मास्को। रूस ने अगले महीने आस्ट्रिया की राजधानी वियना में होने वाली तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की बैठक में भाग लेने से पूरी तरह मना कर दिया है। पहले ये माना जा रहा था कि पूर्व में रूस की ओर से तेल कीमतों को लेकर जिस तरह अपना हस्तक्षेप जताया गया, उसे देखते हुए वह ओपेक की आने वाले दिनों में होने जा रही इस महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा जरूर लेगा।
इसे लेकर रशियन संवाद समिति रिया ने रूसी ऊर्जा मंत्री अलेक्सांद्र नोवाक के हवाले से कहा कि रूस ओपेक का हिस्सा नहीं है और इसलिए उसकी ओपेक के सदस्य देशों की होने वाली आगामी बैठक में हिस्सा लेने की कोई योजना नहीं है।
जबकि उल्लेखनीय है कि रूस ने हाल ही में कुछ वक्त पूर्व ही वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में हुयी गिरावट के मद्देनजर इसके सदस्य देशों के साथ विचार विमर्श किया था। ओपेक की बैठक सामान्यत साल में दो बार मार्च एवं सितंबर में होती है। विशेष परिस्थितियों में बैठक का आयोजन 2 से ज्यादा बार भी किया गया है।
ये है ओपेक
ओपेक यानी तेल निर्यातक देशों का संगठन इसमें एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के प्रमुख तेल उत्पादक व निर्यातक देश शामिल हैं जिनकी दुनिया के कुल कच्चे तेल में लगभग 77 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। संगठन की स्थापना 14 सितंबर 1960 में इराक की राजधानी बगदाद हुई थी और यह छह नवंबर 1962 को संयुक्त राष्ट्र ने पंजीकृत किया गया था।
ओपेक के पांच संस्थापक देशों में ईरान, इराक, कुवैत, सउदी अरब व वेनेजुएला है। इसके बाद संगठन में कतर, इंडोनेशिया, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, नाइजीरिया, इक्वाडोर, गेबोन व अंगोला शामिल हुए। इंडोनेशिया जनवरी 2009 में संगठन से हट गया। कुल मिलाकर अभी इसके 12 सदस्य है। ओपेक का सचिवालय पहले जिनोवा में था जिसे कि अब वियना कर दिया गया है।
गौरतलब है कि तेल आयात व उपभोग के लिहाज से अमेरिका शीर्ष पर है जबकि उत्पादक व निर्यातक के रूप में साउदी अरब है। सउदी अरब भारत के लिए सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता भी है। संगठन फिलहाल हर दिन तीन करोड़ बैरल से ज्यादा का तेल प्रतिदिन उत्पादन करता है।
संगठन में शामिल तेल उत्पादक देश ये सोच कर साझा मंच पर आए कि वो आपूर्ति पर नियंत्रण बना कर क़ीमतें मनमुताबिक तय कर पाएंगे, लेकिन पिछले कुछ दशकों में ओपेक के लिए स्थितियाँ काफी बदल चुकी हैं। तेल की कीमते ज्यादातर अमेरिकन कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय बाजार के मुताबिक तय करती हैं।