सिरोही। माल-ए-मुफत दिले बेरहम। ये जुमला नगर परिषद सिरोही में स्टोर से खरीदी गई हर वस्तु में नजर आता है। जनता का पैसा है तो अधिकारियो, जनप्रतिनिधि ओर कार्मिको ने इसे जमकर लुटाया। स्टोर खरीद के हर मामले में यह चीज पहले प्रदेश मे कंग्रेस के राज मे भी सामने आयी ओर अब भाजपा के काबिज होने के बाद भी ।वैसे अब सिरोही नगर परिषद मे भी भाजपा काबिज हो चुकी है ओर वह कितनी इमानदार है ये देखने का मौका भी जनता को हाल ही मे की गयी सीसीटीवी खरीद की जांच मे मिल जायेगी। इससे लग रहा है जनता की बजाय ठेकेदारो के अच्छे दिन आ गये है।
शर्मनाक बात तो यह है कि यह सबकुछ राज्य में शासन और शहर में भाजपा का विधायक चुन जाने के बाद हुआ है। भ्रष्टाचार का ब्लैक पेपर जारी करके जो भाजपा राजस्थान की सत्ता पर काबिज हुई, उसी के राज में सिरोही नगर परिषद में कांग्रेस का बोर्ड और भाजपा सरकार में लगाए गए अधिकारी जनता के धन की लूट करते रहे। सीसीटीवी कैमरे के ठेके में सीसीटीवी लगाने के लिए जो स्पेसिफिकेशन दिए हुए हैं, उसी स्पेसिफिकेशन की दरें सबगुरू न्यूज ने उसी शहर के व्यापारियों से मंगवाई है।
नगर परिषद सिरोही के दस्तावेजों में जिस दर पर सीसीटीवी कैमरे शहर में लगाने का ठेका दिये जाने के संकेत मिल रहे है, वह बाजार की वास्तविक लागत से ढाई सौ प्रतिशत तक ज्यादा नजर आ रहा है। नगर परिषद में नेगोशिएसन के बाद दर दी गयी है वह पूरे सेट की करीब 4 लाख 35 हजार 110 रुपए आ रही है जबकि इसी स्पेसिफिकेशन की जो दरें सबगुरु न्यूज ने मंगवाई है उसकी पूरी लागत मात्र एक लाख 50 हजार 829 रुपए आ रही है। ऐसे मे इन 30 सेट कि कीमत करीब सवा करोड रुपये बैठ्ती है।
हर स्तर पर खामियां
सीसीटीवी कैमरा खरीद में एक तरह की आपराधिक साजिश सामने आ रही है, जो नगर परिषद के जनप्रतिनिधि, अधिकारियो और कार्मिको और ठेकेदार की ओर से मिलकर खेली प्रतीत हो रही है। इतने ज्यादा दामो पर खरीद की जा रही है तो जनता के धन की जबरदस्त लूट है।
इन बिंदुओं का जवाब ढूंढना जरूरी
1 आखिर पुलिस अधीक्षक कार्यालय ने किस नियम और अधिकार के तहत नगर परिषद को डेढ़ करोड रुपए से ज्यादा की राशि के सीसीटीवी कैमरे शहर की हर गलियों में लगाने को कहा। पुलिस विभाग यह बताए कि सिरोही नगर परिषद के निकाय प्रमुख, मुख्य कार्यकारी अधिकारी समेत विभिन्न कार्मिकों के खिलाफ कितने मामले सिरोही कोतवाली में दर्ज है और इनका स्टेटस क्या है। कहीं जनता के धन को लूटने के आरोपों की जांच से बचाने के लिए पुलिस विभाग ने जनता के धन को लूटने का कोई दूसरा तरीका तो नहीं अपनाया। सीसीटीवी कैमरे की डील में शामिल कम से कम तीन जनों के खिलाफ को कोतवाली में मामले दर्ज हैं और इनकी जांच का कोई ठिकाना नहीं है।
2 नगर परिषद बोर्ड की बजट स्वीकृति का अधिकार कितने का है। जब सामाजिक सरोकारों के लिए मात्र आठ लाख रुपए का ही बजट था तो किस अधिकार और नियम के तहत नगर परिषद आयुक्त ने यह प्रस्ताव बोर्ड में रखा और बोर्ड ने इसे पास किया। पास किया भी तो किस अधिकार के तहत नगर परिषद आयुक्त ने इस पर नगर पालिका अधिनियम के तहत नोट आॅफ डिसेंट लगाकर राज्य सरकार को भेजने की बजाय खुद ही स्वीकृत मान लिया।
3 आखिर इतनी क्या आपदा आ रही थी कि इतने बडे काॅन्ट्रेक्ट को मात्र सात दिन की अल्पकालिन निविदा में करना पडा। यदि शहर की हर गली में पुलिस अधीक्षक सीसीटीवी कैमरे से नजर रखेंगे तो पुलिस विभाग के कार्मिकों की जरूरत क्या है, शहर आधारभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है और पुलिस अधीक्षक डेढ़ करोड रुपए से ज्यादा के सीसीटीवी शहर की तीस गलियों में लगवाने की मांग कर रहे हैं।
4 मामला ट्राफिक से जुडा हुआ है तो ऐसे में इसकी संस्तुति जिला पुलिस अधीक्षक ने जिला परिवहन समिति के माध्मय से क्यों नहीं करवाई। इससे पहले पुलिस अधीक्षक कार्यालय, मावल और मंडार चेक पोस्ट में लगवाए गए सीसीटीवी कैमरे भी नगर निकायों और पंचायतों से ही लगावएं गए हैं। क्या शहर का लाॅ एण्ड आॅर्डर दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, भोपाल, जैसे जयपुर जैसे आतंकवादियों के निशाने पर रह रहे शहरों से भी खराब हो चुकी है कि ट्राफिक के मामले में मुख्य चैराहों व आवश्यक स्थानों से ज्यादा के अलावा, गलियों तक में सीसीटीवी कैमरे लगवाने की जरूरत पड गई, यदि ऐसी स्थिति थी तो इस पुलिस अधीक्षक कार्यालय व इंटेलिजेंस ने सिरोही के हाईरिस्क पर होने की सूचना राज्य सरकार को भेजी हुई है।
5 जब बजट ही नहीं था तो अकाउंटेंट ने किस मद से सीसीटीवी कैमरे की खरीद की मंजूरी दी। क्या राज्य सरकार के अलावा पांच लाख रुपए तक की खरीद करने का अधिकार रखने वाले आयुक्त को बजट का मद परिवर्तित करने का अधिकार है।
6 सबगुरु न्यूज के हाथ लगे दस्तावेजों के अनुसार तीस स्थानों पर कैमरा लगवाने हैं, इनमें एक पिलर का खर्चा करीब साढे चार लाख रुपए आ रहा है, इसमें सीसीटीवी कैमरे अलग हैं। इसके लिए नगर परिषद के तकनीकी अधिकारी से एस्टीमेट बनवाना चाहिए, सेंपल आना चाहिए, खरीद से पहले इसकी जांच के बाद परचेज कमेटी में शामिल तकनीकी अधिकारी को टेंडर पर हस्ताक्षर करने थे। जो दस्तावेज मिले हैं, उसके अनुसार जेईएन ने इस पर हस्ताक्षर किए हुए हैं, ऐसे में यह माना जाए कि ढाई सौ प्रतिशत से ज्यादा दाम पर देने के लिए आयुक्त व जेईएन की मंजूरी थी और वह सेंपल टेस्ट करके पूरी तरह से इससे संतुष्ट हो चुके है। नगर परिषद के तत्कालीन एक्सईएन दिलीप माथुर, एईएन अवधेश दुबे, जेईएन पीएल गोस्वामी इस टेंडर पर किसी तरह के हस्ताक्षर की मनाही कर रहे हैं और दूसरे जेईएन जसपाल इसका जवाब देने के लिए एक सप्ताह से टेलीफोन नहीं उठा रहे है।
7 सीसीटीवी कैमरों के स्थान, दरें और सभी कुछ तय थी तो ऐसा क्या था कि नगर परिषद आयुक्त और सभापति ने समाचार पत्र में प्रकाशित इसके अल्पकालीन टेंडर में दरें नहीं लिखी। स्टोर परचेज रूल के तहत किसी भी सूरत में टेडर को अनुमति टुकडों में या अस्पष्ट रूप स नहीं निकाला जा सकता। स्टोर से टेंडर निकाला है, ऐसे में समस्त चीजों को प्राप्त करने के स्थान का विवरण में टेंडर में लिखा जाना जरूरी है। स्टोरकीपर और तकनीकी अधिकारी आने वाले माल का सेंपल से मिलान करके इस खरीदे गए माल की क्वालिटी को लेकर रिपोर्ट बनाते है।
8 स्टोर के टेंडरों को जयपुर के छोटे अखबारों में प्रकाशित करवाकर माल उठवा देने का यह पहला मामला नगर परिषद में नहीं है। इससे पहले कई मामले मीडिया में सामने आ चुके है। इस प्रकरण में भी ऐसा ही किया गया, करोड रुपए से ज्यादा की राशि के इस टेंडर को स्टोर परचेज नियम 2012 और राजस्थान स्टोर प्रोक्योरमेंट रूल 2012 के तहत करीब डेढ़ करोड़ के इस काम का टेंडर राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर के अखबारों में प्रकाशित नहीं किए गए।
जांच अनुभवियों के हाथों
वैसे जिला कलक्टर और अतिरिक्त जिला कलक्टर दोनों ही यूआईटी से जुडे रह चुके हैं। ऐसे में यह लोग अच्छे से वाकिफ हैं कि स्टोर से किसी सामग्री को खरीदने के लिए किस तरह की प्रक्रिया से गुजरना पडता है। वहीं राजस्थान प्रोक्योरमेंट रूल 2012 तथा सामान्य एवं वित्त नियम के स्टोर परचेज रूल 2012 के अनुसार इसका मिलान कर सकते है। इस मामले में नियमों की जांच के लिए ट्रेजरी आॅफिसर व राजस्थान अकाउंट सर्विसेज के अन्य अधिकारियों का सहयोग भी लिया जा सकता है। मंत्री ओटाराम देवासी ने इसकी जांच के लिए 27 नवम्बर का समय दिया था।
तो वसूली भी और प्रकरण भी
यदि इस प्रकरण में किसी तरह की चूक मिली तो सरकार इस मामले में शामिल सभी पक्षों से इसके लिए दी गई राशि की वसूली भी कर सकती है। इसके अलावा जनता के धन को खुर्दबुर्द करने की साजिश रचने और धोखाधडी करने का प्रकरण भी दर्ज करवा सकती है।
अधिकारी का कहना है….
इसकी जांच एडीएम को दे रखी है। आने पर जो भी उचित होगा वह किया जाएगा। वैसे जिला यातायात समिति में इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं आया था और न ही कोई प्रस्ताव मेरे अध्यक्षकाल में पारित हुआ है।
वी सरवनकुमार जिला कलक्टर, सिरोही।