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उत्तराखंड में फिर राष्ट्रपति शासन, अगली सुनवाई 27 को - Sabguru News
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उत्तराखंड में फिर राष्ट्रपति शासन, अगली सुनवाई 27 को

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उत्तराखंड में फिर राष्ट्रपति शासन, अगली सुनवाई 27 को
supreme court stays nainital high court order on President's rule in uttarakhand
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने के नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर 27 अप्रैल तक रोक लगा दी है। यानि अब राज्य में राष्ट्रपति शासन फिर से लागू हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 27 को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के सामने शर्त रखी है कि अगली सुनवाई तक उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन नहीं हटाया जा सकता। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने 26 अप्रैल तक उत्तराखंड हाई कोर्ट को अपने आदेश की लिखित कॉपी दोनों पक्षों को देने का निर्देश दिया है।

केंद्र सरकार उत्तराखंड मसले पर नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंची लेकिन कोर्ट ने तुरंत इस मामले को सुनने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अटार्नी जनरल मुकुल रस्तोगी से पहले रजिस्ट्रार के पास मामला सूचीबद्ध कराने को कहा।

अटार्नी जनरल ने अदालत से कहा कि इस मामले में तत्काल सुनवाई के साथ-साथ नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की आवश्यकता है क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति है जहां उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक आदेश पारित कर दिया है और उसकी प्रतिलिपि किसी के हाथ में नहीं है। बाद में केंद्र सरकार की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट दोपहर बाद सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया।

दोपहर में 3.30 बजे के बाद मामले की सुनवाई करते हुए दो न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से यह भरोसा देने को कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दे तो केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बिना उत्तराखंड में कुछ नहीं करेगी। सरकार की तरफ से आश्वासन मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर 27 मार्च तक रोक लगा दी।

फैसला आने के बाद अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी और भाजपा नेता एवं वकील नलिन कोहली ने पत्रकारों को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया है जिसके बाद राज्य में फिर से राष्ट्रपति शासन लग गया है। अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी। तब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा रहेगा। यानि कि हरीश रावत सहित पूरे कैबिनेट को कोई फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है।

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि केंद्र सरकार इस दौरान राज्य से राष्ट्रपति शासन हटा नहीं सकती। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट को गुरूवार का आदेश लिखित रूप 27 अप्रेल से पहले देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश की लिखित कॉपी दोनों पक्षों को दी जाएगी।

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का बयान

कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि यह फैसला अन्तरिम है ना कि अंतिम। सुप्रीम कोर्ट का आदेश 27 तक है क्योंकि उनके पास उत्तराखंड हाई कोर्ट के निर्देश की लिखित कॉपी नहीं थी। हम पूरे सम्मान के साथ सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे।

पहले मैं बर्खास्त मुख्यमंत्री था, फिर हाईकोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री बनाया गया और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब निवर्तमान मुख्यमंत्री हूं। जब तक सुप्रीम कोर्ट अंतिम फैसला नहीं सुना देता तब तक राज्य से राष्ट्रपति शासन नहीं हटाया जा सकता। रावत ने कहा कि पर्दे के पीछे से सरकार बनाने की कोशिश चल रही थी। उस पर कोर्ट ने रोक लगाई है।

राज्य की जनता पर अनैतिक सरकार थोपने की कोशिश की जा रही थी। राजनीतिक अस्थिरता का खामियाजा राज्य को भुगतना पड़ रहा है। हम चाहते हैं कि इस मामले पर जल्द फैसला हो, ताकि जल्दी से फिर विकास कार्य हो सकें। राज्य में जल्द ही चारों धाम की यात्रा शुरू होने वाली है। राजनीतिक अस्थिरता की वजह से यात्रा की तैयारियां प्रभावित हो रही हैं।

पिछले दो साल में हमने काफी मेहनत से राज्य का नाम ऊंचा किया था। लेकिन इन हालातों से सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। राज्य का विकास रुका हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि हम हर तरीके के परिवर्तन के लिए तैयार हैं। हम मायूस नहीं हैं। हम जीत के प्रति आश्वस्त हैं। हमें उम्मीद है कि कोर्ट से हमें आशान्वित फैसला सुनने को मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि हरीश रावत ने बिना राज्यपाल की अनुमति के बिना ही मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाल लिया था। कांग्रेस के बागी नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह बहुत अच्छा निर्देश है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट की सोच उत्तराखंड हाई कोर्ट से भिन्न है।