर पहुंचे अणे ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 60 सालों में विदर्भ की जनता के लिए पेयजल की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। यहां पर किसी भी योजना को पूर्ण नहीं किया गया। विदर्भ को मिलने वाली विकास निधि पश्चिम महाराष्ट्र में खर्च की जाती रही।
इस मुद्दे पर जोरदार आवाज उठाने के बाद राज्य ने हस्तक्षेप किया और विदर्भ का अनुशेष अभी तक बढ़ता जा रहा है। अणे ने कहा कि विदर्भ अलग होने पर यहां के लोग क्या खाएंगे, इस तरह की चर्चा पश्चिम महाराष्ट्र के नेता करते हैं, जबकि विदर्भ अलग होने के बाद पश्चिम महाराष्ट्र के नेता क्या खाएंगे, यह सही सवाल है।
इसी तरह यशवंत राव चव्हाण से लेकर पृथ्वीराज चव्हाण तक किसी भी मुख्यमंत्री ने विदर्भ के विकास के लिए काम नहीं किया है। अणे ने कहा कि अखंड महाराष्ट्र के लिए 105 लोगों के शहीद होने की बात की जाती है, लेकिन महाराष्ट्र में शामिल होने के बाद विदर्भ की अनदेखी किए जाने से 29 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। अणे ने अलग विदर्भ राज्य के लिए आर या पार की लड़ाई लडऩे का आवाहन किया है।