गर्मी के मौसम में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ बढ़ गई है, आये दिन सुरक्षा जवानों और सेना के जवानों के साथ आतंकियों की मुठभेड़ होती है और आतंकी मारे जाते हैं या जवान शहीद होते हैं।
कश्मीर के कुपवाड़ा में सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई और चार आतंकी मारे गये, एक जवान भी लड़ते-लड़ते शहीद हुआ। जम्मू-कश्मीर के पूरे सीमा क्षेत्र में घुसपैठ की घटनाएं अचानक बढ़ गई हैं। विपक्ष का आरोप है कि नरेन्द्र मोदी के शासन में सीमा पर घुसपैठ की घटनाएं बढ़ी हैं।
दूसरी ओर सुरक्षा जवानों और सेना को स्पष्ट निर्देश है कि घुसपैठ करने वाले आतंकियों को समाप्त कर दो। इस प्रकार सीमा पर अघोषित युद्ध चल रहा है। यह युद्ध आजादी के बाद 1987 से चल रहा है।
अंतर केवल यह है कि 1948 में पाकिस्तान के कबाइलियों ने हमला किया और 1965-1971 में सीधी लड़ाई पाकिस्तान के साथ हुई और भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया और पाकिस्तान को शर्मसार करने वाली पराजय का सामना करना पड़ा। सेना के जवानों ने भी कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाया।
अब पाकिस्तानी घुसपैठियों के माध्यम से सीमा क्षेत्र में युद्ध की स्थिति बनी हुई है। दूसरी ओर कूटनीतिक क्षेत्र में भी शह-मात का खेल दोनों के बीच चल रहा है। पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों से कश्मीर का मुद्दा उठाता है और भारत की ओर से कहा जाता है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। उस पर चर्चा नहीं हो सकती।
गत 68 वर्षों से पाकिस्तान के साथ टकराहट की स्थिति बनी हुई है। चाहे कांगे्रस सरकारें हों या एनडीए भाजपा सरकार हो, पाकिस्तान से तनाव की स्थिति बनी हुई है। कश्मीर के राजा हरिसिंह ने चाहे भारत के साथ विलय पत्र पर 1948 में ही हस्ताक्षर कर दिए हों, लेकिन जम्मू-कश्मीर को राष्ट्रसंघ में ले जाने का पाप पं. नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने किया।
उस पाप का परिणाम है कि इस्लामी आतंकियों की समस्या पैदा हुई। इस समस्या से भारत 68 वर्षों से जूझ रहा है, सैकड़ों आतंकी मारे गए और कई सुरक्षा जवानों ने देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। लोग सवाल करते हैं कि सुरक्षा नीति के बारे में कांगे्रस सरकारों और आज की भाजपा सरकार में अंतर क्या है?
इस बारे में यदि गहराई से समीक्षा की जाए तो कांग्रेस सरकारें और भाजपा की सरकार में अंतर यह है कि सीमा पर सुरक्षा जवानों को पहले घुसपैठ रोकने के लिए हमलावरों को अक्सर आतंकियों के हमले रोकने के लिए सफेद झंडा बताकर शांति की पहल करना होती थी।
अब सेना व सुरक्षा जवानों को स्पष्ट निर्देश है कि जो आतंकी घुसपैठ करने की कोशिश करे उनका सीमा के अंदर घुसकर सफाया करो। यही एक कारण है कि जेहादी इस्लामी संगठन, चाहे लश्करे तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, इंडियन मुजाहिद्दीन आदि के नाम से जेहादी आतंकी संगठन हों, इन्होंने भारत पर हमला करने की व्यापक तैयारी की है। इन दरिन्दों को तैयार करने के लिए हथियार और प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
चाहे पाकिस्तान के हुक्मरान शांति की बात करें लेकिन वहां की सेना और आईएसआई जेहादी आतंकी तैयार कर सीमा में घुसपैठ कराकर भारत में हिंसा की साजिश रचते हैं। 26/11 से लेकर संसद पर हमला पाकिस्तान ने करवाया इसमें निर्दोष लोग इतनी अधिक संख्या में मारे गये कि किसी बड़े युद्ध में भी इतनी जनहानि नहीं होती।
रक्षा मंत्री के अनुसार जितना जो हमें दर्द देगा, उतना दर्द हम भी देंगे। इसी निर्देश के अनुसार सेना और सुरक्षा बल कार्रवाई कर रहे हैं। समस्या का स्थाई समाधान या निराकरण तभी हो सकता है जब पाकिस्तान को 1971 जैसा सबक सिखाया जाए। इसके अलावा कोई स्थाई समाधान का रास्ता नहीं है।
कूटनीति की सफलता का आकलन इस आधार पर किया जा सकता है कि जो अमेरिका कश्मीर नीति पर पाकिस्तान का पक्ष लेता था, अब वह आतंकवाद को खत्म करने के लिए अमरीका का दबाव पाकिस्तान पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से बढ़ती निकटता के कारण अमेरिका भारत के साथ खड़ा दिखाई देता है। पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से अलग-थलग पड़ गया है।
अब दुनिया इस सच्चाई को समझ रही है कि पाकिस्तान आतंकवादी देश की भूमिका में है। चाहे हाफिज सईद हो या दाऊद हो, इनको भारत को सौंपने की मांग को पाकिस्तान गंभीरता से नहीं लेता। इसलिए भारत को और कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है। अभी तो स्थिति यह है कि मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा दी।
सुरक्षा की दीवार हम चाहे और सुदृढ़ कर दें, हो सकता है कि पाकिस्तान पर दुनिया का और दबाव बढ़े, लेकिन पाकिस्तान को सही रास्ते पर लाने के लिए भारत को अपने बलबूते पर ठीक रास्ते पर लाना होगा। अमेरिका भी अपना राष्ट्रहित देखकर कार्रवाई करता है, इसी प्रकार चाहे चीन पाकिस्तान की नीतियों का समर्थक हो, लेकिन उसके कूटनीतिक दबाव को कम करना होगा।
चाहे कूटनीतिक एवं विदेशी दबाव की स्थिति में भी हमें जेहादी आतंक से निपटना होगा, यह भी कटु सच्चाई है कि पाकिस्तान द्वारा घुसपैठ कराकर हिंसा की साजिश पाकिस्तान की एजेन्सी आईएसआई करती है। अमरीका, चीन को भी जानकारी है कि पाक काबिज कश्मीर में पाकिस्तान के द्वारा करीब पचास आतंकी कैम्प चलाए जा रहे हैं।
इन कैम्पों को आईएसआई संचालित करती है। पाकिस्तान में स्थित दाऊद एवं हाफिज आदि को भारत को सौपने के लिए पाकिस्तान नौटंकी करता रहता है यह भी वास्तविकता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बातों पर इसलिए भरोसा नहीं किया जा सकता है कि वहां की सेना सुरक्षा नीति निर्धारित करती है। जो लोकतांत्रिक ढंग से प्रधानमंत्री होता है, उसका केवल मुखौटा रहता है। यह भी कटु सत्य है कि पाक सेना भारत से दुश्मनी चाहती है।
वहां के कट्टरपंथियों ने पाकिस्तान में भारत विरोधी भावना पैदा कर दी है। वहां की आंतरिक स्थिति भी भारत और हिन्दुओं के खिलाफ है। इसी घृणा और दुश्मनी के आधार पर ही भारत का विभाजन हुआ। अब भी इस स्थिति में विशेष बदलाव नहीं हुआ। अब सवाल यह है कि पाकिस्तान को ठीक कैसे किया जाए।
सीधी लड़ाई पाकिस्तान लडऩा नहीं चाहता। उसने आतंकवादियों के माध्यम से परोक्ष युद्ध गत ढाई दशक से चला रखा है, कश्मीर तो टकराव का एक बहाना है। कांग्रेसों की ढुलमुल नीति से देश की सुरक्षा का खतरा गहरा गया है।
पाकिस्तानी आतंकवाद और पाकिस्तान की दुश्मनी के निराकरण की स्थाई नीति क्या हो, इस बारे में उलझनें अधिक हैं, लेकिन भाजपा को नवाज शरीफ की मृग तृष्णा पर भरोसा करके समय बर्बाद करने से कोई परिणाम नहीं निकल सकता। इसके लिए दृढ़ता के साथ कार्रवाई करना होगी। भाजपा की घोषित नीति के अनुसार कठोर कार्रवाई करना होगी।
जयकृष्ण गौड़