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भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई मृणाल सेन ने - Sabguru News
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भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई मृणाल सेन ने

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भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई मृणाल सेन ने
happy birthday : legendary filmmaker Mrinal Sen turns 94
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मुंबई। भारतीय सिनेमा जगत में मृणाल सेन का नाम एक ऐसे फिल्मकार के तौर पर शुमार किया जाता है जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिये भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाई।

14 मई 1923 को फरीदाबाद अब बांग्लादेश में जन्में मृणाल सेन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा फरीदाबाद से हासिल की। इसके बाद उन्होंने कोलकाता के मशहूर स्काटिश चर्च कॉलेज से आगे की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान वह कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मृणाल सेन की रूचि फिल्मों के प्रति हो गई और वह फिल्म निर्माण से जुड़े पुस्तकों का अध्यन्न करने लगे।

इस दौर में वह अपने मित्र ऋतविक घटक और सलिल चौधरी को अक्सर यह कहा करते कि भविष्य में वह अर्थपूर्ण फिल्म का निर्माण करेंगे लेकिन परिवार की आर्थिक स्थित खराब रहने के कारण उन्हें अपना यह विचार त्यागना पड़ा और मेडिकल रिप्रजेंटेटिव के रूप में काम करना पड़ा।

लेकिन कुछ दिनों के बाद उनका मन इस काम में नहीं लगा और उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी। फिल्म के क्षेत्र में मृणाल सेन अपने करियर की शुरूआत कोलकाता फिल्म स्टूडियो में बतौर ऑडियो टेक्निशियन से की। बतौर निर्देशक मृणाल सेन ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म रात भौर से की। उत्तम कुमार अभिनीत यह फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह नाकाम साबित हुई।

इसके बाद वर्ष 1958 में मृणाल सेन की नील आकाशे नीचे फिल्म प्रदर्शित हुई। फिल्म की कहानी एक ऐसे चीनी व्यापारी वांगलु पर आधारित होती है जिसे कोलकाता में रहने वाली बसंती अपने वामपंथी विचारधारा के जरिये प्रभावित करती है और वह अपने देश जाकर अपने साथियों के साथ मिलकर जापानी सेना के विरूद्ध छेड़े गए मुहिम में शामिल हो जाता है।

फिल्म में वांगलु की भूमिका में काली बनर्जी ने और बसंती की भूमिका मन्जू डे ने निभाई। यूं तो फिल्म के सारे गीत लोकप्रिय हुए लेकिन खासतौर पर हेमंत मुखर्जी की आवाज में रचा बसा यह गीत ‘वो नदी रे एकती कथा सुधाई रे तोमारेÓ श्रोताओं के बीच आज भी सुने जाते है। फिल्म जब प्रदर्शित हुई तो फिल्म में वामपंथी विचारधारा को देखते हुए इसे दो महीने के लिए बैन कर दिया गया। फिल्म की सफलता के बाद वह कुछ हद तक बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए।

मृणाल सेन की अगली फिल्म बैसे श्रवण वर्ष 1960 में प्रदर्शित हुई। फिल्म की कहानी वर्ष 1943 में बंगाल में हुए भयंकर अकाल की पृष्ठभूमि पर आधारित होती है जिसमें लगभग पांच लाख लोग अकाल और भूखमरी से काल का ग्रास बन गए थे। फिल्म की कहानी की मुख्य पात्र माधवी मुखर्जी ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो अपनी उम्र से काफी बड़े युवक के साथ शादी कर अपना वैवाहिक जीवन बीता रही थी इसी बीच द्वितीय विश्वयुद्ध और अकाल ने उसका वैवाहिक जीवन बिखर जाता है। बाद में महिला खुद को फांसी लगा देती है।

फिल्म बैसे सावन की सफलता के बाद मृणाल सेन ने पांच अन्य फिल्मों का भी निर्माण किया लेकिन ये सभी न तो व्यवसायिक तौर पर सफल हुई और ना ही समीक्षकों को पसंद आई। इसके बाद मृणाल सेन ने वर्ष 1966 में उडिय़ा भाषा में माटिर मनीषा फिल्म का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई। इन फिल्मों की असफलता के बाद निर्माताओं ने उनसे मुंह मोड़ लिया और अपनी फिल्मों में बतौर निर्देशक काम देना बंद कर दिया।

वर्ष 1969 में एन.एफ.डी.सी की सहायता से मृणाल सेन ने फिल्म भुवन सोम का निर्माण किया। फिल्म की कहानी भुवन सोम नामक एक ऐसे कठोर और अनुशासनप्रिय अधिकारी पर आधारित होती है जिसे गांव जाने का मौका मिलता है और वहां के वातावरण में उसकी छवि में परिवर्तन हो जाता है और वह सबसे समान भेदभाव बरतने लगता है। फिल्म में भुवन सोम के किरदार में उत्पल दत्त ने भूमिका निभाई। इस फिल्म से जुड़ा रोचक तथ्य यह भी है कि इसी फिल्म में अमिताभ बच्चन ने पहली बार अपनी आवाज दी थी।

भुवन सोम के बाद मृणाल सेन ने इंटरव्यू (1971), कोलकाता 71 (1972), और पदातिक (1973) जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया। इन फिल्मों के बाद उनकी छवि एक ऐसे फिल्मकार के रूप में बन गई जो वामपंथी विचारधारा से प्रभावित राजनीति को अपनी फिल्म के जरिये पेश करते थे।

वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म ‘मृगया’ मृणाल सेन के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है। फिल्म में मृगया की मुख्य भूमिका मिथुन चक्रवर्ती ने निभाई थी और उन्हें अपने दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार से समानित किया गया था। यह मिथुन चक्रवर्ती के करियर की पहली फिल्म थी।

वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म अकालेर साधने उनके सिने करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म है। उनकी निर्देशित इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म और निर्देशन के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। इसके अलावा बर्लिन फिल्म फेस्टिबल में भी इसे समानित किया गया।

वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म खारिज मृणाल सेन के सिने करियर की हिट फिल्म में शुमार की जाती है। इस फिल्म की कहानी एक ऐसे मध्यम वर्गीय परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है जिसका युवा नौकर रसोईघर में दम घुटने से मर जाता है, जिससे उनका परिवार तनावग्रस्त हो जाता है। फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए अंजन दत्ता और ममता शंकर कान फिल्म फेस्टिबल में ज्यूरी पुरस्कार से समानित किए गए।

मृणाल सेन को अपने चार दशक लंबे सिने करियर में मान-समान खूब मिला। वर्ष 1981 में उनको पद्मभूषण पुरस्कार से समानित किया गया। उन्हें वर्ष 2005 में फिल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन सबके साथ ही मृणाल सेन को उनकी फिल्मों के लिए कान, बर्लिन, शिकागो, वेनिस जैसे कई फिल्म फेस्टिबल में विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के साथ ही वह समाज सेवा के लिए वर्ष 1998 से 2003 तक राज्य सभा सदस्य भी रह चुके है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी मृणाल सेन फिल्म निर्माण की कोई भी विद्या अछूती नहीं रही। उन्होंने फिल्म निर्माण और निर्देशन के अलावा कई फिल्मों की कहानी और स्क्रीन प्ले भी लिखे। वर्ष 2004 में उनकी आत्मकथा ‘आलवेज बिंग बोर्न’ प्रकाशित हुई। वर्ष 2009 में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिबल ऑफ केरल ने जब लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार की घोषणा की और मृणाल सेन वह पहले व्यक्ति बने जिन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मनित किया। वह इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय नहीं है।