नई दिल्ली। खेल मंत्री सर्वानंद सोनोवाल, पूर्व भारतीय दिग्गज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर सहित तमाम खेल से जुड़े लोग आज दीपा की प्रशंसा कर रहे हैं लेकिन दीपा भी इस प्रशंसा को पाने की हकदार है।
भारत की महिला जिमनास्ट दीपा करमाकर ने देश के जिमानस्ट में ऐसी जान फूंक दी है कि अब खिलाड़ी जिमनास्ट की ओर अपना करियर बनाने की सोच रहे होंगे। दीपा करमाकर ने रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करके देश की पहली महिला जिमनास्ट बनने का गौरव हासिल किया।
लेकिन उनका यहां तक का सफर इतना आसान नहीं रहा और तमाम उतार-चढ़ाव वाली परिस्थितियों से सामना करते हुए उन्हांsने ओलंपिक का टिकट हासिल किया।
भारोत्तोलन कोच दुलाल करमाकर के घर जन्मी दीपा ने छह साल की उम्र से ही जिमानस्टिक का प्रशिक्षण शुरू किया था। बिस्बेश्वर नंदी ने दीपा को जिमनास्टिक का प्रशिक्षण दिया।
उनके शानदार प्रशिक्षण के बाद ही दीपा इस मुकाम तक पहुंच पाई। हालांकि दीपा का जिमानास्टिक पहली पसंद नहीं था लेकिन पिता दुलाल ने उन्हें प्रेरित किया और इस खेल में उन्हें आगे बढ़ाया।
दीपा से शुरू से ही मेहनती थी। उन्होंने अपने हुनूर का पहला नमूना वर्ष 2007 में पेश किया जब उन्होंने जलपाईगुड़ी में ‘जूनियर नेशनल्स’ का खिताब जीता। इसके बाद से दीपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और ओलंपिक के अपने सपने को संजोते हुए आगे बढ़ती गई।
इससे पहले दीपा ने 2011 के राष्ट्रीय खेलों में पांच पदक हासिल कर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। दीपा अक्तूबर 2015 में विश्व आर्टिस्टिक जिमनास्टिक चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय एथलीट बनी थी।
दीपा का एक दौर ऐसा भी आया जब वह लंदन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई। उस दौरान दीपा ने यह खेल छोड़ने का मन भी मनाया था लेकिन कोच और पिता की प्रेरित करने वाली बातों से उनकी हिम्मत बढ़ी और उन्होंने रियो ओलंपिक लिए तैयारी शुरू कर दी थी।