कोलकाता। रवीन्द्रसंगीत और नजरल गीति के दस हजार से ज्यादा पुराने गीतों के हिन्दी पाठों का डिजटलीकरण किया गया है। रवीन्द्र नाथ टैगोर और नजरल की आवाजों में ये पुराने गीत अब सभी के लिए ऑनलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे।
पुरानी हिन्दी फिल्मों के गीतों के 12 विशेषज्ञ पिछले कुछ माह से एलपी रिकार्ड्स को सुन रहे हैं और कोलकाता की ‘सारेगामा’ कंपनी में इन गीतों का डिजटलीकरण करने में लगे है।
सारेगामा के प्रबंध निदेशक विक्रम मेहरा ने बताया कि हमारे पास रवीन्द्रसंगीत के 16 हजार से ज्यादा गीत हैं और विभिन्न गायकों के गाये गए नजरल गीति के गाने भी हमारे पास संग्रहित हैं। पहली बार हम संगीत की इस विरासत का डिजटलीकरण कर रहे हैं। एमपी-3 और डब्ल्यूएवी के फार्मेट में हमारे पास इस प्रकार के दस हजार गाने बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।
उन्होंने बताया कि हमारे पास 10 ऐसे नगीने गाने हैं, जिन्हें टैगोर ने अपनी आवाज दी है। जिसमें ‘तोबु मोने रेखो’ और ‘ऐसो ऐसो फिर ऐसो’ और हमारा राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ जैसे गीत शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि हमारे पास सबसे पुराना संग्रह 1887 के समय का है। इसमें अतीत के प्रख्यात संगीतकार जैसे पंकज मलिक, देबब्रत विस्वास, सुचित्रा मित्रा, हेमंत मुखर्जी और चिन्मय चटर्जी के गीत है। यह भी हमारे रवीन्द्रसंगीत के खजाने का हिस्सा है और इसका हिन्दी पाठ प्रख्यात गायक मन्ना डे ने किया है।
नजरल के गीत ‘रवि हारा’ और ‘नारी’ को क्रांतिकारी कवि नजरल ने 1941 और 1928 के दौरान अपनी आवाज में रिकार्ड किया है। पुराने एलपी रिकार्ड से गीतों का डिजटलीकरण बहुत श्रमसाध्य काम है। इसके लिए संगीत कंपनी सारेगामा के विशेषज्ञों को गीत के प्रत्येक सेंकेड के संगीत को ग्रामोफोन पर सुनना पड़ता है और इसके अवरोधों को हटाना पड़ता है।
मेहरा ने कहा कि यदि डिजटलीकरण का काम आप मशीनों पर छोड़ देते हैं, तो इसमें गीत की आत्मा ही मर जाती है। हमें इसके अवरोधों को एक एक करके ठीक करना पड़ता है, ताकि गीत के मूल रूप को बरकरार रखा जा सके।