प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मुंबई की एक विशेष पीएमएलए अदालत से शराब कारोबारी विजय माल्या को भगोड़ा घोषित करने की मांग की गई है। ईडी ने अदालत से यह मांग कथित बैंक कर्ज फर्जीवाड़े के मामले में माल्या के खिलाफ की जा रही धनशोधन की जांच के सिलसिले में की है।
वैसे यहां पर सवाल यह उठता है कि आखिर विजय माल्या पर शिकंजा कसने में जांच एजेंसियों को इस ढंग से कानूनी अवरोधों का सामना क्यों करना पड़ रहा है तथा उन्हें हर बात पर अदालतों का रुख करने की जरूररत क्यों पड़ रही है।
बेहतर तो यह होता कि संबंधित जांच एवं कानूनी एजेंसियों को पर्याप्त ढंग से अधिकार संपन्न बनाया जाता। ताकि वह आवश्यकता पडऩे पर इस तरह के गुनाहों को अंजाम देने वालों पर सहज ढंग से शिकंजा कस सकतीं।
जैसा कि बताया जा रहा है कि विजय माल्या के खिलाफ विभिन्न मामलों में बहुत सारे गिरफ्तारी वॉरंट लंबित पड़े हैं जिसमें चेक बाउंस के मामले के अलावा धनशोधन के मामले में भी माल्या वांछित आरोपी हैं।
फिर ऐसे मामलों में आरोपी विजय माल्या के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई न होने से यह तो वैसे भी कहा जा सकता है कि माल्या को परिस्थितियों का भरपूर फायदा मिलता रहा है तथा सरकार एवं महत्वपूर्ण पदों पर काबिज जिम्मेदार लोगों की ओर से भी माल्या को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संरक्षण मिलता रहा है।
बैंकों का पैसा डकार जाने के बाद कानूनी कार्रवाई की आशंका से घिरे विजय माल्या जिस प्रकार विदेश पलायन कर गये तथा सरकार व सरकारी एजेंसियों एवं बैंकों के पास हाथ मलते रह जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा उससे तो वैसे भी स्पष्ट है कि माल्या ने सरकारी पैसा लेकर विदेश पलायन की तैयारी बहुत पहले से कर रखी थी तथा जैसे ही अवसर आया वह सभी संबद्ध पक्षों को ठेंगा दिखाते हुए विदेश भागने में कामयाब हो गए।
यह बेहद विडंबनापूर्ण बात है कि जिस व्यक्ति को पूरा देश भगोड़ा मान रहा है उसे औपचारिक तौर पर भगोड़ा घोषित कराने के लिये ईडी को इस तरह पापड़ बेलनी पड़ रही है।
माल्या ने वैसे अगर स्वस्फूर्त ढंग से जांच एजेंसियों की कोई मदद की होती तथा खुद के द्वारा लिया गया पैसा वापस लौटाने का भरोसा सरकार, बैंकों व संबंधित पक्षों को दिलाते तो उन्हें कानून का सम्मान करने वाला देश का एक जिम्मेदार नागरिक माना जाता।
लेकिन माल्या तो बस परिस्थितियों व कानूनी जटिलताओं का फायदा उठाकर खुद को बचाने की कवायद में जुटे हुए हैं तथा सरकारी पैसा वापस लौटाने का उनका इरादा तो बिल्कुल भी प्रतीत नहीं होता। सरकार, बैंक व अन्य संबद्ध पक्ष भी माल्या के मामले में सरकारी ढंग से ही काम कर रहे हैं।
माल्या पर शिकंजा कब कसा जाएगा। माल्या को विदेश से वापस भारत लाने में सफलता कब मिलेगी? आदि सवालों का जवाब तो किसी के पास है ही नहीं। माल्या से जुड़े हर प्रश्न का उनके पास सिर्फ एक ही रटा-रटाया उत्तर है कि हम प्रयास कर रहे हैं। यहां सवाल प्रयासों का नहीं बल्कि प्रयासों की परिणतिस्वरूप सामने आने वाले नतीजों का है।
माल्या को सरकारी पैसा वापस करने के लिये मजबूर किये जाने की दिशा में प्रयासों एवं उपायों की फेहरिस्त अगर इसी तरह बढ़ती गई तो फिर इस मामले का हश्र भी वही होगा जो देश में प्राय: अन्य मामलों में होता रहता है कि किसी भी गंभीर मामले में वर्षों तक जांच-पड़ताल व कानूनी प्रक्रिया को अंजाम दिये जाने के नाम पर करोड़ों रूपए खर्च होते गए, खूब भागदौड़ चलती रही तथा अंत में नतीजा कुछ भी सामने नहीं आया।
बेहतर तो यह होगा कि माल्या को सरकारी पैसा वापस लौटाने के लिए हर हालत में मजबूर किया जाए, इसके लिये भले ही उनकी संपत्ति ही क्यों न कुर्क करनी पड़े और यह कुर्की सिर्फ कागजों में ही नहीं बल्कि असल में भी होनी चाहिए।
यहां विजय माल्या से किसी की कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है लेकिन उनके व्यावसायिक कारोबार, उनकी जिंदगी से जुड़े विभिन्न पहलुओं व उनकी गतिविधियों को मद्देनजर रखते हुए यह कहा जा सकता है कि माल्या की गतिविधियां देश, समाज, कानून तथा सभ्य-संभ्रातजनों को ठेंगा दिखाने वाली व मुंह चिढ़ाने वाली रही हैं। इसलिए उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई को अंजाम देने तथा उनसे सरकारी पैसा हर हालत में वसूल किए जाने का मार्ग प्रशस्त किया ही जाना चाहिए।
सुधांशु द्विवेदी