ढाका। बांग्लादेश में 1971 में हुए युद्ध के दौरान किए गए युद्ध अपराधों के लिए कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख मोतीउर रहमान निजामी को मंगलवार रात फांसी दे दी गई।
मोतीउर रहमान जमात के सबसे बुजुर्ग नेता थे, जिन्हें 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान किए युद्ध अपराधों के लिए फांसी दी गई। बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी के 73 वर्षीय नेता ने राष्ट्रपति से क्षमादान मांगने से इनकार कर दिया था।
ढाका सेंट्रल जेल में फांसी की प्रक्रिया के दौरान मौजूद रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि निजामी को मध्यरात्रि 12 बजे फांसी पर लटकाया गया। 20 मिनट से अधिक समय तक फांसी पर लटके रहने के बाद सिविल सर्जन ने मोतीउर रहमान को मृत घोषित कर दिया।
ढाका के जिला मजिस्ट्रेट, जेल के इंस्पेक्टर जनरल और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी फांसी दिए जाने के वक्त मौजूद रहे। इस दौरान जेल परिसर में भारी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। फांसी के खिलाफ मोतीउर रहमान की आखिरी अपील को पांच मई को बांग्लादेश के शीर्ष न्यायालय ने खारिज कर दिया था।
ये थे आरोप
मोतीउर रहमान पर लगे आरोपों की सुनवाई के दौरान इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल इस नतीजे पर पहुंची थी कि 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान अल बद्र नामक मिलिशिया के सुप्रीम कमांडर थे, जिसे पाकिस्तानी फौज ने अपनी सहायता के लिए गठित किया था।
इस संगठन ने न सिर्फ बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश बनाए जाने का विरोध किया था, बल्कि पाकिस्तानी सेनाओं के साथ मिलकर बांग्लादेशी नागरिकों की सामूहिक हत्याएँ, उत्पीडऩ और बलात्कार भी किए थे।
इसके अलावा मोतीउर रहमान पर बांग्लादेश में मंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार का भी आरोप था। उन पर 2004 में भारत के असम राज्य में आतंकवादियों तक हथियार पहँुचाने का भी आरोप था। इस आरोप में भी उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी।