वाराणसी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत को लेकर रहस्य से पर्दा उठने ही वाला है। वहीं यह माना जा रहा है कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।
विभिन्न वेब पोर्टलों, समाचार पत्रों में नेताजी की विमान हादसे में मृत्यु न होने सम्बन्धी खबरों के साथ केन्द्रीय पर्यटन संस्कृति राज्य मंत्री महेश शर्मा का बयान भी इस ओर इशारा कर रहा है।
खुफिया ब्यूरो के अवकाश प्राप्त अधिकारी श्यामा चरण पाण्डेय ने गुरूवार को बताया कि नेता जी की विमान हादसे के दौरान मृत्यु से संबधित फाइलों में बहुत कुछ ऐसा है जिसे देश को जानना चाहिए।
नेताजी की मृत्यु की सत्यता जानने के लिए गठित खोसला आयोग और मुखर्जी आयोग की कार्यप्रणाली पर पहले से बहुत से प्रश्नवाचक चिह्न लगे हुए हैं।
उन्होंने बताया कि शौलमारी आश्रम फालाकाटा, पश्चिम बंगाल के शारदानंद जी के ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस होने सम्बन्धी तमाम प्रमाण आज भी विभिन्न लोगों के पास उपलब्ध है।
शारदानन्द जी के 1951 में वाराणसी जिले के कैथी गांव में प्रवास और उसके बाद मृत्यु पर्यंत संपर्क में रहने वाले स्व. कृष्ण कान्त पाण्डेय मेरे पिता ने भी कहा कि शारदानन्द जी ही नेताजी थे।
पाण्डेय ने बताया कि दो दिन पूर्व वाराणसी के प्रतिष्ठित दिवंगत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिवनाथ मौर्या की सुपुत्री डा. श्रीमती गीता मौर्या ने अपने पिता द्वारा साठ के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति और गृहमंत्री को इस सम्बन्ध में लिखे पत्र उन्हें सौंपे हैं।
इसी प्रकार महाराष्ट्र के अमरावती के अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर डा सुरेश ने भी कुछ महत्वपूर्ण तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध कराई है, जिससे सारदानंद जी के ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस होने की बात को बल मिलता है।
निकट भविष्य में हम यह भी उजागर करेंगे कि नेताजी और सारदानंद जी के हस्तलेख में काफी हद तक समानता है जिसकी पुष्टि हस्तलेख विशेषज्ञों ने की है।
हमारे पास उपलब्ध अभिलेखों से स्पष्ट है की नेताजी वर्ष 1951 से मृत्युपर्यंत 17 अप्रेल 1977 तक भारत में ही विभिन्न स्थलों में प्रवास किए थे। उन्होंने कहा कि आज देश में नेता जी की मृत्यु सम्बन्धी रहस्योद्घाटन आवश्यक है।
इसलिए अब केन्द्र सरकार को इस मामले की जांच नए और निष्पक्ष जांच आयोय द्वारा करवाना चाहिए। गौरतलब कि पाण्डेय ने नेताजी से सम्बन्धित तमाम साक्ष्यों और अभिलेखों सहित दर्जनों पत्र केंद्र सरकार को दिए हैं।