काबुल। ईरानी सभ्यता का एक हिस्सा भारतीयों के दिलों में रहता है और भारत की विरासत का एक भाग इरानी समाज में गुंथा हुआ है। दुनिया में सामरिक सहयोग की बातें होती हैं लेकिन भारत और ईरान दो ऐसी सभ्यतायें हैं जो हमारे संस्कृति के संगम का उत्साह मनाती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पहली ईरान यात्रा में उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भारत की जातक और पंचतंत्र की कहानियां का फारसी में खालिह–वा-दिम्नाह बन जाना दो समाजों के बीच सांस्कृतिक विचारों की यात्रा को दर्शाता है।
विचारों और परंपराओं, कवियों और शिल्पकारों, कला और स्थापत्य कला, संस्कृति और वाणिज्य के सदियों से चले आ रहे मुक्त आदान-प्रदान ने दोनों सभ्यताओं को समृद्ध किया है।
अजमेर शरीफ और भारत में हजरत निजामुद्दीन की दरगाह ईरान में समान रूप से प्रतिष्ठित हैं। हमारी दुनिया विचारों और मूल्यों में महाभारत और शाहनामा, भीम और रुस्तम, अर्जुन और अर्श प्रदर्शनी समानता है।
ईरानी समाज का हिस्सा जरदोजी, गुलदोजी और चंदेरी शिल्प भारत में भी समान रूप से आम हैं। भारत के महान मध्ययुगीन कवियों ने फारसी और संस्कृत को दो बहनें कहके संबोधित किया है।
हमारे आपसी संपर्क ने न सिर्फ हमारी अपनी संस्कृतियों परिष्कृत किया है बल्कि उन्होंने विश्व स्तर पर उदारवादी और सहिष्णु समाज के विकास में भी योगदान दिया है।
यह वास्तव में बेहद हर्ष का विषय है कि उन्हें भारत और ईरान, दो महान सभ्यताओं:। पीछे मुड़कर देखें और संभावनाएँ” सम्मेलन का उद्घाटन करने का अवसर मिल रहा है। मुझे बेहद खुशी है कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद और फारहांगस्तान मिलकर इस सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं।