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पांच राज्यों के चुनाव नतीजे : नकारात्मक राजनीति को जनमानस ने नकारा - Sabguru News
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पांच राज्यों के चुनाव नतीजे : नकारात्मक राजनीति को जनमानस ने नकारा

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पांच राज्यों के चुनाव नतीजे : नकारात्मक राजनीति को जनमानस ने नकारा
political analisis : five states assembly polls result 2016
political analisis : five states assembly polls result 2016
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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे घोषित हो गए हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में एआईएडीएमके तथा केरल में वामदालों को विजयश्री मिली है। वहीं कांग्रेस को असम की सत्ता गंवानी पड़ी है। चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद परिदृश्य कुछ वैसा ही नजर आ रहा जैसी संभावना विभिन्न एक्जिट पोल में जताई गई थी।

हम पांच राज्यों में से विशेषकर पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां ममता बैनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस पर राज्य के जनमानस ने एक बार फिर अपना विश्वास व्यक्त किया है तथा ममता फिर राज्य की मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं।

पश्चिम बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बैनर्जी के करिश्माई व्यक्तित्व की बदौलत उनकी पार्टी को वामपंथी दलों की 34 वर्ष की सत्ता को उखाड़ फेंकने का मौका मिला था। उसके बाद राज्य की सत्ता संभालने वाली ममता बैनर्जी ने खासकर गांव और गरीबों की भलाई की दिशा में बड़े पैमाने पर काम किया।

ममता बैनर्जी की साफ-स्वच्छ छवि व सादगी पूर्ण जीवन भी उनकी राजनीतिक कामयाबी का सबसे बड़ा कारण है, इस बात को मानना ही होगा। वहीं राज्य के मौजूदा विधानसभा चुनाव में भाजपा सहित अन्य विपक्षी राजनीतिक दलों ने ममता बैनर्जी व तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ सुनियोजित अभियान चलाया।

नरेन्द्र मोदी, अमित शाह सहित तमाम बड़े भाजपा नेताओं ने विधानसभा चुनाव के लिये अपनी चुनाव सभाओं के दौरान ममता बैनर्जी पर बंगाल को लूटने का आरोप लगाया, भ्रष्टाचार के तमाम तरह के मुद्दों को चुनावी ध्रुवीकरण का आधार बनाने की कोशिश की जाती रही।

इससे पहले नारद स्टिंग कांड जैसे छवि धूमिल करने वाले मामले भी ममता बैनर्जी व उनकी पार्टी के खिलाफ जनचर्चा में लाए गए। लेकिन राज्य के मतदाताओं ने ममता बैनर्जी की फिर प्रचंड जीत का मार्ग प्रशस्त करके यह साबित कर दिया है कि सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप व नकारात्मक राजनीति से ही चुनाव नहीं जीते जा सकते बल्कि चुनाव जीतने के लिये आवाम की भलाई के लिए ईमानदारी व समर्पण भाव से काम करना जरूरी है।

भारतीय जनता पार्टी केन्द्र की सत्ता में रहकर पश्चिम बंगाल व केरल जैसे राज्यों में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश करने के बजाय नकारात्मक व दुष्प्रचारवादी राजनीति का तानाबाना तैयार करती रही यही कारण है कि तमाम कोशिशों के बावजूद नतीजे अपेक्षा के अनुरूप नहीं आए।

घोषित चुनाव नतीजों के अनुसार केरल में वाम मोर्चे को राज्य की सत्ता मिली है तथा कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बाहर होना पड़ा है। केरल कांग्रेस का परंपरागत राज्य रहा है। केरल ने कांग्रेस को के. करुणाकरन् तथा ए.के. एंटनी जैसे जीवट और व्यापक जनाधार वाले नेता दिये हैं।

तब तत्कालीन परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए के.करुणाकरन् की जिद के आगे झुकते हुए कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद से ए.के. एंटनी को हटाकर ओमान चांडी को सत्ता की बागडोर सौंपी थी तो चांडी के हाथों में यह महती जिम्मेदारी थी कि वह राज्यवासियों की व्यापक उम्मीदों के अनुरूप सुशासन की स्थापना करते हुए कांग्रेस के राजनीतिक उत्कर्ष का भी सशक्त आधार बनाएं लेकिन ओमान चांडी ऐसी सकारात्मक संभावनाओं को मजबूत बनाने के बजाय उनका नाता विवादों से बढ़ता गया।

मुख्यमंत्री पर व्यक्तिगत रूप से घपलों-घोटालों के आरोप लगाने के साथ ही उनका सेक्स स्कैंडल उजागर होने तक की बात सामने आई। चौतरफा आलोचनाओं के बावजूद ओमान चांडी अपनी दरकती हुई छवि को बचाने की दिशा में कोई ठोस काम नहीं कर पाए।

तमिलनाडु में जयललिता के नेतृत्व वाले अन्नादमुक ने फिर बाजी मार ली है तथा जयललिता के पुन: मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है। वहीं एम.करुणानिधि के नेतृत्व वाले द्रमुक को फिर पराजय हाथ लगी है।

डीएमके बयोवृद्ध नेता एम. करुणानिधि व उनकी पार्टी जयललिता व एआईएडीएमके के खिलाफ कोई प्रभावी जनमत तैयार नहीं कर पाई तथा उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद जयललिता के विजय रथ को रोका नहीं जा सका इसके लिए करुणानिधि के परिवार में चल रहा सत्ता संघर्ष भी उनकी पार्टी की चुनावी पराजय के लिए प्रमुखता के साथ जिम्मेदार है।

राज्य में कांग्रेस एवं डीएमके ने चुनाव पूर्व गठबंधन किया लेकिन ऐसा लगता है कि इस गठबंधन का दोनों दलों को कोई खास राजनीतिक फायदा नहीं मिल पाया। असम में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा तो इसके लिए बंगलादेशी घुसपैठ जैसे कई मुद्दों को जिम्मेदार माना जाना स्वाभाविक है। पांडिचेरी में अवश्य कांग्रेस के लिए राहत भरी स्थिति है जहां वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है।

यह चुनाव नतीजे निश्चित तौर पर राजनीतिक दलों व नेताओं के लिये कई नसीहत देने वाले हैं। राजनीतिक दल एवं राजनेता दोनों को ही जनमानस की नजर में अपनी प्रासंगिकता कायम रखने के लिये खुद की सोच एवं कार्यपद्धिति को जनभावाओं के अनुरूप बनाए रखना होगा। राजनीति या सत्ता स्वार्थपूर्ति का आधार नहीं बल्कि जनसेवा का सशक्त माध्यम है, राजनीतिक बिरादरी के लोगों को इस बात पर गंभीरतापूर्वक गौर करना होगा।

इसके अलावा देश के लोगों को छल-कपट व अनावश्यक लानत-मलानत की राजनीति स्वीकार नहीं है। बल्कि राजनेताओं को जनता केन्द्रित राजनीति का मार्ग प्रशस्त करना होगा। तभी जनमानस के बीच उनकी स्वीकार्यता कायम रखी जा सकती है।

सुधांशु द्विवेदी