हर काल में अति विशिष्ट (वी.वी.आई.पी.) लोग हुए है, उनके चरित्र और दोषों का उल्लेख इतिहास में है। लोकतंत्र को चाहे आम जनता द्वारा संचालित व्यवस्था मानी जाए, लेकिन इसमें भी राजनेता अति विशिष्ट होते हैं, उनके लिए जेड श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था रहती है, उनके अच्छे बुरे कामों की भी चर्चा होती है।
कांग्रेस आजादी के पूर्व की पार्टी है, इसके आजादी के संघर्ष को भी भुलाया नहीं जा सकता। आजादी के बाद कांग्रेस एक परिवार की पार्टी हो गई। नेहरूजी, इंदिराजी, राजीवजी की कांग्रेस रही। पहली बार यह हुआ कि कांग्रेस की बागडोर विदेशी मूल की सोनिया गांधी के हाथों में है।
सोनिया गांधी का नाम पहले सोनिया एटोनिया माइनो था, यह भी सच्चाई है कि उन्होंने इंदिराजी के बड़े बेटे राजीव गांधी से प्रेम विवाह किया, इसके साथ यह भी सच्चाई है कि सोनिया माइनो ने शादी के बाद करीब दस वर्ष तक भारत की नागरिकता नहीं ली, इसके पीछे क्या कारण था? इस सवाल के उत्तर की तलाश अभी तक पूरी नहीं हो सकी। यह कोई नई घटना नहीं कि किसी विदेशी से शादी किसी भारतीय ने नहीं की हो।
इस बारे में सम्राट चंद्रगुप्त ने यूनान के सेक्यूकस की पुत्री हेलन से शादी की। इस बारे में महा. आचार्य चाणक्य की शर्त यह थी कि विदेशी हेलन का जो पुत्र होगा, उसे भारत के राजनीतिक अधिकार नहीं मिलेंगे। चाणक्य की दृष्टि यह थी कि विदेशी मूल से जन्मे पुत्र की निष्ठा देश के प्रति होना संदिग्ध रहती है।
राजीव गांधी भी भारत के राज परिवार के पुत्र थे, उनकी माता इंदिराजी प्रधानमंत्री थी। उनके बाद राजीव गांधी को पायलट से प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला। बोफोर्स घोटाले में उनका नाम आने से न केवल उनकी छवि प्रभावित हुई, बल्कि भारत की जनता ने उनकी सरकार का तख्ता पलट दिया। बोफोर्स मामले की चर्चा संक्षेप में करना उचित होगा। 16 अप्रैल 1987 को स्वीडिश स्टेट रेडियो ने स्वीडन के बारे में चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
इस सिलसिले में बोफोर्स कंपनी द्वारा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कांग्रेस के सदस्यों को कथित रूपसे करीब 106 करोड़ डालर ( उस समय के बीस करोड़ रु.) दिए गए। स्विस बैंक के गुप्त खातों में यह रकम जमा हुई। इस मामले की रिपोर्ट सबसे पहले दि हिन्दू दैनिक में प्रकाशित हुई।
राजधानी दिल्ली में उस समय बोफोर्स सौदे में किसी इतावली का हाथ होने की चर्चा थी। यह बिचौलिया इटली निवासी ओतवियो क्वात्रोची था। इसने सोनिया गांधी के माध्यम से प्रधानमंत्री राजीव गांधी से निकट संबंध बना लिए थे। इसका प्रधानमंत्री निवास में बेरोकटोक आना जाना था। इसी मामले को लेकर वरिष्ठ मंत्री वी.पी. सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
जनवरी 1987 में उन्हें वित्त मंत्रालय से रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने जर्मन पनडुब्बी की जांच के आदेश जारी कर दिए। इससे राजीव गांधी नाराज हुए। इसके बाद उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया। उन्होंने जन मोर्चे का गठन किया।
आश्चर्य यह कि राजनीतिक दबाव में क्वात्रोची को देश से बाहर जाने की अनुमति मनमोहन सरकार ने दी। इस मामले में भी शंका की सुई सोनिया गांधी की ओर जाती है। सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आपत्ति कांग्रेस नेताओं ने की।
1999 के चुनाव अभियान में महत्वपूर्ण मुद्दा था, सोनिया गांधी के विदेशी मूल का। उस समय भाजपा नेतृत्व के राजम ने अपने घोषणा पत्र में ऐसा कानून बनाने का वायदा किया था कि महत्वपूर्ण पदों पर वही व्यक्ति नियुक्त हो जो मूल रूप से भारतीय मूल का हो।
चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम् पार्टी ने भी ऐसे कानून का समर्थन किया, जिससे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री पद पर विदेशी मूल के व्यक्ति को आने से रोका जा सके। इसी प्रकार सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के लिए 272 सदस्यों के समर्थन का दावा किया था।
ऐन वक्त पर सोनिया गांधी के समर्थन को सपा के मुलायम सिंह यादव ने वापिस ले लिया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से विदेश मूल की सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का सपना चकनाचूर कर दिया। इसके पीछे मूल भाव यह रहा कि विदेशी मूल का व्यक्ति भारत के हित का विचार नहीं कर सकता। इस मुद्दे को लेकर 16 मई 1999 में कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा।
ये तीनों कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य थे। इनमें शरद पंवार जो कांग्रेस सरकार में रक्षामंत्री भी रह चुके, लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष पी.ए. संगमा एवं बिहार के कांग्रेस नेता तारिक अनवर। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष को विस्तार से एक पत्र लिखा, इसका आखरी अंश यहां प्रस्तुत करना प्रासंगिक होगा।
कांग्रेस के घोषणा पत्र में संविधान में संशोधन करने का सुझाव दिया जाना चाहिए कि राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पद पर केवल भारत में जन्में भारतीय नागरिक ही आसीन हो सके थे। हमारा आपसे यह भी अनुरोध है कि कांग्रेस अध्यक्ष के नाते आप इस संशोधन का प्रस्ताव रखे।
यह आपके संगत दृष्टिकोण के अनुरूप होगा कि लोकजीवन में आपके पर्दापण करने का उद्देश्य पार्टी में नई जान डालना है। इन नेताओं के बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस गठित की। इनकी आशंका यही थी कि विदेशी मूल का नेतृत्व देश के अनुकूल नहीं हो सकता।
इन सारे संदेह और घटनाक्रम के साथ इटली की कोर्ट जो भारत की हाईकोर्ट के समकक्ष है। करीब तीन वर्ष पुराने आगस्टा हेलिकाप्टर डील में वहां की कोर्ट ने निर्णय? दिया कि भारतीय नेताओं को 360 करोड़ से अधिक की रिश्वत दी गई। यह सौदा 3600 करोड़ के वीवीआईपी हेलिकॉप्टर खरीदने का था। 225 पृष्ठों के निर्णय में चार बार सिग्नोरा गांधी का नाम आया है।
इटली भाषा में सिग्नोरा का अर्थ महिला होता है। उनके साथ ही मनमोहन सिंह के नाम का भी उल्लेख है। कांग्रेस इस आरोप को राजनीतिक द्वेष का नहीं बता सकती, क्योंकि सोनिया जी के मूल देश के कोर्ट का निर्णय है।
इस डील को मोदी सरकार के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने निरस्त करते हुए कंपनी को ब्लेक लिस्टेट कर दिया। इस बारे में कांग्रेस हंगामे के द्वारा सच्चाई को दबाना चाहती है। यदि यह आरोप और निर्णय सही है तो फिर विदेशी मूल के नेतृत्व की राष्ट्रनिष्ठा पर संदेह की पुष्टि हो जाएगी। यह मामला सोनिया गांधी के गले की हड्डी बन गया है।
जयकृष्ण गौड़
(लेखक- राष्ट्रवादी लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)