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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में रोचक हुआ मुकाबला - Sabguru News
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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में रोचक हुआ मुकाबला

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में रोचक हुआ मुकाबला
West Bengal assembly elections : high voltage fight between against the ruling Trinamool
West Bengal assembly elections
West Bengal assembly elections : high voltage fight between against the ruling Trinamool

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के तहत असम और पश्चिम बंगाल में प्रथम चरण का मतदान हो गया है। दोनों ही राज्यों में हुआ रिकार्ड मतदान यह साबित करने के लिए काफी है कि इन राज्यों के मतदाता इस चुनाव को लेकर खासे उत्साहित हैं तथा मतदान केन्द्रों में लगी लंबी-लंबी कतारें यह साबित करने के लिए काफी हैं कि देश की राजनीतिक बिरादरी के प्रति जनता-जनार्दन का विश्वास एवं उम्मीदें बरकरार हैं।

चुनाव को लोकतंत्र का महायज्ञ मानकर इसमें अपने वोटों की आहिुति डालने के संदर्भ में लोकतंत्र के भाग्य विधाता अथात् मतदाताओं के रुझान एवं उत्साह में कहीं कोई कमी नहीं आई है।

अब मतदाताओं द्वारा यह रिकार्ड मतदान संबंधित राज्यों में सत्ता परिवर्तन के लिए किया गया है या फिर निवर्तमान सरकार की सत्ता में फिर से ताजपोशी के लिए, यह जानने के लिए तो मतगणना एवं चुनाव नतीजे घोषित होने का इंतजार करना पड़ेगा।

लेकिन मतदाताओं का फैसला चाहे जो भी हो, पर भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के निर्धारण या सत्ता परिवर्तन में भारतीय जनमानस को अपनी अग्रणी भूमिका पूरी तरह ज्ञात है।

पश्चिम बंगाल राज्य की अगर बात करें तो यहां सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बैनर्जी के नेतृत्व में शानदार प्रदर्शन करते हुए वामपंथी दलों के इस अभेद्य दुर्ग पर अपनी विजय पताका फहराई थी तथा पिछले लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने यहां की सर्वाधिक सीटें जीती थीं।

लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में राज्य की राजनीतिक परिस्थितियां कुछ बदली-बदली सी प्रतीत हो रही हैं। राज्य में आये दिन होने वाली राजनीतिक हत्याएं जहां राज्य में सत्तापक्ष की विरोधी राजनीतिक दलों व उनके नेताओं के प्रति वैमनस्य व दुश्मनीपूर्ण रवैये को तो काफी हद तक उजागर करती ही हैं साथ ही राज्य की कानून व्यवस्था की खराबी व भ्रष्टाचार का मुद्दा भी इन चुनावों में अपनी अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

राज्य का बहुचर्चित सारदा घोटाला सामने आने के बाद इसमें मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की संलिप्तता भले ही सीधे तौर पर उजागर न हुई हो लेकिन परोक्ष रूप से सवाल उन पर भी उठते रहे हैं। साथ ही इस घोटाले की जद में आए ममता की पार्टी के कई नेताओं को जेल भी जाना पड़ा है।

ऐसे में विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा इन मुद्दों को आधार बनाकर चुनावी लाभ अर्जित करने की कोशिशें परवान भी चढ़ सकती हैं जो ममता बैनर्जी व तृणमूल कांग्रेस के लिए राजनीतिक तौर पर नुकसानदायक हो सकता है।

असम के विधानसभा चुनाव में भी यहां भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था तथा बांग्लादेशी घुसपैठ आदि महत्वपूर्ण मुद्दें हैं तथा यह मुद्दे राज्य के मौजूदा विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर कर दें तो कोई अतिशंयोक्ति नहीं होगी।

हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई इस मत से विपरीत राय रखते हैं तथा उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव में मतदान के प्रति राज्य के मतदाताओं का बढ़ा हुआ रुझान उनकी सरकार की लोकप्रियता साबित करता है तथा चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद वह पुन: राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे।

हालांकि गोगोई के दावे कितने सटीक हैं, चुनाव परिणाम घोषित होने तक इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। क्यों कि चुनाव में अपनी जीत के दावे तो सभी राजनीतिक दल व राजनेता करते हैं लेकिन उनका भविष्य बाद में वही होता है जो मतदाता तय करते हैं।

राजनीतिक दलों व उनके नेताओं की चुनावी सक्रियता के लिए यह उनका सकारात्मक व सहज पक्ष होता है कि वह चुनाव परिणाम घोषित होने तक अपने आप को हारा हुआ नहीं मानते तथा चुनाव मैदान में पूरी मुस्तैदी से डटे रहते हैं।

विचारणीय बात यह भी है कि राजनीतिक बिरादरी के लोग अगर जनहित के काम भी इतनी ही मुस्तैदी के साथ करें तो फिर उन्हें चुनाव जीतने के लिये शायद इतनी मेहनत ही न करनी पड़े।

देश के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं जहां मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री जयललिता के नेतृत्व वाली पार्टी अन्नाद्रमुक व एम. करुणनिधि के नेतृत्व वाली डीएमके पार्टी के बीच है। इन दोनों ही राजनीतिक दलों का विडंबनापूर्ण पक्ष यह है कि दोनों ही दल व उनके नेता अपने विरोधियों के प्रति दुश्मनों जैसा बर्ताव करते हैं तथा करुणानिधि यदि सत्ता में आए तो वह जयललिता को व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाने में पीछे नहीं रहते ।

इसी प्रकार जयललिता भी सत्ता में रहते हुए करुणानिधि का सताने का कोई मौका नहीं छोड़तीं। देश की संप्रभुतावादी सोच के विपरीत इन दोनों ही राजनीतिक दलों की विचारधारा बेहद संकीर्ण तथा क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाली है तथा अपने राजनीतिक फायदे के लिए यह दोनों ही राजनीतिक दल कोई भी हैरतंगेज कारनामें करने में पीछे नहीं रहते।

ऐसे में जरूरी यह है कि राज्य की राजनीति में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का प्रभाव बढ़े तथा वह किसी भी मुद्दे को राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में देखने की पहल तो करें।

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं