प्रतापगढ़। अपर सत्र न्यायाधीश प्रतापगढ विकास कुमार खण्डेलवाल ने बलात्कार के एक मामले में अभियुक्त को बरी किया परन्तु पीड़िता जो न्यायालय में बदल गई थी, उसके विरूद्ध धारा 344 सीआरपीसी का नोटिस देते हुए उस पर एक लाख रूपये का जुर्माना किया।
प्रकरणानुसार प्रार्थीया भुला कुमारी मीणा ने एक इस्तगासा अभियुक्त विजेन्द्र के विरूद्ध दर्ज कराया था कि अभियुक्त ने उसकी इच्छा के विरूद्ध बलात्कार किया तथा शादी का झांसा देकर यौन शोषण करता रहा और अभियुक्त ने उसे डरा-धमकाकर उसके ए.टी.एम. से राशि भी निकाल ली।
इस पर थाना सुहागपुरा द्वारा एफआईआर संख्या 132/2014 अन्तर्गत धारा 376, 366, 384, 467, 468 आईपीसी में दर्ज कर अनुसंधान के बाद अभियुक्त विजेन्द्र के विरूद्ध न्यायालय में चालान पेश किया गया।
पीड़िता ने अपने साथ हुई घटना के सन्दर्भ में मजिस्ट्रेट के समक्ष 164 के बयान कथन किए थे। पुलिस को भी बयान दिए थे। परन्तु विचारण के दौरान न्यायालय में पीड़िता ने अपने बयान बदल दिए और अभियुक्त द्वारा उसके साथ कोई घटना नहीं होना कहा।
अभियोजन पक्ष द्वारा उसे पक्षद्रोही घोषित कर उससे जिरह की गई। न्यायालय ने निर्णय पारित करते हुए अभियुक्त को बरी किया, परन्तु पीड़िता को 344 का नोटिस देते हुए लिखा कि पीड़िता एक शिक्षिका होकर सरकारी कर्मचारी है, और इस ओहदे पर रहते हुए उसने न्यायालय में झूठे कथन किए हैं वह 164 के बयानों से भी मुकर गई।
ऐसी स्थिति में न्यायालय के समक्ष गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है, न्यायालय को अपना कीमती समय बर्बाद करना पड़ता है, न्यायालय में मुकद्मों का अम्बार लगा हुआ है। न्यायालय में आकर शपथ पर असत्य व झूंठे कथन करने की प्रवृत्ति किसी भी कीमत पर प्रोत्साहन योग्य नहीं है।
सर्वोंच्च न्यायालय का हवाला देते हुए न्यायालय ने लिखा कि आजकल यह सामान्य धारणा बन गई है कि न्यायालय में अधिकांश गवाह शपथ लेने के बावजूद असत्य कथन करते है। इस बुराई को रोकने के लिए कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है। इस संबंध में ऐसे गवाहों के खिलाफ प्रभावी कार्यवाही किया जाना समय की मांग है।
न्यायालय ने कथित पीड़िता से तत्काल एक लाख रूपया जमा कराने को कहा, जिस पर उसने एक लाख रूपया जमा कराया व लिखित में न्यायालय का समय व पुलिस का समय बिगाड़ने पर माफी मांगी।