उज्जैन। पतित पावनी मोक्ष दायिनी मां क्षिप्रा की आरती का क्रम आज का नहीं, अपितु ग्वालियर इस्टेट के समय से चला आ रहा है। पहले यह आरती सिर्फ रामघाट पर बने प्रवेश द्वार, जिसे हाथी द्वार भी कहा जाता था, वहाँ होती थी और यह आरती शासन की ओर से कराई जाती थी।
रामघाट के मंदिर के पुजारी पंडित हिमांशु व्यास तीर्थ पुरोहित ने बताया कि पुराने समय में उज्जैन के पंडित विश्वनाथ जोशी परिवार के सदस्य रामघाट आरती के लिए शासकीय पुजारी के रूप में नियुक्त किये गये थे, तब से यह क्रम चलता आ रहा है।
धीरे-धीरे आरती का स्वरूप बदलता गया। अन्य स्थानीय श्रद्धालु नित्य आरती के जुड़ते गए और लगभग 90 के दशक के अंत में क्षिप्रा महासभा का गठन हुआ और आरती द्वार के साथ आयोजन को भव्यता प्रदान की गई। तब से आरती का यह क्रम नियमित रूप से जारी है।
तत्पश्चात् वर्ष 2000 के आसपास माँ क्षिप्रा के दूसरे तट पर दत्त अखाड़ा के द्वारा आरती प्रारंभ की गई। इस आरती की व्यवस्था दत्त अखाडे़ के पीर जी और गढ़ी के भक्त गणों द्वारा की जा रही है। अब तो शिप्रा के प्रत्येक घाट पर आरती होने लगी हैं।