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britain votes for brexit, and will quit the european union
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जनमत संग्रह में यूरोपीयन यूनियन से अलग हुआ ब्रिटेन

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जनमत संग्रह में यूरोपीयन यूनियन से अलग हुआ ब्रिटेन
EU referendum result : britain votes for brexit, and will quit the european union
EU referendum result : britain votes for brexit, and will quit the european union
EU referendum result : britain votes for brexit, and will quit the european union

लंदन/नई दिल्ली। ब्रिटेन के नागरिकों ने शुक्रवार को साफ कर दिया कि उनका देश यूरोपीय संघ से अलग होना चाहता है। जनमत संग्रह में ब्रिटेन के लोगों ने यूरोपीय संघ से बाहर जाने पर बड़े संख्या में अपना मत दिया जिससे विश्व के बाज़ारों में भारी उथल-पुथल मच गयी।

कैमरून ने दिया त्यागपत्र

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाने के निर्णय के पश्चात ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने त्यागपत्र देने की घोषणा की है। यह घोषणा कैमरून ने जनमत संग्रह के परिणाम आने के पश्चात लंदन में अपने निवास 10-डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर एक वक्तव्य में की।

प्रधानमंत्री कैमरून ने कहा कि वह अगले कुछ सप्ताह में हालात को संभालने का प्रयत्न करेंगे परन्तु एक नए नेतृत्व की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रिटेन की जनता से आह्वान किया था कि वह यूरोपीय संघ के साथ रहने के पक्ष में अपना मत दें, परन्तु 52 प्रतिशत जनता ने यूरोपीय संघ से बाहर जाने के लिए अपना मत दिया।

कैमरून ने वक्तव्य में कहा कि उन्होंने महारानी एलिज़ाबेथ को अपने इस निर्णय के विषय में बता दिया है कि वह प्रधानमंत्री केवल कुछ समय के लिए ही रहेंगे और अक्टूबर में किसी नए नेता के हाथ में सरकार की बागडोर सौंप देंगे जो यूरोपीय संघ के साथ लिस्बन संधि’ (लिस्बन ट्रीटी) के अंतर्गत आगे की वार्ता करे जो ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर जाने के लिए दो वर्ष का समय दे।

कैमरून ने वक्तव्य में कहा कि ब्रिटेन की जनता ने यूरोपीय संघ से बाहर जाने का निर्णय किया है और उनके निर्णय का आदर होना चाहिए।

ब्रिटेन भी टूटने की कगार पर

जनमत संग्रह के परिणामों ने एक बार फिर स्कॉटलैंड के ब्रिटिश संघ से बाहर होने की बहस छेड़ दी है। पिछले जनमत संग्रह में वहां के लोगों ने ब्रिटेन में रहने का फैसला किया था, लेकिन कल हुए जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड के लोगों ने युरोपीय संघ का साथ देना चुना है। स्कॉटलैंड के 62 प्रतिशत लोगों ने ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने के विरोध में और 38 प्रतिशत ने अलग होने के समर्थन में वोट डाले।

स्कॉटलैंड की प्रथम मंत्री निकोला स्टरजन ने जनमत संग्रह के बारे में कहा कि इन बदली हुई परिस्थितियों में स्कॉटलैंड को फिर से जनमत संग्रह का रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा। स्टरजन के मुताबिक स्कॉटलैंड के अधिकतर लोगों ने ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग होने के विरोध में वोटिंग की है। इस कारण स्कॉटलैंडवासियों की मर्जी के बिना ब्रिटेन का ईयू से अलग होना उचित नहीं है।

यूरोपीय संघ एक नज़र

यूरोपीय संघ एक तरह से व्यापारिक साझा हितों से जुड़ा संगठन है जो एक बाजार के तौर पर काम करता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के देशों की स्थिति बहुत खराब हो गई। उनके गुलाम देश भी आज़ाद होने लगे और उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ने लगी। इसी बीच अमरीका, रूस और कई देशों ने मौका पाकर अपना व्यापार बढाना शुरू कर दिया।

व्यापार में खुद को पिछड़ता देख 1956 में 6 यूरोपियन देशों फ्रांस (जो उस समय का पश्चिम जर्मनी था), इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्सेम्बर्ग के बीच ट्रिटी और रोम पैक्ट साइन हुआ। बाद में इसमें और देश जुड़ते गए।

यूरोपीय संघ में शामिल सारे देश राज्यों की तरह हैं और संघ की एक संसद है जिसमें हर सदस्य देश से सदस्य है। यूरोपियन कमीशन भी है और इसमें राष्ट्रपति और एक कैबिनेट भी है और इसके बनाये कानून सारे सदस्य देशों पर लागू होते हैं।

ब्रिटेन और यूरोपीय संघ

शुरूआत में ब्रिटेन यूरोपीय देशों के संघ का सदस्य बनने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई लेकिन पांच साल के अन्दर ब्रिटेन को समझ में आ गया कि उसका यूरोपीय यूनियन के साथ शामिल होने से ही फायदा है।
पहली बार साल 1975 में ब्रिटेन के इतिहास में पहली बार किसी मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया गया। इस जनमत संग्रह में जनता ने यूरोपीय संघ के साथ रहने को लेकर वोट दिया।

यूरोपीय संघ में आज 28 देश हैं। रूस से अलग हुए यूक्रेन और इस्लामी देश टर्की भी यूरोपीय संघ में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं। ब्रिटेन और आयरलैंड दोनों ऐसे देश हैं जो यूरोपियन संघ में रहते हुए भी इससे अलग हैं। संघ में 1992 में एक मास्ट्रिच समझौता पर हस्ताक्षर हुए जिसमें संघ की एक करेंसी बनाने का प्रस्ताव किया गया जिसे बाद में यूरो नाम दिया गया।

इसके बाद एक सेंसेजन समझौता भी हुआ जिसके मुताबिक साथी देशों के लिए बॉर्डर पर पेपरवर्क ख़त्म कर दिया गया लेकिन ब्रिटेन और आयरलैंड दोनों ही इस शर्त से परे रहे यानी इन दो देशों के लिए ये नियम लागू नहीं था।

ब्रिटेन की संघ में रहने से जुड़ी समस्याएं

यूरोपीय संघ में कामगार एक देश से दूसरे देश कामकाज करने जा सकते हैं यानि किसी देश का इंसान किसी भी देश में काम कर सकता है। जिसके परिणाम स्वरूप यूरोप के कई देशों से लोगों का ब्रिटेन की ओर पलायन हो रहा है। पूर्वी यूरोप के देशों से बड़ी संख्या में ब्रिटेन में लोग आ रहे हैं। ये देश आर्थिक तौर पर दूसरे देशों के मुकाबले पिछड़े हुए हैं।

संघ एक देश के तौर पर काम करता है लेकिन इसके नेता जनता सीधे नहीं चुनती। इसका सदस्य बने रहने के लिए हर साल पैसे देने पड़ते हैं। इसके अलावा ग्रीस की अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए भी पैसे देने पड़ रहे हैं। यूरोपीय संघ के कानून लगातार जटिल होते जा रहा है और इसमें लगभग 7000 नियम-कानून बन गए हैं। सीरिया, ईराक से आ रहे विस्थापित यूरोपीय संघ के चलते ब्रिटेन में भी पहुंच रहे हैं।

यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया

यूरोपीय संघ ने शुक्रवार को ‘ब्रेक्सिट’ से उत्पन्न ईयू के बिखरने की अटकलों पर विराम लगा दिया और कहा कि 27 यूरोपीय देशों का यह समूह एकजुट होकर रहेगा क्यूंकि यह ईयू के आम राजनीतिक भविष्य की रूपरेखा है।

ब्रसेल्स में एक साझा वक्तव्य जारी करते हुए में यूरोपीय संघ के नेताओं ने कहा कि ईयू के सदस्य देश इतिहास, भूगोल और साझा हितों से बंधे हुए हैं और इस आधार पर उन सबके सहयोग का विकास होगा।
नई दिल्ली में यूरोपीय संघ के कार्यालय ने वक्तव्य जारी करते हुए कहा कि ब्रिटेन के इस निर्णय को ‘असाधारण’ बताते हुए उन्होंने कहा कि संघ के सभी 27 देश एक साथ रहेंगे और शांति और लोगों की भलाई के लिए के यूरोपीय संघ के बुनियादी मूल्यों को बनाए रखेगा।

यह साझा वक्तव्य यूरोपियन कॉउंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क, यूरोपियन संसद के अध्यक्ष मार्टिन शुल्त्ज, यूरोपियन कमीशन के अध्यक्ष जां–क्लॉड जंकर और यूरोपीय संघ की परिषद के घूर्णन अध्यक्ष पद के धारक मार्क रूट ने जारी किया।

उन्होंने कहा ब्रिटेन की जनता ने एक स्वतंत्र और लोकतंत्रीय प्रक्रिया में यूरोपीय संघ से बाहर जाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा उन्हें इस निर्णय पर दुःख है पर इसका आदर करते हैं।

वैश्विक समाचार पत्रों का दृष्टिकोण

ब्रिटेन के लोगों के इस फ़ैसले को द इकॉनामिस्ट ने ट्रैज़िक स्पिल्ट (दुखद अलगाव) बताया है। द गार्डियन ने इस ख़बर को प्रमुखता से पेश करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से आठ सवालों की लिस्ट छापी है। अमरीकी अख़बार द वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के फ़ैसले से ब्रितानी सरकार के गिरने का ख़तरा उत्पन्न हो गया है। अख़बार ने उन देशों के बारे में भी कयास लगाए है कि जो आने वाले दिनों में यूरोपीय संघ से अलग हो सकते हैं।

ऑस्ट्रेलियाई अखबार सिडनी मार्निंग हेराल्ड ने अपने वेब एडिशन में लिखा है कि यूरोपीय संघ के बिना ब्रिटेन एक कमज़ोर देश साबित होगा। चीन के सरकारी समाचार पत्र पीपुल्स डेली के टेबलॉयड अख़बार द ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि यूरोपीय संघ से अलग होने की सूरत में दुनियाभर में ब्रिटेन का दबदबा कम हो जाएगा।

भारत की प्रतिक्रिया

ब्रिटेन में जनमत संग्रह के नतीजों के बाद भारत ने मिली जुली प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने शुक्रवार को एक ट्वीट में कहा कि हमने यूरोपीय संघ की सदस्यता पर ब्रिटिश जनमत संग्रह के परिणामों को देखा है जो हमें इस मुद्दे पर ब्रिटिश लोगों द्वारा किए गए चुनाव को दर्शाती है। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा कि भारत ब्रिटेन और यूरोपीय संघ दोनों के साथ अपने बहुआयामी संबंधों को महत्व देता है और आगे आने वाले वर्षों में इन संबंधों को मजबूत करने का प्रयास करेगा।

अर्थव्यवस्था पर वित्तमंत्री अरूण जेटली की प्रतिक्रिया

इसी दौरान वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि भारतीय अर्थव्यस्था ब्रेग्जिट की छोटी और मध्यम अवधि के परिणामों से अच्छी तरह निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। उन्होंने कहा कि भारत अपने व्यापक आर्थिक ढांचे के स्थायित्व को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और राजकोषीय अनुशासन तथा मुद्रा स्फीति में गिरावट के साथ हमारा व्यापक आर्थिक ढांचा बहुत ही सामान्य स्थिति में है।

उन्होंने कहा, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि इस वैश्विक दुनिया में परिवर्तनशीलता और अनिश्चितता नए मानक हैं। इस निर्णय से निश्चित रूप से भविष्य में उतार-चढ़ाव होगा, क्योंकि ब्रिटेन, यूरोप और बाकी बचे दुनिया के लिए इसका पूर्ण तात्पर्य अब तक अनिश्चित है। दुनिया के सभी देशों को एक निश्चित अवधि के लिए इस जनमत संग्रह से होने वाले प्रभावों के लिए अपने आपको तैयार और सतर्क रखना होगा।

शेयर बाजार पर असर

ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से अलग होने का असर शेयर बाजार पर भी साफ नजर आ रहा है। भारतीय शेयर बजार में कारोबारी सप्ताह के आखिरी दिन कारोबार में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। शुरुआती कारोबार में ही सेंसेक्स सुबह 940 अंकों की गिरवाट के साथ खुला जबकि बाद में यह आंकड़ा 1000 अंकों की गिरावट के साथ 26 हजार के स्तर से भी नीचे चला गया और निफ्टी ने भी अपने 281.50 अंक गंवाते हुए कारोबार शुरू किया, जो बाद में बढ़कर 318 अंकों तक पहुंच गया।

इसके साथ ही देश के कारोबार में इंफोसिस, टाटा मोटर्स, टीसीएस, टाटा स्टील और भारती फोर्ज जैसे दिग्गज कंनियों के शेयर्स के भाव गिरने लगे हैं। सबसे ज्यादा ऑटो, रियल्टी और प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर कमजोर नजर आ रहे है और करीब 4 फीसदी से ज्यादा टूटे हैं। साथ ही फाइनेंशियल सर्विसेज, मेटल और पीएसयू बैंकिंग सेक्टर भी तीन फीसदी से ज्यादा कमजोर नजर आ रहे हैं।

रिजर्व बैंक की प्रतिक्रिया

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने ब्रेक्जिट के असर पर कहा कि आरबीआई की निगाह मुद्राओं समेत सभी बाजारों पर हैं और जहां जरूरत होगी वहां नकदी मुहैया कराई जाएगी। आरबीआई हर तरह की स्थिति के लिए तैयार है, आवश्यकता पड़ने पर मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करेगा, अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपये में गिरावट कमतर है। राजन ने ब्याज दर पर कहा कि हमारी मौद्रिक नीति उदार है और आंकड़ों पर निर्भर है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने ब्रेक्जिट के असर पर कहा कि आरबीआई हालात का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है।