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उत्तराखण्ड का अध्याय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी - Sabguru News
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उत्तराखण्ड का अध्याय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी

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उत्तराखण्ड का अध्याय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी

Uttarakhand political crisis is harmful for democracy

देहरादून। प्रदेश में राजनीतिक अपरिपक्वता के चलते आज सियासी संकट की स्थिति बनी है। सत्ता पाने की इस होड़ में सियासत के मायने ही बदल गए हैं। राजनीतिक महत्वकांक्षा को साधने और आंकड़ों के संवैधानिक खेल में सियासी दलों ने लोकतांत्रित व्यवस्था पर जमकर प्रहार किया है।

राज्य के राजनीतिक हालात पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उत्तराखंड में जो कुछ हुआ, वह राजनैतिक लिहाज से ठीक नहीं है। आज जो हो रहा है वो लोकतंत्र के लिए किसी खतरे की घंटी से कम भी नहीं है। हालांकि लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत ही राष्ट्रपति शासन भी है, लेकिन इस राजनीतिक द्वंद में न्यायालय तक पहुंचने को भी अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता।

बात करें प्रदेश में राजनीतिक बगावत की तो इसकी नींव उसी दिन पड़ गई थी, जिस दिन बिजय बहगुणा सरकार को हटाकर हरीश रावत को राज्य की सत्ता सौंपी गई थी। एक ओर जहां कांग्रेस के घरेलू झगड़े में विजय बहगुणा और बागियों को आगे कर बीजेपी ने प्रदेश की सियासत में भूचाल मचा दिया है तो वहीं वहीं राज्य में अपने कुनबे को बिखरने से बचाने में सोनिया और राहुल गांधी नाकाम रहे। ऐसी स्थिति में विजय बहगुणा और बागी वक्त के इंतजार में थे और मौका मिलते ही अपनी रणनीति को अंजाम दे डाला।

राज्य में सरकार बनाने के हालात फिलहाल किसी के पक्ष में नहीं हैं, जब तक बागियों पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक किसी भी सरकार के गठन की कवायद आगे नहीं बढ़ सकती है। राज्य में जिस तरह सियासी महाभारत जारी है उसको देखते हुए जल्द सरकार बनने की सम्भावना नहीं है। हालांकि राजनीति में कब क्या हो जाए और किस गणित के सहारे राजनीतिक दल सरकार बनाने का दावा पेश कर दें कहा नहीं जा सकता।

विधानसभा में कुल 70 विधायक हैं, जिसमें कांग्रेस के पास 36 थे और बीजेपी की संख्या 28 रही, जिसमें बीजेपी का एक विधायक निलंबित है। राज्य में दो बसपा जबकि तीन निर्दलीय और एक उत्तराखंड क्रांतिदल के विधायक हैं। कांग्रेस में बगावत होने के बाद अब उसके पास 27 विधायक हैं।

चाहे बात राष्ट्रपति शासन लगाने की रही हो या फिर हरीश रावत द्वारा सत्ता पर काबिज होने का मामला। दोनों ही तरफ से जिस उतावलेपन का परिचय दिया गया उसे राजनैतिक अपरिपक्वता से कम नहीं कहा जा सकता है।

वैसे, देखा जाए तो राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फंसे उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रही हैं। अब यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है।