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PM Modi good bye promise of Minimum government and maximum governance
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64 से 83 हो गए मंत्री, यानी सासू छोटी और बहू बड़ी?

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64 से 83 हो गए मंत्री, यानी सासू छोटी और बहू बड़ी?
PM Modi good bye promise of Minimum government and maximum governance
PM Modi good bye promise of Minimum government and maximum governance
PM Modi good bye promise of Minimum government and maximum governance

मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया। 64 के 83 हो गए। अब इससे भी ज्यादा विस्तार हो सकता है, क्या? नहीं। याने ‘मेक्सिमम गवर्नमेंट’ हो गई। अब यह बताएं कि ‘गवर्नेंस’ का क्या हाल है? क्या ‘गवर्नेंस’ ‘मेक्सिमम’ हुआ है?

मोदी ने नारा दिया था कि हम ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मेक्सिमम गवर्नेंस’ की पद्धति चलाएंगे याने हम न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन चलाएंगे। अर्थात ‘सासू छोटी और बहू बड़ी’ होगी लेकिन इस मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद हमें यह कहना पड़ेगा कि सासू अब फिर बड़ी हो गई है और बहू छोटी रह गई है। मोदी का मंत्रिमंडल मनमोहन के मंत्रिमंडल से भी बड़ा हो गया है।

इसमें शक नहीं है कि जावड़ेकर की पदोन्नति ठीक रही और जो नए 19 राज्यमंत्री चुने गए हैं, उनमें से तीन-चार तो पूरे मंत्री होने के योग्य हैं। ज्यादातर मंत्री ऐसे हैं, जिनसे बेहतर काम की आशा की जा सकती है।

ये युवा और योग्य मंत्री चाहें तो अपने वरिष्ठ साथियों की काफी मदद कर सकते हैं लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि भाजपा के 64 मंजे हुए और वरिष्ठ मंत्री पिछले दो साल में खास उल्लेखनीय कुछ नहीं कर सके तो ये नए राज्यमंत्री कौन सा आसमान झुका देंगे? उनके हाथ में कौनसी जादू की छड़ी है कि वे मोदी सरकार की कार्यपद्धति में कोई चमत्कार कर देंगे?

मोदी सरकार में मोदी से भी अधिक अनुभवी और योग्य, जो मंत्री लोग हैं, उनकी दशा क्या है? क्या वे अपनी नीति बनाने में स्वतंत्र हैं? क्या उनकी क्षमता का पूरा उपयोग हो रहा है? क्या उन्हें उचित सम्मान मिल रहा है? उनके चेहरे बुझे-बुझे रहते हैं, उनका वजन घट गया है और वे चुप रहने में ही अपना भला समझते हैं। सरकार पर नौकरशाहों का कब्जा हो गया है। पार्टी और सरकार पर गुजरात का शिकंजा कसा हुआ है। भाजपा पर ऐसी नौबत पहले कभी नहीं आई थी।

हम कांग्रेस को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कहते-कहते थक गए। उसे मां-बेटा पार्टी भी कह डाला। अब भाजपा का क्या हाल है? यह भाई-भाई पार्टी बन गई है। दिल्ली में सूं छे? नरेंद्र भाई छे और अमित भाई छे! दोनों भाइयों की नजर प्रांतीय चुनावों पर है। अब उप्र और पंजाब वगैरह भी कहीं बिहार और दिल्ली के रास्ते पर न चल पड़ें।

इसीलिए इस विस्तार में इसका ध्यान रखा गया है लेकिन करोड़ों मतदाता अब जात और मजहब से प्रभावित होने वाले नहीं हैं। उन्हें केंद्र सरकार की ठोस उपलब्धियों का इंतजार है। ताश के कुछ पत्ते इधर-उधर करने या उनकी संख्या बढ़ाने से आम जनता को क्या मतलब है?

: डा. वेद प्रताप वैदिक