Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
Why needs polarization of Hindus
Home Delhi क्यों आवश्यक है हिन्दुओं का ध्रुवीकरण

क्यों आवश्यक है हिन्दुओं का ध्रुवीकरण

0
क्यों आवश्यक है हिन्दुओं का ध्रुवीकरण
Why needs polarization of Hindus
Why needs polarization of Hindus
Why needs polarization of Hindus

जम्मू कश्मीर हो या असम, उत्तर प्रदेश का कैराना हो अथवा पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले का बढ़ता जातीय (हिन्दू-मुस्लिम) असंतुलन! आखिर इसे देखकर, अनुभव कर भारतीय जनमानस में ध्रुवीकरण का विचार तो पनपेगा ही।

आजादी प्राप्त होने से पहले ही भारत के विभाजन की नींव रखने में गोरे शासक सफल हो गए। सीमा के उस पार नए ‘राष्ट्र पाकिस्तान’ का बुनियादी ढांचा मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों को ही रेखाकिंत कर ही बना था। जिन्ना के नेतृत्व में ही बँटवारे से पहले डायरेक्ट एक्शन प्लान की घोषणा हुई।

इस निर्णय के मूल में अगर कुछ था, तो वह भी मुस्लिम ध्रुवीकरण की योजना थी। नतीजतन बटवारे की घोषणा होते ही मुस्लिम बाहुल्य ईलाकों से अल्पसंख्यक हिन्दुओं को पलायन करना पड़ा। पलायन भी कैसा? सारा सामान छोड़कर, पीढ़ी दर पीढ़ी का घर, पूर्वजों की अचल संपत्ति, खेत-खलियान, मठ-मंदिर, जंगल-पहाड़ सबको छोड़कर नये हिन्दुस्तान में लौट जाने की चुनौती थी।

‘जान बची तो लाखों पाए’ जैसी भयाक्रांत मानसिकता में, कितने घर तबाह हो गए, कितने परिवार बिखर गये, रिश्ते तार-तार हो गए, अपनी संपत्ति के साथ-साथ, बेटी-बहू भी छोड़ जाने का मुगलिया फरमान जारी हो गया, भीषण अत्याचार क्रूरता की पराकाष्ठा और दिल दहलाने देने वाले अमानवीय दृष्य देखे और भोगे थे हिन्दुओं ने। बंटवारे की समय की ये घटनाएं तत्कालीन बहुसंख्यक समाज मुस्लिमों के ध्रुवीकरण का ही परिणाम था।

विगत वर्ष भारत के पूर्वात्तर राज्य असम में वहां की मूल जनजाति बोडो और घुसपैठिये मुस्लिमों के खूनी संघर्ष की कोकराझार की घटना को भी देशवासी भूले नहीं हैं। क्या ये मुसलमानों का एकीकरण जातीय ध्रुवीकरण नहीं था, जो असम को महीनों तक दंगे की आग में झुलसाता रहा।

हिन्दू महासभा के कमलेश तिवारी के विरोध में देश भर में जो सामूहिक प्रदर्शन हुए, पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हाईवे पर जो किया गया, क्या वो मुस्लिमों के ध्रुवीकरण का प्रदर्शन नहीं था? तथाकथित अल्पसंख्यक कहे जाने वाले मुसलमान, देश के जिस हिस्से में भी बहुसंख्यक है, वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं की दशा किसी से छिपी नहीं है। आए दिन होने वाली घटनाएं इस बात का संकेत देती हैं। हिन्दू त्यौहारों के अवसर पर मनमानी करना, मंदिरों पर माइक बजाने से मना करना, ये सब भी मुस्लिम ध्रुवीकरण का ही नतीजा है।

जब इस देश का सांसद, सदन में मुस्लिमों की प्रतिशत के हिसाब से जीवन-चर्या तय करते हैं, तो इसी बात से अंदाजा लगाना चाहिए, कि इनके ध्रुवीकरण का पैरामीटर क्या है? आजादी के बाद से आज तक कश्मीर के अंदर जो रक्तरंजित दृष्य दिखाई देता है, वो भी बहुसंख्यक मुसलमानों के ध्रुवीकरण का ही परिणाम है। तभी तो घाटी-हिन्दुओं से विहीन हो गई, लोगों की सरेआम दुकान लूटने व हत्या जैसी घटनायें की जाने लगी।

सामूहिक हिन्दू संहार होने लगे, मंदिर तोड़े गए, पूजा-पाठ करने पर बंदिश व हिन्दू त्यौहार मनाने की मनाही होने लगी, मस्जिदों की ऊंची- ऊँची गगनचुम्बी मीनारों से घाटी खाली करने का ऐलान होने लगा, घाटी के हिन्दुओं को राजधानी दिल्ली में शरणार्थी बनकर जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब इससे पुख्ता प्रमाण मुस्लिम ध्रुवीकरण का क्या हो सकता है?

राष्ट्र के वर्तमान परिदृश्य को देखकर ये समझने में देर नहीं होनी चाहिए, कि उत्तर प्रदेश के केराना के बारे में कुछ दिन पहले जो खबरें सुनने को मिलीं, वो कोई अफवाह या गलत नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत है ! कैराना ही क्यों जिन मुहल्लों में उनकी संख्या ज्यादा होती है, वहां पर मुस्लिम ज्यादती की वजह से हिन्दू आबादी घट जाती है, और लोग अन्यत्र घर बनाकर रहने को मझबूर हो  जाते है।

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधान सभा चुनाव आने वाले है, वहां की सियासत का रंग अभी से दिखने लगा है। राजनेताओं की जुबानी जंग शुरू हो गई है। आरोप-प्रत्यारोप लगने लगे हैं। जातिवादी, समाजवादी, हिन्दू-मुस्लिम कार्ड के खेल शुरू हो गये हैं।

गैर भाजपा पार्टियां हिन्दू संगठनों एंव हिन्दू राजनैतिक दलों पर हिन्दू ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाने लगी हैं। समझ में नहीं आता, कि भाजपा को छोड़कर सभी राजनैतिक दलों को हिन्दू ध्रुवीकरण से परहेज क्यों है? उन्हें मुस्लिमों के ध्रुवीकरण से कोई आपत्ति नहीं है, पर प्रतिक्रिया स्वरुप आत्मरक्षा में हुई हिन्दू एकजुटता वे सहन नहीं कर पाते।

भारतीय जनता पार्टी जैसे ही हिन्दू शब्द का प्रयोग करती है, वैसे ही अन्य दलों के पेट में विरोध का मरोड़ शुरू हो जाता है। मानो हिन्दू शब्द उन्हें लज्जित करता हो। कभी तो ये अपनी जातिगत वोटों से ऊपर उठकर सर्वजातीय वोटों की चिंता करते। जब कोई नहीं करेगा, तो कोई तो होगा जो हिन्दू वोटों की चिंता करे।

उसी चिंतन का परिणाम है, हिन्दुओं का ध्रुवीकरण। यदि हिन्दुओं के धुर्वीकरण से राष्ट्र, समाज और व्यक्ति सुरक्षित होता है, तो ये होना चाहिए। ऐसा होने से किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में हिन्दुओं के ध्रुवीकरण के बिना कोई स्थाई परिणाम आने की संभावना नहीं दिखार्इ्र देती। धुर्वीकरण ही दे समाज सबके लिए स्थाई सुरक्षा की गारन्टी देता है। अन्य कोई दूसरा मार्ग परिलक्षित नहीं होता।

 एस. शंकर अनुरागी

( प्रस्तुत आलेख के लेखक एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता हैं )