जयपुर। प्रदेश के एक तरफ गायों को बचाने के लिए सिरोही के नंदगांव केसुआ में गोकृपा महोत्सव बन रहा था तो दूसरी तरफ राज्य की राजधानी में स्थित हिंगोनिया गौशाला में कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पिछले चार दिन में 100 से अधिक गायों की मौत हो गई।
उसके बाद भी न तो निगम प्रशासन ने कुछ किया और न ही कर्मचारी उपलब्ध करवाने ठेकेदार ने। कार्मिकों की हड़ताल वापसी की घोषणा के बाद भी कर्मचारी सुबह वापस काम पर नहीं आए और उन्होंने हड़ताल के दौरान हुई छुट्टियों का वेतन न काटने की मांग की। उनके मांगे मानने के बाद वे काम पर लौटे। निगम प्रशासन ने हड़ताल के दौरान मजबूरन चैकटी से मजदूर बुलाकर खाना-पूर्ति तो कर दी, लेकिन हकीकत देखी जाए तो गौशाला में न तो उपायुक्त मौके पर ध्यान देते और न ही प्रभारी।
आरोप यह भी लगा कि हड़ताल गोशाला अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से हुई है। उन्होंने जानबूझकर ठेकेदार ने कर्मचारियों का वेतन रोका और उन्हे हड़ताल पर जाने के लिए उकसाया। जानकारी के मुताबिक गोशाला में हर रोज औसतम 8 से 10 गायों की मौत होती है, लेकिन पिछले दिनों हड़ताल के कारण ये आकड़ा दोगुना से भी ज्यादा बढ़ गया। चेयरमेन की माने तो हड़ताल के दौरान चारा-पानी पर्याप्त मात्रा में न मिलने से बीमार और कमजोर गायों ने जल्दी दम तोड़ दिया और मौत का आकड़ा औसतम 25 तक पहुंच गया।
गौशाला चेयरमेन ने बताया कि हड़ताल के दौरान मरी इतनी गायों के लिए अस्थायी कर्मचारी उपलब्ध करवाने वाले ठेकेदार और नगर निगम प्रशासन जिम्मेदार है। अगर ठेकेदार समय पर कर्मचारियों को वेतन का भुगतान कर देता तो शायद ये नौबत नहीं आती। इसके अलावा कर्मचारी निगम प्रशासन से वेतन बढ़ाने की मांग भी काफी समय से कर रहे थे, लेकिन इसे लेकर प्रशासन के अधिकारियों ने एक नहीं सुनी।
हिंगोनिया गोशाला में गायों की मौत के मामले में हाईकोर्ट भी संज्ञान ले चुका है और वहां की व्यवस्था सुधारने, चार-पानी की व्यवस्था करने के लिए निगम अधिकारियों को पाबंद किया। कोर्ट ने सख्त निर्देश दिए हंै कि किसी भी कीमत पर गायों को मरने से रोका जाए और उनके चारे-पानी, स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाए। इन सबसे बाद भी अधिकारियों को कोई परवाह नहीं और हड़ताल के दौरान उन्होने गायों को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए।