भीलवाड़ा। राजस्थान हाईकोर्ट न्यायाधीश महेन्द्र कुमार माहेश्वरी ने कहा कि बाल विवाह रोकथाम के लिए कानून क्यों बनाना पड़ा और जब कानून बन गया, उसके बावजूद भी बाल विवाह पर रोक क्यों नहीं लगी इस विषय पर मनन व मंथन करना बहुत जरूरी है।
महेन्द्र कुमार माहेश्वरी सोमवार को जिला एवं सेशन न्यायालय परिसर में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भीलवाडा द्वारा बाल विवाह रोकथाम विशेष अभियान के प्रथम चरण के कार्यक्रम में मुख्यअतिथि पद से सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि बाल विवाह रोकथाम के लिए 1929 में शरदा एक्ट आया उसके बाद 2006 में कानून बना तथा 2007 में इस कानून को लागू किया गया। उन्होंने कहा कि आम व्यक्तियों को बाल-विवाह के दुष्परिणामों को समझना होगा। उन्हें बताना होगा कि जब तक लडक़े-लड़कियां पढ़ लिख कर स्वमं सक्षम हो जाएं तभी उन्हें शादी के बन्धन में बांधा जाए।
परिपक्वता के बाद की गई शादी सफल होती है। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों को कानून की पूरी तरह से जानकारी नहीं है। कानून की अधूरी जानकारी के कारण उनके मन-मस्तिष्क में किसी प्रकार का डर नहीं है। उन्हें पता होना चाहिए कि बच्चों का बाल-विवाह किया गया तो 2 वर्ष की कारावास या एक लाख रुपए तक जुर्माना या दोनों ही सजा भुगतनी होगी।
उन्होंने कहा कि दण्डात्मक कार्यवाही से अच्छा है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को समझाया जाए। बाल विवाह करने वालों की मानसिकता बदलनी होगी। उनके मन में उतर कर उन्हें भला बुरा समझाना होगा। उन्होंने कहा कि मां बच्चों की पहली पाठशाला होती है। मां बचपन से ही बच्चों को अच्छे संस्कार, संस्कृति से रूबरू करवाती है, मां शिक्षित होगी तो देश के विकास में सहयोग प्रदान कर सकेगी।
बेटा-बेटी में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते हुए दोनों को अच्छी शिक्षा प्रदान कराएं। उन्होंने कहा कि दुनिया में अगर व्यक्ति चाहे तो कुछ भी कर सकता है मुश्किल से मुश्किल काम को आसान बनाया जा सकता है। इस अवसर पर जिला एवं सेशन न्यायाधीश रामचन्द्र सिंह झाला ने कहा कि बाल विवाह एक मानसिक बुराई है एवं कानूनन एक दण्डनीय अपराध है।
उन्होंने बाल-विवाह के दुष्परिणामों के बारे में बताया कि समाज एवं राष्ट्रीय की उन्नति में बाधा, छोटी उम्र में मां बनना, शिक्षा कार्यकुशलता आत्मनिर्भरता का अभाव, शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर से पीढी का जन्म, मातृ मृत्यृ दर का बढना, विकास के अवसरों में रूकावट पैदा करता है। बाल विवाह करवाने पर पण्डित, नाई, खाना बनाने वाले, बैण्ड बाजे वाले, टेंट वाले को भी सजा हो सकती है।
उन्होंने बाल विवाह रोकथाम हेतु जानकारी देते हुए बताया कि अगर कहीं बाल-विवाह हो रहा है तो उसकी जानकारी के लिए जिला स्तर पर जिला कलक्टर, उपखण्ड अधिकारी या अध्यक्ष, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (जिला एवं सेंशन न्यायाधीश) हेतू दूरभाष नं. 01482-230199 पर, तालुक या उपखण्ड स्तर पर उपखण्ड अधिकारी, तहसीलदार या अध्यक्ष तालुका विधिक सेवा समिति (स्थानीय वरिष्ठ न्यायाधीश) तथा राज्य स्तर पर सदस्य सचिव राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जयपुर दूरभाष नं. 0141 – 2227481 हल्पलाईन न0 0141-2385877 पर संम्पर्क कर सकते हैं।
जिला पुलिस अधीक्षक प्रदीप मोहन शर्मा ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जानकारी दी जाएगी। जिले के ग्रामीण क्षेत्र में मोबाइल वेन द्वारा जागरूकता तथा लोगों को कानून के बारे में जानकारी दी जाएगी।
ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्ति आर्थिक रूप से सुविधा के अनुसार बड़ी के साथ छोटी लडक़ी का विवाह, वृद्ध दादा-दादी की जिद तथा खर्च के बचने के लिए भी बाल-विवाह को बढ़ावा देते हैं। इस बढ़ावे को हम सभी को मिलकर अशिक्षत व्यक्तियों को जागृत करने में अपनी सहभागीदारी निभानी होगी।